नई दिल्ली: मुंबई विश्वविद्यालय के विधि विभाग द्वारा मुख्य न्यायाधीश एमसी छागला मेमोरियल ट्रस्ट के सहयोग से बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य जज एमसी छागला की स्मृति में 7वें व्याख्यान का आयोजन किया जा रहा है. जिसके मुख्य वक्ता सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के पूर्व जज रोहिंटन फली नरीमन (Justice Rohinton Fali Nariman) होंगे.
"A tale of two Constitutions- India and the United States: the long and short of it all" विषय पर जस्टिस नरीमन व्याख्यान देंगे.
स्वागत भाषण विधि विभाग की अध्यक्ष डॉ स्वाति डी रौतेला करेंगी. इसके बाद वरिष्ठ अधिवक्ता इकबाल चागला और डॉ रश्मी एम ओझा (चेयर प्रोफेसर- जस्टिस छागला चेयर) भी लोगों से मुखातिब होंगे. धन्यवाद प्रस्ताव प्रोफेसर डॉ राजश्री एन वरहदी द्वारा दिया जाएगा. आईए जान लेते हैं कौन थे पूर्व मुख्य जज एमसी छागला.
बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य जज एमसी छागला का जन्म 30 सितंबर 1900 को बंबई के एक संपन्न गुजराती इस्माइली खोजा परिवार में हुआ था. उन्होंने बॉम्बे के सेंट जेवियर्स हाई स्कूल और कॉलेज में शिक्षा प्राप्त की. 1918-21 तक ऑक्सफोर्ड के लिंकन कॉलेज में आधुनिक इतिहास का अध्ययन किया. 1921 में बीए और 1925 में एमए किया. 1922 में, उन्हें बॉम्बे हाई कोर्ट के बार से जुड़े. जहां उन्होंने सर जमशेदजी जैसे प्रकाशकों के साथ काम किया.
उन्होंने बंबई में जिन्ना के अधीन सात साल तक काम किया, जैसा कि वे अपनी आत्मकथा में बताते हैं. हालांकि, जिन्ना द्वारा एक अलग मुस्लिम राज्य के लिए काम करना शुरू करने के बाद उन्होंने जिन्ना से सभी संबंध तोड़ लिए थें. उन्हें 1927 में गवर्नमेंट लॉ कॉलेज, बॉम्बे में कानून के प्रोफेसर के रूप में नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने डॉ. बीआर अम्बेडकर के साथ काम करने का मौका मिला. उन्हें 1941 में बॉम्बे उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया गया, 1948 में मुख्य न्यायाधीश बने और 1958 तक उस क्षमता में सेवा की.
1946 में, छागला संयुक्त राष्ट्र में पहले भारतीय प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा बने थे. 4 अक्टूबर से 10 दिसंबर 1956 तक, छागला ने तत्कालीन बॉम्बे राज्य के कार्यवाहक राज्यपाल के रूप में कार्य किया.
सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने 1958 से 1961 तक अमेरिका में भारतीय राजदूत के रूप में कार्य किया. छागला ने तब अप्रैल 1962 से सितंबर 1963 तक यूके में भारतीय उच्चायुक्त के रूप में कार्य किया. उनकी वापसी के तुरंत बाद, उन्हें कैबिनेट मंत्री बनने के लिए कहा गया, जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया, और उन्होंने 1963 से 1966 तक शिक्षा मंत्री के रूप में कार्य किया , फिर नवंबर 1966 से सितंबर 1967 तक भारत के विदेश मंत्री के रूप में कार्य किया , जिसके बाद उन्होंने सरकारी सेवा छोड़ दी. फिर उन्होंने अपने जीवन के शेष वर्ष सक्रिय रूप से बिताया.
जजों की नियुक्ति के लिए राज्य सरकार प्रक्रिया शुरू करती. मुख्य न्यायाधीश की राय के लिए उन्हें नामों की सूची भेजी जाती है, लेकिन जस्टिस छागला ने इस प्रथा को उलट दिया था. उन्होंने राज्य सरकार को इस बात के लिए मना लिया कि पहले मुख्य न्यायाधीश की ओर से होनी चाहिए न कि सरकार की तरफ से. साथ ही जस्टिस छागला ने सरकार से यह भी कहा कि यदि मुख्य न्यायाधीश की सिफारिशें खारिज हो जाती हैं तो उन्हें अन्य नाम पेश करने के लिए कहा जाना चाहिए.