किसी भी समाज या समूह में अनुशासन के साथ शांति बनाए रखने के लिए नियम और कानून जरूरी होते है. अपराध होने या शांति बनाए रखने के लिए वहां पुलिस को एक व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार होता है, वही पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के भी अधिकार होते है.
हमारे देश में संविधान के अनुसार किसी भी नागरिक या व्यक्ति को तक तक किसी अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा जब तक सबूतो के आधार पर अदालत उसे दोषी घोषित नहीं कर देती. इसलिए संविधान के अनुसार कोई भी व्यक्ति जिसे किसी भी अपराध या आरोप में गिरफ्तार किया गया हो, उसे भी कई अधिकार दिए गए है. गिरफ्तार व्यक्ति के लिए सीआरपीसी के साथ-साथ संविधान में विभिन्न सुरक्षा उपायों के जरिए अधिकार दिए गए है.
किसी भी देश या राज्य में सरकार के पास नागरिकों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए भारी संसाधन उपलब्ध होते हैं, एक स्वस्थ लोकतंत्र में सरकार द्वारा उन शक्तियों के दुरुपयोग से व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए कुछ अधिकार दिए गए है.
आरोपी के अधिकारों में गिरफ्तारी के समय आरोपी के अधिकार, तलाशी और जब्ती के समय, मुकदमे की प्रक्रिया के दौरान और इसी तरह के अधिकार शामिल हैं।
हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 22(1) में किसी भी नागरिक के लिए यह प्रावधान किया गया है कि किसी भी पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी का आधार बताए बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं करना चाहिए.
संविधान के अनुच्छेद 22(2) के अनुसार गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी के 24 घंटो के अंदर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना होगा. 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार व्यक्ति को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने में असफल होने पर पुलिस अधिकारी गलत तरीके से हिरासत में लेने के लिए उत्तरदायी होगा.
CRPC की धारा 50 के तहत प्रत्येक व्यक्ति को जिसे पुलिस द्वारा गिरफ्तार किया गया है, उसे गिरफ्तार किए गए अधिकृत व्यक्ति से गिरफ्तारी का कारण जानने का अधिकार है. यह पुलिस अधिकारी का कर्तव्य है और वह उसे मना नहीं कर सकता.
CRPC की धारा 50 ए के अनुसार गिरफ्तार किए गए व्यक्ति के परिवार के किसी सदस्य, मित्र या रिश्तेदार को पुलिस द्वारा गिरफ्तारी के बारे में सूचित करने का की जिम्मेदारी है वही यह गिरफ्तार व्यक्ति का अधिकार है.
CRPC की धारा 55 के अनुसार जब भी कोई पुलिस अधिकारी अपने अधीनस्थ अधिकारी को किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी का आदेश देता है या अधिकृत करता है तो गिरफ्तार करने वाले अधिकारी को व्यक्ति को लिखित आदेश की सामग्री में जानकारी देनी आवश्यक है. जिसमें अपराध और गिरफ्तारी के अन्य आधार दिए गए होते है.
CRPC की धारा 55 के अनुसार गिरफ्तारी के समय पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार हुए व्यक्ति को वारंट की जानकारी देनी होगी और यदि आवश्यक हो तो उसे वारंट दिखाना होगा.
बिना वारंट के गिरफ्तारी करने वाले पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार व्यक्ति को बिना किसी देरी के मजिस्ट्रेट या पुलिस स्टेशन के के सामने पेश करना होगा.
CRPC की धारा 76 के अनुसार किसी अदालत या मजिस्ट्रेट या सक्षम अधिकारी द्वारा जारी किए गए गिरफ्तारी वारंट पर अधिकृत पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर अदालत के समक्ष पेश करना जरूरी है. इस अवधि में अदालत ले जाने का समय शामिल नहीं होगा.
CRPC की धारा 50/2 के अनुसार प्रत्येक गिरफ्तार हुए व्यक्ति को जमानत का अधिकार है. जब भी कोई पुलिस अधिकारी गैर जमानती अपराध के अलावा किसी अन्य अपराध के लिए वारंट के बिना किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करता है, तो वह उस व्यक्ति को सूचित करेगा कि उसे जमानत पर रिहा करने और उसकी ओर से जमानतदारों के लिए व्यवस्था करने का अधिकार है.
गिरफ्तार हुए व्यक्ति को संविधान के अनुच्छेद 22(1) में अपना वकील नियुक्त करने और अपनी पसंद के वकील द्वारा खुद का बचाव करने का अधिकार प्राप्त है.
संविधान के अनुच्छेद 14 में देश के प्रत्येक नागरिक को अपने मामले की निष्पक्ष सुनवाई का अधिकार प्राप्त है. CRPC की धारा 41 डी में गिरफ्तार हुए प्रत्येक नागरिक को अपने वकील से मशवरा लेने का अधिकार है.
सीआरपीसी, 1973 की धारा 303 में भी आपराधिक अदालत में आरोपी बनाए गए व्यक्ति को अपनी पसंद के वकील द्वारा बचाव का अधिकार है.
303 में कहा गया है कि जब किसी व्यक्ति पर आपराधिक अदालत (क्रिमिनल कोर्ट) के सामने अपराध करने का आरोप लगाया जाता है या जिनके खिलाफ कार्यवाही शुरू की गई है, तो उसे अपनी पसंद के वकील द्वारा बचाव का अधिकार है।
पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए जरूरतमंद और गरीब प्रत्येक व्यक्ति को CRPC की धारा 304 के अनुसार किसी भी अदालत में अपना पक्ष रखने के लिए निशुल्क वकील नियुक्त कराने का अधिकार है. लीगल सर्विस द्वारा यह वकील उपलब्ध कराया जाएगा और इसका समस्त खर्च राज्य द्वारा वहन किया जाएगा.
संविधान के अनुच्छेद 39A भी निर्धन आरोपी व्यक्ति को मुफ्त कानूनी सहायता प्रदान करने के लिए राज्य को बाध्य करता है. यदि राज्य निर्धन अभियुक्त व्यक्ति को कानूनी सहायता प्रदान करने में असफल रहता है, तो अदालत पूरे मुकदमे को शून्य मान सकता है.
CRPC और भारतीय साक्ष्य अधिनियम, 1872 के अनुसार किसी भी गिरफ्तार व्यक्ति को अदालत में कुछ भी बोलने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
अनुच्छेद 20 (2) में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को अपने खिलाफ गवाह बनने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता है.नंदिनी सत्पथी बनाम पी एल दानी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि “किसी भी व्यक्ति को कोई भी बयान देने या सवालों के जवाब देने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है और आरोपी व्यक्ति को पूछताछ की प्रक्रिया के दौरान चुप रहने का अधिकार है।”
CRPC की धारा 54 के अनुसार प्रत्येक गिरफ्तार व्यक्ति को उसके अनुरोध पर मेडिकल जांच का आदेश दे सकती है, जब तक कि अदालत संतुष्ट नहीं होती कि ऐसा अनुरोध न्याय प्राप्ति के लिए किया जा रहा है. को हराने के उद्देश्य से किया गया है।
पुलिस द्वारा गलत तरीके से गिरफ्तार करना या अवैध तरीके से हिरासत में रखने पर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को मुआवजा प्राप्त करने का अधिकार है.