बॉम्बे हाईकोर्ट ने एक दिव्यांग उम्मीदवार को एमबीबीएस में नामांकन मिलने की राह आसान कर दी है. छात्र की मेडिकल कॉलेज में एडमिशन की योग्यता आवेदन फॉर्म में गलत ऑप्शन सेलेक्ट करने के चलते चली गई थी. छात्र ने अपनी दिव्यांगता से जुड़े कॉलम में अनजाने में गलत ऑप्शन सेलेक्ट किया था, जिसका उसे दिव्यांग कोटे का लाभ नहीं मिला. अब बॉम्बे हाईकोर्ट ने छात्र की समस्या पर विचार करते हुए महाराष्ट्र के एक मेडिकल कॉलेज को नामांकन देने के निर्देश दिए हैं.
बॉम्बे हाईकोर्ट में जस्टिस एमएस सोनक और जस्टिस कमल खता की खंडपीठ ने छात्र की दलीलों से संतुष्ट होते हुए एक सरकारी मेडिकल कॉलेज को नामांकन देने का निर्देश दिया था.
पीठ ने कहा,
"याचिकाकर्ता ने दावा किया कि उससे अनजाने में गलती हुई जिसकी वजह से उसने बाद में फॉर्म में कोई सुधार नहीं किया. छात्र की दिव्यांगता को लेकर कोई विवाद नहीं है. साथ ही गलत जानकारी भरकर छात्र को कुछ हासिल नहीं होना था, इसलिए छात्र की दलीलें मानी जाने योग्य है."
पीठ ने इस जजमेंट आर्डर में दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 में दिए गए 'समावेशी शिक्षा' और 'उचित आवास' का जिक्र करते हुए भी छात्र को नामांकन देने का आदेश देना सही पाया.
राष्ट्रीय परीक्षण एजेंसी ने छात्र के नामांकन का विरोध करते हुए कहा कि हमने अप्लीकेशन फॉर्म में सुधार करने हेतु दो नोटिस जारी किए थे, जिसके बावजूद छात्र ने अपनी गलतियों में सुधार नहीं किया. NTA ने अदालत के सामने ये भी दावा किया कि छात्र कट-ऑफ डेट से पहले दिव्यांग प्रमाण-पत्र जमा करने में असमर्थ है.
हालांकि अदालत ने NTA के दोनों दलीलों को खारिज करते हुए छात्र के नामांकन देने के निर्देश दिए हैं.