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क्या आप अपना मकान किराए पर देने जा रहे है, तो ये बातें जानना है आपके लिए जरूरी

एक मकान मालिक से जुड़े कानून और अधिकारों की जानकारी नहीं होने से अधिकांश मामलों में मकान मालिक अपनी संपत्ति से ही हाथ धो बैठते है, एक बार मामला कोर्ट जाने पर उन्हें मकान किराए पर देने के लिए पछताना पड़ता है.

Written by nizamuddin kantaliya |Published : December 9, 2022 5:42 AM IST

देश—दुनिया में घर और प्रॉपर्टी किराए पर देना एक बड़े व्यापार का हिस्सा बन गया है तो वही महानगरों में मकान मालिकों के लिए आय का बड़ा जरिया. लेकिन कई बार ये देखने में आता है कि एक मकान जो किराए पर लिया गया था और बाद में जब मकान मालिक ने मकान खाली करने को कहा तो किराएदार ने उसे खाली करने से मना कर दिया हो.

यह भी एक धारणा बन गयी है कि विवाद के मामले में अगर एक बार मामला अदालत चला गया तो मकान मालिक को अपने ही मकान को खाली कराने में सालो का वक्त लग सकता है. किरायेदार और मकान-मालिक के बीच विवाद की स्थिति में मामला कई-कई साल तक चलता रहता है ऐसी स्थिति में मकान किराए पर देना एक जोखिम भरा कार्य है. कई बार मकान मालिकों को किराएदारी से जुड़े कानूनों की जानकारी नहीं होने से भी वे डरे से रहते है.

क्यों है जरूरी बातें…

शहर हो या गांव मकान को किराए पर देने से पहले मकानमालिक खासतौर से कुछ बातों को बहुत ध्यान रखने की जरूरत है. मकान मालिकों को कई कानून अधिकार मिलते है लेकिन मकान मालिक के लिए जरूरी है कि वे जिसे भी अपना मकान किराए पर दे रहे है उसके पहचान और निवास से जुड़े प्रत्येक डॉक्यूमेंट की सेल्फ अटेस्टेड 1—1 प्रति, पुलिस चरित्र प्रमाण पत्र और किराए का एग्रीमेंट के कागजात जरूर रखे.

किरायानामा या एग्रीमेंट—

किराया एग्रीमेंट बनाते समय मकान मालिक को खासतौर से ये ध्यान रखना होगा कि वह कितने समय के लिए किरायानामा बना रहे है और कानून के अनुसार इसका क्या महत्व है. आमतौर किरायानामा 11 माह के लिए बनाया जाता है किरायेदारी पर रेंट कंट्रोल एक्ट सिर्फ 12 महीने के लिए ही लागू होता है, चीजें उन मकान मालिकों के लिए मुश्किल भरी हैं, जिनके घरों में किरायेदार वर्षों से रह रहे हैं.

कई बार मकान मालिक छोटे लालच के चलते किरायानामा बनाने से बनते है. वे किराए से होने वाली आय को रिकॉर्ड पर नहीं लाना चाहते है क्योंकि उससे उनकी वार्षिक आय बढ जाती है और टैक्स देना पड़ता है. ऐसे मकान मालिक के साथ अक्सर ऐसा होता रहा है कि एक समय के बाद किराएदार उसके ऊपर हावी हो जाते है.

कई मामलों में तो मकान मालिक जितना किराया किराएदार से ले चुके होते है उससे कई सौ गुना राशि देकर किराएदार से पीछा छुड़ाते है. देश के विकास में थोड़ा सा टैक्स देने से बचने वाले ऐसे मकान मालिक के साथ इस तरह की घटनाएं होना शायद उन्हे उसकी सजा के रूप में देखा जा सकता है.

