Signing On Judgement Order Without Reading: हाल ही में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने एक जज के खिलाफ कार्रवाई करने के आदेश दिए हैं जिसने बिना पढ़े जजमेंट आर्डर पर साइन किया था. ये बात सामने तब आई जब धोखाधड़ी के इसी मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने जजमेंट आर्डर पर गौर किया तो पाया कि प्रोसीडिंग में फ्रेमिंग ऑफ चार्जेस होनी थी लेकिन ट्रायल कोर्ट ने कार्यवाही के स्टेप को 'रिकार्डिंग ऑफ एविडेंस' बताया गया. लापरवाही सामने आने पर मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के संबंधित जज और क्लर्क के खिलाफ जांच बिठाने के आदेश दिए हैं.
मध्य प्रदेश हाईकोर्ट में जस्टिस जीएस अहलुवालिया की बेंच धोखाधड़ी मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी. जस्टिस ने जजमेंट आर्डर पर गौर करने पर पाया कि ये आदेश का कुछ हिस्सा टाइप किए गए थे तो उसके आगे का हिस्सा हाथ से लिखे गए थे. साथ ही प्रोसीडिंग फ्रेमिंग ऑफ चार्जेश के चरण में थी तो उसकी जगह रिकार्डिंग ऑफ एविडेंस लिखा था. जिसे देखते हुए अदालत ने माना कि जज ने बिना पढ़े ही इस आदेश पर साइन कर दिया है.
अदालत ने कहा,
"दिनांक 24.02.2024, 09.03.2024 और 23.03.2024 की आर्डर कॉपी हैंडराइटिंग में है. वहीं, दूसरे आदेश टाइप कर लिखे गए है. वहीं हैंडराइटिंग में क्लर्क द्वारा लिखे गए आर्डर पर बिना सोचे समझे सिग्नेचर किए गए हैं. ट्रायल कोर्ट के इस आचरण की सराहना नहीं की जा सकती है."
अदालत ने जिला अदालत के मुख्य जिला और सेशन जज को आदेश के हैंडराइटिंग में लिखने और साइन करने के कारणों का पता लगाने को कहा है. अदालत ने कहा कि अगर इस जांच में लापरवाही को मुख्य कारण है तो उक्त के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू करने के निर्देश दिए हैं.
हालांकि, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने आरोपी की जमानत याचिका भी खारिज कर दी. अदालत ने देखा कि आरोपी को घटना का मास्टरमाइंड है जिसके चलते उसे जमानत देने से मना कर दिया है.