संतान की चाहत हर शादीशुदा जोड़े को होती है. बहुत सारे ऐसे कपल्स होते हैं जो लाख कोशिशों के बावजूद भी पैरेंट्स नहीं बन पाते. ऐसे हालात में कुछ कपल आईवीएफ का रास्ता अपनाते हैं. आईवीएफ एक ऐसा मेडिकल इलाज है जिसे फर्टिलिटी ट्रीटमेंट (Fertility treatment) कहते हैं. इस प्रोसेस में स्त्री के अंडे और पुरुष के स्पर्म को लैब में फर्टिलाइज करके भ्रूण का निर्माण किया जाता है. भ्रूण तैयार करने के बाद उसे महिला के गर्भाशय में रख दिया जाता है. जिसके बाद वो मां बाप होने का सुख प्राप्त करते हैं. इसके अलावा कुछ कपल्स किसी ऐसे बच्चे को गोद लेना चाहते हैं जिनके सिर पर उनके मां बाप का साया नहीं हैै.अगर आप बच्चा अडॉप्ट करना चाहते हैं तो आपको कानूनी प्रक्रिया से भी गुजरना होगा. आइए बहुत आसान भाषा में इससे जुड़े कानून को समझते हैं.
एडॉप्शन एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके तहत कानूनी रूप से किसी बच्चे का पूरा अधिकार गोद लेने वाले मां बाप को दे दिया जाती है. इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद बच्चे का संबंध उसे जन्म देने वाले मां बाप का नहीं रह जाता है. बच्चे को गोद लेने के बाद उसके सभी अधिकार गोद लेने वाले माता-पिता के साथ जुड़ जाते हैं. कानूनी तरीके से बच्चे को गोद लेने के बाद आप वैध रूप से उस बच्चे के माता-पिता माने जाते हैं.
हमारे देश में अडॉप्शन की एक पूर्ण लीगल प्रक्रिया है.आपको उसी प्रक्रिया से होते हुए बच्चे को गोद लेना होगा. इसके लिए सरकार द्वारा अधिकृत एडॉप्शन एजेंसियों के जरिये एडॉप्शन की पूरी गाइडलाइन दी गई है. अगर आप बच्चे को गोद लेने का मन बना रहे हैं तो सबसे पहले वेबसाइट www.cara.nic.in पर जाकर पूरी गाइडलाइन पढ़ें. यहां एडॉप्शन की जो प्रक्रिया है, उसे फॉलो करना होगा. कारा में आपको तय रजिस्ट्रेशन फीस के अलावा किसी भी तरह का भुगतान नहीं करना होगा.
हमारे देश में गोद लेने को लेकर 1956 में हिंदू अडॉप्शन एंड मेंटेनेंस एक्ट पारित किया गया.इस अधिनियम (एक्ट) के अनुसार एक हिंदू का मतलब केवल उस व्यक्ति से नहीं है जो हिंदू धर्म का पालन करता है बल्कि इसमें हिंदू धर्म के अन्य उप-धर्म भी शामिल हैं, जैसे- बौद्ध, जैन, सिख, वीरशैव, लिंगायत, या आर्य समाज के सदस्य. हिंदू की परिभाषा में ब्रह्म और प्रार्थना के अनुयायी (फोल्लोवेर्स) भी शामिल हैं.
इस अधिनियम के अनुसार बच्चे को गोद लेने से संबंधी कई नियम तय किए गए है. जिसमें गोद लेने वाला व्यक्ति बालिग और दिमागी रूप से तंदुरुस्त होना आवश्यक है. शादीशुदा कपल तो गोद ले ही सकते हैं, अगर शादीशुदा नहीं हैं तो भी बच्चा गोद ले सकते हैं.
अगर कोई पुरुष किसी बच्ची को गोद लेना चाहता है तो दोनों की उम्र में 21 साल का फर्क होना चाहिए.यही नियम महिलाओं के लिए भी है. महिला अगर किसी लड़के को गोद ले रही है, तो उन दोनों के बीच भी 21 साल का फर्क होना जरूरी है.
अगर किसी के बेटा या पोता है, तो वह लड़का गोद नहीं ले सकता.
