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बाबा रामदेव का माफीनामा पसंद आया, लेकिन उत्तराखंड लाइसेंसिंग बॉडी की नींदे उड़ी, सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा से जवाब लेकर आने को कहा

सुप्रीम कोर्ट, पतंजलि,

बड़े साइज के माफीनामा का ओरिजिनल प्रिंट रिकार्ड पर जमा करने के निर्देश देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी को फटकार लगाते हुए दोबारा से हलफनामा दायर करने के आदेश दिए हैं.

Written by My Lord Team |Published : May 1, 2024 11:04 AM IST

Patanjali Misleading Ads: कानून के हाथ बड़े लंबे होते हैं. फिल्मों के माध्यम से प्रचलित, जनसामान्य की इस धारणा का सबसे विशिष्ट उदाहरण पतंजलि भ्रामक विज्ञापन केस में देखा जा सकता है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नियमों को नजरअंदाज करने के लिए, अधिकारियों द्वारा स्वत: रूप से कार्रवाई नहीं करने के लिए एवं नियमों की अनदेखी पर चुप्पी साधे रखने के लिए सबको पार्टी बनाया है. यहां 'सबको' का अर्थ केन्द्र, राज्य, केन्द्र शासित प्रदेश, सूचना प्रसारण मंत्रालय आयुष मंत्रालय आदि से है. ये सूची कितनी आगे बढ़ेगी, ये कहना अभी मुश्किल है. फिर भी सूची देखने से कुछ शेष प्रतीत नहीं होता.

सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को फटकारा. नियमों के अनुपालन का महत्व भी समझाया. उसके बाद केन्द्र से जवाब की मांग हुई कि कंपनी के खिलाफ ड्रग्स एंड रेमेडीज एक्ट के तहत कार्रवाई क्यों नहीं हुई? कार्रवाई की इसी श्रृंखला में उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी (SLA) ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी की मांग की है. आइये जानते हैं कि आज की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने किन-किन पहलुओं पर सवाल उठाया है जिसके जवाब के SLA को दूसरा हलफनामा दायर करने के निर्देश दिए हैं. SLA को जवाब दस दिनों के भीतर देना है. वहीं, अगली सुनवाई 14 मई को होगी.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह और जस्टिस हिमा कोहली की डिवीजन बेंच पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले को सुन रही है. बेंच के सामने सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी पतंजलि की ओर से पेश हुए. तो वहीं उत्तराखंड राज्य लाइसेंसिंग अथॉरिटी का पक्ष सीनिर एडवोकेट ध्रुव मेहता ने रखा.

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कोर्टरूम में क्या- क्या हुआ?

पतंजलि भ्रामक विज्ञापन मामले की सुनवाई हुई. सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि द्वारा बड़े साइज में छपवाए गए माफीनामा से खुशी जताई. कोर्ट ने कहा कि इस बार इसे स्पष्टता से छापा गया है. कोर्ट का इशारा विज्ञापन में लिखे गए आवेदकों की नाम की ओर था जहां पतंजलि आयुर्वेद के साथ बाबा रामदेव और आचार्य बालकृष्ण का नाम भी लिखा गया था.

माफीनामा की ई-फाइलिंग से जमा करने पर कोर्ट ने नाराजगी तो जताई, लेकिन माफ भी कर दिया. कोर्ट ने माफीनामा की ओरिजनल प्रति कोर्ट के सामने जमा करने के आदेश दिए. साथ ही अगली सुनवाई में बाबा रामदेव व आचार्य बालकृष्ण की पेशी से राहत भी दी. स्पष्ट करता चलूं कि ये राहत केवल एक सुनवाई के लिए दी गई.

SLA को भी लगी फटकार

उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने सुनवाई से पहले पतंजलि आयुर्वेद के 14 उत्पादों को बैन किया. मंगलवार को सुनवाई से पहले हलफनामा दायर कर राज्य प्राधिकरण ने सुप्रीम कोर्ट से बिना शर्त माफी की मांग की. बॉडी ने सूचित किया कि उन्होंने पतंजलि के खिलाफ अपराधिक मुकदमा भी दर्ज किया है.

सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि मामले में पूरा ब्यौरा देने की मांग की. सुप्रीम कोर्ट ने प्राधिकरण को फटकारा लगाते हुए कहा कि आपने जो भी कार्रवाई की है, वह अदालत से निर्देश मिलने के बाद की. 6 वर्षो से आप क्या कर रहे थे?

बेंच ने कहा,

"7-8 दिन के अंदर आपने वो सब कर लिया जो करना चाहिए था. आप वर्षों तक मामले में चुप्पी साधे रखने को लेकर क्या कहेंगे? वरीय अधिकारियों के निरीक्षण के आदेश का उल्लंघन क्यों? पिछले छह सालों से सबकुछ अधर में क्यों लटका पड़ा था?"

बेंच ने स्पष्ट किया लाइसेंसिंग अथॉरिटी ने कोर्ट के आदेश के बाद से ही कार्रवाई चालू की है.बेंच ने हलफनामे में भी कई खमियां पाई. जांच की रिपोर्ट को लेकर बेंच ने जवाब तलब किया.

बेंच ने पूछा,

"कोई रिपोर्ट है? आप साइट पर गए थे?"

अधिकारी कोर्ट के सवाल से थोड़े घबराते हुए नजर आए. बेंच ने वस्तुस्थिति को समझते हुए सबकुछ सही से बताकर हलफनामा दायर करने के आदेश दिए. बेंच ने स्पष्ट किया कि वे हलफनामा दायर करने में सावधानी दिखाएं, और रिकार्ड में रखने पर ये बहाना ना बनाए कि अदालत ने उन्हें मौका नहीं दिया.

अदालत ने उत्तराखंड लाइसेंसिंग अथॉरिटी को दस दिनों के अंदर हलफनामा के माध्यम से जवाब देने को कहा है. मामले को 14 मई के दिन सूचीबद्ध किया है.

नोट: यह खबर हमारे यहां इंटर्नशिप कर रहे मीडिया के छात्र सत्यम कुमार ने लिखी है.