सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को फैसला सुनाया कि हत्या के एक मामले में 25 साल जेल में बिता चुका और राष्ट्रपति के क्षमादान सहित अपने सभी कानूनी विकल्पों का इस्तेमाल कर चुका व्यक्ति अपराध के समय किशोर था इसलिए उसे रिहा किया जाए. शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि किसी व्यक्ति ने अदालत में यह दावा किया है कि वह किशोर है, तो यह दलील अदालती कार्यवाही के किसी भी चरण में पेश की जा सकती है. बता दें कि यह मामला साल 1994 में ओम प्रकाश पर अपने नियोक्ता और उनके परिवार की हत्या करने के आरोप लगे. गिरफ्तारी के वक्त ओम प्रकाश ने दावा किया कि वह 20 साल का है. इस बात को साबित करने के लिए उसने अदालत में कई डॉक्यूमेंट्स भी रखे, जिसे सुनवाई के दौरान अदालत ने ध्यान में नहीं रखा.
जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि दोषी ओम प्रकाश उर्फ राजू पिछले 25 साल से जेल में बंद है, जबकि उसने सजा सुनाए जाने के समय निचली अदालत में अपने नाबालिग होने का दावा किया था, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया था. अदालत ने यह माना कि सुनवाई के पहले चरण में, अदालतों ने इस बात पर ठीक से ध्यान नहीं दिया कि आरोपी की उम्र 14 से 17 वर्ष के बीच थी, जब यह अपराध किया गया था.
शीर्ष अदालत ने कहा,
‘‘हम केवल यह कहेंगे कि यह एक ऐसा मामला है, जिसमें अपीलकर्ता अदालतों द्वारा की गई गलती के कारण पीड़ित है. हमें बताया गया है कि जेल में उसका आचरण सामान्य है और उसके खिलाफ कोई प्रतिकूल रिपोर्ट नहीं है. उसने समाज में फिर से घुलने-मिलने का अवसर खो दिया. उसने जो समय बिना किसी गलती के गंवाया है, उसे कभी वापस नहीं लाया जा सकता.’’
सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए याचिकाकर्ता को रिहा करने का आदेश दिया लेकिन साथ ही कहा कि उसकी दोषसिद्धि बरकरार रहेगी. दोषी को हत्या के लिए पहले मौत की सजा सुनाई गई थी और शीर्ष अदालत ने भी उसकी सजा बरकरार रखी थी. इसके बाद उसने राष्ट्रपति से क्षमादान की अपील की और आठ मई, 2012 को उसे उस समय आंशिक राहत मिली उसके मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल दिया गया.
साल 1994 में हुए एक हत्या के मामले में ओम प्रकाश पर आरोप लगा कि उसने अपने नियोक्ता और उनके परिवार का हत्या की. जब उसे 2001 में गिरफ्तार किया गया, तो उसने अधिकारियों को बताया कि उसकी उम्र 20 साल है. आरोपी को नाबालिग साबित करने के लिए इस मामले में कई डॉक्यूमेंट्स भी पेश किए, जिनमें उसका बैंक खाता शामिल था.
प्रथम श्रेणी की अदालत ने ओम प्रकाश को वयस्क मानते हुए उसे फांसी की सजा सुनाई. हाईकोर्ट ने भी इसी दृष्टिकोण को अपनाया और नाबालिग होने के दावे को अपनाने से इंकार कर दिया है. हाईकोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील की गई, लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने भी उसकी याचिका खारिज कर दी.
इसके बाद, भारत के राष्ट्रपति ने ओम प्रकाश की दया याचिका को भी खारिज कर दिया. फांसी की सजा माफी के लिए की गई उसके क्यूरेटिव पिटीशन को सुप्रीम कोर्ट ने खारिज किया. हालांकि, साल 2012 में राष्ट्रपति ने उसकी फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया, लेकिन राष्ट्रपति ने साफ हिदायत दिया कि ओम प्रकाश को 60 वर्ष की उम्र से पहले रिहा नहीं किया जाएगा.