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नए लॉ ग्रेजुएट को ज्यूडिशियल ऑफिसर बनाने पर जस्टिस ने जताई चिंता, कहा-अनुभव की कमी से उन्हें अदालत में शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है

नए लॉ ग्रेजुएट में अनुभव की कमी के वाबजूद न्यायिक अधिकारी बनाने को लेकर जस्टिस सूर्यकांत ने स्थिति को चिंताजनक बताया है.

नए लॉ ग्रेजुएट में अनुभव की कमी के वाबजूद न्यायिक अधिकारी बनाने को लेकर जस्टिस सूर्यकांत ने स्थिति को चिंताजनक बताया है.

Written by Satyam Kumar |Updated : July 17, 2024 1:02 PM IST

Fresh Law Graduates As Judicial Officer:  सुप्रीम कोर्ट देश भर में बार एसोसिएशन को बेहतर और मजबूत बनाने को लेकर बार एसोसिएशन से सुझाव देने को कहा है. मंगलवार को हुई इस चर्चा के दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने न्यायिक अधिकारी बनने के लिए दो साल की वकालती अनुभव को हटाने के फैसले से नाराजगी जाहिर की. जस्टिस ने बताया कि इस नियम के हटाने से फ्रेश लॉ ग्रेजुएट न्यायिक अधिकारी बन रहे हैं जिन्हें काम में अनुभव की कमी के चलते अदालत की कार्यवाही के दौरान शर्मिंदगी का सामना करना पड़ता है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस दीपंकर दत्ता की खंडपीठ ने उक्त टिप्पणी की. वाद बार काउंसिल की को मजबूत और बेहतर बनाने को लेकर थी. इसी दौरान जस्टिस सूर्यकांत ने फ्रेश लॉ ग्रेजुएट के न्यायिक अधिकारी (Presiding Officer) बनाए जाने को लेकर चिंता जताई. जस्टिस ने न्यायिक अधिकारी बनने के लिए दो साल की वकालती प्रैक्टिस की अनिवार्यता हटाए जाने से भी नाराजगी जाहिर की.

नए लॉ ग्रेजुएट में अनुभव की कमी के वाबजूद न्यायिक अधिकारी बनाने को लेकर जस्टिस सूर्यकांत ने स्थिति को चिंताजनक बताया है.

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जस्टिस ने कहा,

"आप बिना वकालती प्रैक्टिस के बेहतर अदालत के अधिकारी नहीं बन सकते है. अनुभव की कमी के चलते फ्रेश लॉ ग्रेजुएट को शर्मिंदगी का सामना करते पाता हूं. अगर जब आप शिकायत ड्राफ्ट करना, लिखित बयान लेना, मुकदमे के अहम मुद्दों को तैयार करना, और क्रॉस एग्जामिनेशन करना नहीं सीखेंगे, तब तक आप हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के लिए एक अच्छे न्यायिक अधिकारी नहीं बन सकते हैं.

जस्टिस ने ये भी कहा कि हलफनामा के आने से क्रॉस एग्जामिनेशन करने वाले अधिकारियों को राहत मिली है, नहीं तो क्रॉस एग्जामिनेशन की पद्धति तो जिला अदालतों से कब की जा चुकी है.

जस्टिस दीपांकर दत्ता ने बार एसोसिएशन के भीतर चल रही राजनीति को सबसे बड़ी समस्या बताया है. उन्होंने इन संगठनों से राजनीति को खत्म करने की मांग की और इस बात पर जोर दिया कि वकील अदालत के अधिकारी हैं और उन्हें राजनीतिक गतिविधियों में शामिल नहीं होना चाहिए.

जस्टिस दीपंकर दत्ता ने कहा,

यह राजनीति करने की जगह नहीं है. आप सभी अदालत के अधिकारी हैं, आप न्याय करने में हमारी सहायता करेंगे. लेकिन न्यायालय के बाहर और न्यायालय परिसर में ये क्या हो रहा है?

जस्टिस सूर्यकांत ने लॉ कॉलेज में फैकल्टी की कमी के मुद्दे को भी उठाया. उन्होंने लॉ कॉलेजों में फैकल्टी की कमी के वाबजूद लाखों ग्रेजुएट इस पेशे में आ रहे हैं.

जस्टिस सूर्यकांत ने कहा,

आखिरकार, जब तक आप मैन्यूफैक्चरिंग यूनिट को बंद नहीं करते, तब तक प्रोडक्ट बाजार में मौजूद रहेगा. चाहे वह प्रोडक्ट दोषपूर्ण हो या बेहतर. इसके लिए बार काउंसिल जिम्मेदार है. क्या यह गंभीर मुद्दा नहीं है? कितने लॉ कॉलेज हैं? उनके पास फैकल्टी ही नहीं हैं.

सुप्रीम कोर्ट में ये बातें बार एसोसिएशन को मजबूत और बेहतर बनाने को लेकर हो रही चर्चा के दौरान सामने आई. बार की स्थिति को सुधारने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने राय देने को कहा है, ये सुझाव सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन, एडवोकेट ऑन रिकार्ड बार एसोसिएशन और उच्च न्यायालयों के बार एसोसिएशन से मांगे गए है.