मकान मालिक ही खरीदें स्टॉम्प

किरायानामा हमेशा ही 100, 200 या 500 रुपये के स्टाम्प पेपर पर बनवा सकते हैं. स्टाम्प और किराए के एग्रीमेंट का फॉर्मेट आप कचहरी या कोर्ट परिसर में मौजूद रहने वाले स्टाम्प वेन्डर से आसानी से प्राप्त कर सकते है. 11 महीने के नोटरी पर बने रेंट एग्रीमेंट का ड्राफ्ट कानूनी तरीके से वैध है और विवाद होने पर यह सबूत के तौर पर पेश किया जा सकता है.

11 महीने के रेंट एग्रीमेंट की एक बड़ी वजह स्टाम्प ड्यूटी और रजिस्ट्रेशन फीस है. अगर 11 महीने का एग्रीमेंट किया जाता है तो यह दोनों राशि देना अनिवार्य नहीं होता है और मकान मालिक कभी भी किरायेदार के साथ यह करार खत्म कर सकता है. साथ वह कभी भी किराया बढ़ा सकता है.

अगर मकान मालिक और किराएदार वास्तव में ईमानदारी से अपनी भूमिका निभाना चाहते है तो वे इस एग्रीमेंट को स्टाम्प पर ही बनाए और ये दोनो ही के हित में है.

मकान मालिक अपने पास रखे मूल एग्रीमेंट

मकान मालिक को कभी ये गलती नहीं करनी चाहिए कि वह मूल रेंट एग्रीमेंट को किराएदार को दे. रेंट एग्रीमेंट महेशा ही मकान मालिक का ही होता है, किरायेदार हमेशा मकान मालिक से एक कॉपी मांग सकता हैं, इसमें शामिल दोनों पक्ष यानी किरायेदार और मकान मालिक किराये के समझौते की फोटो कॉपी पर हस्ताक्षर कर सकते हैं.

कानूनी रूप से रेंट एग्रीमेंट की मूल प्रति उस व्यक्ति की होगी जिसने स्टैंप ड्यूटी के लिए भुगतान किया है, जिसने एग्रीमेंट खरीदा है, उसे ओरिजिनल एग्रीमेंट रखना होगा.ऐसे मकान मालिक को ही स्टैंप ड्यूटी का भुगतान करते हुए स्टॉम्प खरीदना चाहिए. मात्र 500—1000 रुपये बचाने के चक्कर में कभी भी किराएदार को भुगतान करने का ना कहें.

कई बार किराएदार को मूल रेंट एग्रीमेंट की आवश्यकता हो सकती है लेकिन इसके लिए जब स्टाम्प पर रेंट एग्रीमेंट बनाया जाता हो, उसी वक्त दो एग्रीमेंट बना सकते है और दोनो ही 1—1 एग्रीमेंट रख सकते हैं, लेकिन याद रहें हर हाल में मूल रेंट एग्रीमेंट मकान मालिक के पास रहें.

किरायेदार को निकालने का अधिकार

मकान मालिक अपने मकान से किराएदार को कई परिस्थितियों में निकाल सकता है. जिसमें किराये समझौते का उल्लंघन करना, बिना इजाजत किसी और को किराये पर रखना, पेमेंट में देरी करना, प्रॉपर्टी का दुरुपयोग और घर में गैर कानूनी गतिविधियां चलाना, किरायेदार द्वारा बिल्डिंग या मकान को समझौते से अलग व्यवसाय के लिए इस्तेमाल करता है तब मकान मालिक किराएदार को बाहर निकाल सकता है. समझौता खत्म होने के बाद भी किराएदार नहीं निकलता तो इससे निजात पाने के लिए मकान मालिक एग्रीमेंट में किराया बढ़ोतरी का क्लॉज जोड़ सकता है.