अगर किसी की बेटी है, पोती है या बेटी मर चुकी है, लेकिन उसकी बेटी (नातिन) है तो भी वह लड़की गोद नहीं ले सकता. नैचरल पैरंट्स को यह हक है कि वे आपसी सहमति से अपने बच्चे को किसी और को गोद दे सकते हैं. अगर मां या बाप में से किसी एक को भी ऐतराज होगा, तो बच्चे को गोद नहीं दिया जा सकता.
उसी बच्चे को गोद दिया जा सकता है, जिसे पहले किसी और को गोद न दिया गया हो. गोद दिए जाने के वक्त बच्चे की उम्र 15 साल से कम होनी चाहिए और वह शादीशुदा नहीं होना चाहिए.
गोद लेने की प्रक्रिया पूरी करने के लिए एक समारोह का आयोजन होता है. इसके बाद दोनों पक्ष उस क्षेत्र के सब-रजिस्ट्रार के सामने पेश होते हैं और फिर स्टांप पेपर पर डीड तैयार की जाती है.
डीड पर बच्चा गोद देने वाले और गोद लेने वाले दोनों पैरंट्स के फोटो लगते हैं. इस पर दो गवाहों के दस्तखत होते हैं और लिखा जाता है कि बच्चे को गोद लिया जा रहा है और इसके लिए समारोह का आयोजन हो चुका है. डीड पर सब-रजिस्ट्रार के हस्ताक्षरर के साथ ही इसे रजिस्टर्ड कर दिया जाता है.
अगर कोई शख्स किसी अनाथालय से बच्चा गोद लेता है तो सब-रजिस्ट्रार ऑफिस में देने वाले की जगह अनाथालय का नाम लिखा जाता है.
जब किसी बच्चे को किसी और को गोद दिया जाता है तो बच्चे के नाम पर जो भी प्रॉपर्टी है, वह भी उसके साथ चली जाती है.बच्चे के नाम कोई प्रॉपर्टी न हो और उसे गोद दिया जाए, तो गोद देने वाले के यहां से उसके सभी कानूनी हक खत्म हो जाते हैं और जिसने उसे गोद लिया है, वहां उसे तमाम कानूनी हक मिल जाते हैं.
हमारे देश में गोद लेने की प्रक्रिया बेहद जटील और काफी लंबी थी, यहां तक की बच्चा गोद लेने के लिए पहले 2 से 5 साल तक का समय लग जाता था. सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोसेस को सरल बनाने को लेकर 1 सितंबर, 2022 को दिए फैसले में कई बदलाव किए. बच्चों की देखभाल और गोद लेने से संबंधित मुद्दों पर जिला मजिस्ट्रेट और अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट की भूमिका बढ़ाने को भी नियम बनाए गए. अब स्थानीय कोर्ट के बजाय जिला मजिस्ट्रेट (DM) बच्चा गोद लेने के आदेश दे सकता है.
देश के दूसरों धर्मो में बच्चा गोद लेने को लेकर फिलहाल स्थिती अलग अलग है. इस्लाम में किसी और के बच्चे को गोद लेने को लेकर लंबे समय से बहस जारी है.
वर्ष 2022 में दिल्ली की एक अदालत का फैसला इस मामले में अब तक चले आ रही चर्चा से बिल्कुल अलग रहा. दिल्ली की पटियाला हाउस कोर्ट (Patiala House Court) ने एक मुस्लिम आरोपी के हक में फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए बच्चा गोद लेने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि वह इस्लाम धर्म से है.
आपराधिक मुकदमे में जेल में बंद आरोपी ने बच्चा गोद लेने के लिए अदालत से पैरोल की मांग की लेकिन अभियोजन पक्ष ने इसका विरोध करते हुए कहा कि इस्लाम में बच्चा गोद लेने का प्रावधान नहीं है. इस पर अदालत ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी व्यक्ति को सिर्फ इसलिए बच्चा गोद लेने से नहीं रोका जा सकता, क्योंकि वह इस्लाम धर्म से है.
जुवेनाइल जस्टिस एक्ट 2000 के तहत मुस्लिम को भी एडॉप्शन का अधिकार दिया गया है.
देश की सर्वोच्च अदालत ने वर्ष 2014 में एक मामले की सुनवाई करते हुए कहा था कि जब तक संविधान की धारा 44 में बताए गए यूनिफॉर्म सिविल कोड को लागू नहीं कर दिया जाता. तब तक देश के कानून को किसी भी पर्सनल कानून से ऊपर रखना होगा.