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ऐसा जज ढूंढ़ना मुश्किल, जिसके रिश्तेदारों को.... इस दावे के साथ 70 वकीलों के सीनियर डेजिग्नेशन को SC में चुनौती

सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट मैथ्यूज जे नेदुम्परा को उस याचिका के लिए जमकर फटकार लगाया है, जिसमें संवैधानिक न्यायालय के जजों के परिवार के सदस्यों को सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित करने के आरोप लगाए गए.

सुप्रीम कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : January 2, 2025 5:41 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने एडवोकेट मैथ्यूज जे नेदुम्परा याचिका पर फटकार लगाई जिसमें कहा गया कि देश भर में संवैधानिक न्यायालय के किसी भी जज ढूंढ़ना मुश्किल है, जिसके 40 वर्ष से अधिक आयु के किसी भी रिश्तेदार को सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित नहीं किया गया हो. बता दें कि मैथ्यूज नेदुम्परा ने यह दावा दिल्ली हाईकोर्ट के 70 वकीलों को दिए गए सीनियर डेजिग्नेशन को चुनौती देते हुए की थी. इस याचिका में दावा किया गया है कि 40 वर्ष से अधिक आयु के किसी भी जज को ढूंढना बेहद मुश्किल है, जिसके परिवार में कोई सदस्य सीनियर एडवोकेट के रूप में नामित नहीं किया गया हो.

कानून की अदालत है, भाषण देने के लिए कोई बोट क्लब नहीं: SC

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन की खंडपीठ ने एडवोकेट नेदुम्परा की याचिका से आपत्ति जताते हुए पूछा कि क्या वह अपनी याचिका में संशोधन करना चाहते हैं? अगर नहीं, तो संस्था पर लगाए गए आरोपों के चलते उनके ऊपर कानूनसम्मत कार्रवाई की जा सकती है. अदालत ने मामले की सुनवाई टालते हुए कहा कि वह अपनी याचिका पर विचार कर लें और साथी याचिकाकर्ताओं से भविष्य के लिए सलाह-मशवरा कर लें.

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया,

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"जो भी वकील इस तरह की याचिका पर हस्ताक्षर करता है, वह भी अदालत की अवमानना का समान रूप से दोषी है."

सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,

"यह कानून की सर्वोच्च अदालत हैं, आपके भाषण देने के लिए कोई बोट क्लब नहीं है. अगर आप अदालत को संबोधित करते हैं, तो केवल कानूनी तर्क दें."

सुप्रीम कोर्ट की सख्ती देखते हुए कुछ याचिकाकर्ताओं ने अदालत के सामने ही अपना नाम वापस लेने की इच्छा जाहिर कर दी.

जज और सीनियर डेजिग्नेशन को लेकर वकील नेदुम्परा ने क्या कहा?

बहस के दौरान एडवोकेट मैथ्यूज नेदुम्परा ने अपने विवादास्पद बयान में कहा कि
"संसद ने धारा 16 और 23(5) को लागू किया... जिसका परिणाम दुर्भाग्यपूर्ण रहा है. इससे बार के एकीकरण और लोकतंत्रीकरण की प्रक्रिया प्रभावित हुई है और कुछ प्रभावशाली परिवारों द्वारा बार और बेंच पर नियंत्रण स्थापित करने का अवसर मिला. भारत में लगभग 14 लाख वकील हैं, जिनमें से केवल एक व्यक्ति को सीनियर एडवोकेट के रूप में मान्यता दी गई है. कई परिवारों में हर सदस्य एक नामित सीनियर है. यह भी मुश्किल है, यदि असंभव नहीं है, कि किसी हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के वर्तमान या पूर्व जज के वंशज/भाई/बहन/भतीजे 40 वर्ष की आयु पार कर चुके हैं और वकील बने हुए हैं."
बता दें कि याचिका में दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा लगभग 70 वकीलों को हाल ही में वरिष्ठ पदनाम देने के निर्णय को रद्द करने की मांग की है. हालांकि, नेदुम्परा की दलीलों से नाराजगी व्यक्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में संशोधन करने के निर्देश दिए हैं.