इमारत पर अस्थायी कब्जा

कई बार मकान मालिक अपने मकान या बिल्डिंग की मरम्मत कराना चाहते ऐसी स्थिति में मकान मालिक को बिल्डिंग पर अस्थायी कब्जे का अधिकार होता है. बिल्डिंग में रिपेयरिंग, बदलाव और अन्य काम नहीं हो सकते या इमारत रहने के लिए असुरक्षित होने पर किरायेदार को कुछ समय से बाहर कर मकानमालिक कब्जा ले सकता है. लेकिन कार्य पूर्ण होने के बाद किरायेदार को घर वापस देना होगा.

किराया बढ़ाने का अधिकार

कानून में मकान मालिकों को ज्यादा और मजबूत अधिकार दिए गए हैं. रिहायशी या कमर्शियल प्रॉपर्टी मालिक सिर्फ मार्केट रेट्स के हिसाब से न सिर्फ किराया तय कर सकते हैं बल्कि उसे नियमित अंतरालों पर बढ़ा भी सकते हैं. किरायेदारी अधिनियम का नया ड्राफ्ट मॉडल शहरी आवासों को औपचारिक आवास क्षेत्र के तहत लाकर संतुलन बनाने का काम करता है. इस कानून में साफ तौर पर अवधि, उत्तराधिकार, किराये के अलावा मकान मालिक और किरायेदार के नामों का जिक्र होता है.

हमारे देश में प्रति दो वर्ष में 10 प्रतिशत तक किराया बढ़ाया जा सकता है. आम तौर पर मकानमालिक दिल्ली रेंट कंट्रोल एक्ट की धारा 6 और 8 ए के अनुसार किराया बढ़ा सकते हैं.

जरूरी मरम्मत का अधिकार

यह मकान मालिक का अधिकार और जिम्मेदारी दोनो है कि वह जरूरी अंतरालों पर घर में रिपेयरिंग का काम करवाए. प्रॉपर्टी में छोटी-मोटी रिपेयरिंग का काम किरायेदार भी करा सकता है. हालांकि बड़ी रिपेयरिंग के लिए किराएदार भी मकान मालिक की सहमति से मरम्मत करा सकता है और मकान मालिक को उस पर हुए खर्च की अदायगी करनी होगी.

किरायेदार अगर प्रॉपर्टी के मरम्मत या रख-रखाव पर खर्च करता है तो जो पैसा वो किराये के तौर पर दे रहा है, वो उसमें से काट सकता है, लेकिन इसके लिए दोनो के बीच सहमति होनी चाहिए और इस बारे में भी लिखित में एग्रीमेंट होना चाहिए.

एग्रीमेंट में संशोधन

कई बार मकान किराए पर लेने के कुछ माह या समय बाद ही किराएदार को मकान में कुछ बदलाव करने की आवश्यकता होती है. ऐसे में मकान मालिक को बिना किसी हिचक पुराने एग्रीमेंट को मौजूद रखते हुए एक छोटा सहयोग एग्रीमेंट बनाना चाहिए जिसमें निर्माण की संपूर्ण जानकारी, उसका खर्च किसके द्वारा वहन किया जा रहा है और कितने समय के लिए वह निर्माण रहेंगा, इसका पूरा विवरण होना चाहिए.

संभवतया जितना हो सके मकान मालिक को ही ऐसा निर्माण कराना चाहिए और उसके लिए अलग से राशि लेनी चाहिए. जिसे एग्रीमेंट में शामिल नहीं किया जाना चाहिए बल्कि उसे मरम्मत खर्च में शामिल किया जाना चाहिए.मकान मालिक मकान की मरम्मत करता है तो मरम्मत का काम खत्म होने के एक महीने बाद किराया बढ़ा सकता है.

किरायेदार की मौत होने पर

रेंट एग्रीमेंट के दौरान अगर किसी किरायेदार की मौत हो जाती है तो रेंट एग्रीमेंट उसकी मौत के साथ ही समाप्त हो जाता है. लेकिन अगर मृतक की मौत के समय उसका परिवार भी उसी मकान में किराए पर रहा था ऐसी स्थिति में  किरायेदार के अधिकार उसके परिवार के पास चले जाएंगे.

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