नई दिल्ली: उत्तर प्रदेश की गोरखपुर जिला अदालत ने दूध में मिलाने के आरोप में दूधिया को एक साल जेल की सजा और 2 हजार रुपये का जुर्माना लगाया है. इसके साथ ही अदालत ने दोषी द्वारा जुर्माना नहीं भरने पर एक माह की अतिरिक्त सजा का ऐलान किया है.
देश का यह पहला मामला नहीं है जब किसी दूधिया को दूध में मिलावट के लिए जेल की सजा सुनाई गई है. दूध में पानी मिलाने के मामले में देश के अलग अलग हिस्सों में अदालत पहले भी दूध विक्रेता या दूधिया को जेल की सजा सुना चुकी है. इस फैसले के बाद से ही देशभर में खाद्य सामग्री में मिलावट को लेकर कानूनी प्रावधानों की चर्चा शुरू हो गयी है.
अगर गोरखपुर की जिला अदालत के फैसले के बाद देशभर के दूध विक्रेताओं में भी एक डर देखने को मिला है. तो वही आम जनता को भी इस कानूनी प्रावधान के बारे में जानने की उत्सुकता बढ़ी है.आइए जानते है कि मिलावट करने पर क्या कानून है और कितनी सजा हो सकती है.
गोरखपुर की जिला अदालत ने जिस दूध विक्रेता या दूधिया को जेल की सजा सुनाई है. उसके मामले में खाद्य सुरक्षा विभाग के वर्ष 2010 में विशेष छापेमारी अभियान के दौरान 24 फरवरी 2010 को सिकरीगंज तिराहे के पास मोटरसाइकिल से दूध वितरित करने जाते समय भैंस के दूध का नमूना लिया था.
प्रयोगशाला में दूध की जांच करने पर दूध में पानी मिले होने की पुष्टि हुई.इस मामले में खाद्य सुरक्षा विभाग ने दूधिया के खिलाफ PFA Act यानी खाद्य अपमिश्रण निवारण अधिनियम 1954 के तहत मामला दर्ज कराया. अदालत ने मामले में ट्रायल के बाद दोष सिद्ध पाए जाने पर आरोपी सभाजीत यादव को एक साल की जेल और दो हजार रुपये के आर्थिक दंड की सजा सुनाई.
देश में खाद्य सामग्री में मिलावट को रोकने के लिए खाद्य संसद द्वारा वर्ष 1954 में अपमिश्रण निवारण अधिनियम यानी PFA Act prevention of food adulteration पारित किया गया.
इस अधिनियम के अनुसार दवाइयों और पानी के अलावा वे सभी खाद्य सामग्री जो मानव के खाने या पीने के रूप में उपयोग में लाई जाती है, उनके निर्माण या तैयार करने के दौरान केन्द्र सरकार द्वारा घोषित अन्य चीजें या सुगंध पैदा करने वाले, या मूल सामग्री का भ्रम पैदा करने वाले पदार्थ की मिलावट की जाती है, उसे खाद्य सामग्री में मिलावट माना जाएगा.
हमारे देश में खाद्यान्न की कमी के चलते आजादी के बाद मिलावट जोरो पर थी. ऐसे में भारत सरकार ने देश में खाद्य पदार्थों के उपयोग, मिलावटी सामग्री को प्रतिबंधित और नियंत्रित करने और भोजन के पोषण मानकों को बनाए रखने के लिए PFA Act लागू किया. जिससे देश के नागरिकों को मिलावट के कारण होने वाले खराब स्वास्थ्य से बचाया जा सके. इस अधिनियम को उन सभी खाद्य पदार्थों पर लागू किया गया जो चाहे देश में निर्मित हुई हो या विदेश से आयातित की गयी हो.
इस अधिनियम में मिलावट करने वाले पदार्थ के रूप में खाद्य अपमिश्रण को भी परिभाषित किया गया है. यदि किसी खाद्य पदार्थ में कोई बाहरी तत्व मिला दिया जाए या उसमें से कोई अभिन्न तत्व निकाल लिया जाए, उसे अनुचित ढंग से संग्रहीत किया जाए या दूषित स्त्रोत से प्राप्त किया जाये. जिसके चलते उस पदार्थ के मूल तत्व और प्रकृति में बदलाव होने से उसकी उसकी गुणवत्ता में कमी आ गयी हो तो उस खाद्य सामग्री या भोज्य पदार्थ को मिलावट युक्त भोज्य पदार्थ कहा जाता है.
हमारे देश में मिलावटी खाद्य पदार्थ बेचने पर सख्त सजा के प्रावधान किए गए है. मिलावटी में दोषी पाए जाने पर आरोपी को 6 माह से लेकर उम्रकैद तक की सजा दी जा सकती है.
PFA Act की धारा 7/16 के अनुसार मिलावट करने पर अधिकतम तीन साल की सजा का प्रावधान है.
वर्ष 2006 में लाए गए खाद्य सुरक्षा मानक अधिनियम 2006 में सात साल से लेकर उम्रकैद की सजा हो सकती है.
जनवरी 2017 में शाहबाद के दूधिया मनोज कुमार को भी दूध में मिलावट का दोषी मानते हुए 2 साल की जेल की सजा सुनाई गयी थी. शाहबाद के तत्कालीन प्रथम अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट अरविंद मिश्रा ने इसके साथ ही 1 हजार का जुर्माना भी लगाया था.
उत्तरप्रदेश के ही मूंढापांडे थानांतर्गत ग्राम मुड़िया घोसी निवासी अजहरुद्दीन को भी दूध में मिलावट के लिए 2016 में 6 माह की जेल सजा सुनाई गयी थी. साथ ही एक हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया गया.