राजस्थान हाईकोर्ट (Rajasthan High Court) ने हाल ही में एक प्रतिक्रिया दी है. प्रतिक्रिया में हाईकोर्ट ने कहा कि कोर्ट द्वारा दिए गए फैसलों (Court’s Judgement) की सकारात्मक आलोचना को सहर्ष स्वीकार किया जा सकता है. वहीं, किसी जज के ऊपर इल्जाम लगाने को एंटरटेंन (बढ़ावा) नहीं किया जाएगा. [बाबूलाल vs. श्री महावीर जैन स्वेताम्बर पेढ़ी (ट्रस्ट)]
जस्टिस डॉ. नूपुर भाटी ने वकीलों को भी सलाह दी है कि इस तरह की बातचीत का हिस्सा ना बनें. कोर्ट के पीठासीन अधिकारी (Presiding Officer) के ऊपर आरोप लगाने से बचें.
कोर्ट ने कहा,
"किसी फैसले की सकारात्मक आलोचना की जानी चाहिए, लेकिन जज के ऊपर मनगढ़ंत आरोप लगाने से न्याय व्यवस्था की जड़ हिल जाएंगी."
राजस्थान हाईकोर्ट टेम्पल ट्रस्ट के मैनेजमेंट से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रही थी. इस याचिका में एक मांग थी कि इस मामले को वर्तमान बेंच से हटाकर दूसरे बेंच के पास सुनवाई के लिए भेज दिया जाए. याचिका में पीठासीन अधिकारी पर आरोप लगाया गया कि वे दूसरे पक्ष के वकील के मिले हुए है और मामले से जुड़े समन की तामील करने से बच रहे हैं. हालांकि, हाईकोर्ट ने मामले में मौजूद तथ्यों पर विचार करने के बाद ट्रायल कोर्ट के फैसले को सही पाया.आरोपों पर कोर्ट ने कहा याचिकाकर्ता अगर चाहें तो उनके फैसले को हायर कोर्ट में चुनौती दे सकते है.
कोर्ट ने कहा,
"ये कार्य (मामले को ट्रांसफर करने के लिए जस्टिस पर आरोप लगाना) निंदनीय है. अगर विद्वान जिला जज द्वारा दिए गए आदेश याचिकाकर्ता को स्वीकार्य नहीं है, तो वे इसे चुनौती दे सकते हैं. इन परिस्थितियों में वकीलों से यह अपेक्षित है कि वे संयम रखतें हुए पीठासीन अधिकारी के खिलाफ आरोप न लगाने से बचें.”
कोर्ट ने ज्यूडिशियल ऑफिसर प्रोटेक्शन एक्ट (Judicial Officer Protection Act) के सेक्शन 1 की ओर ध्यान दिलाते हुए कहा कि जजों को पूर्ण स्वतंत्रता के साथ अपने कार्यों का निर्वहन करने की शक्ति देता है.