सुप्रीम कोर्ट जस्टिस पीएस नरसिम्हा (Justice PS Narsimha) ने रविवार को कहा कि भारत को अपने संवैधानिक संस्थानों की अखंडता को बाहरी हस्तक्षेप से बचाना चाहिए, जिसमें राजनीति से प्रेरित हस्तक्षेप भी शामिल हैं. अपने संबोधन में न्यायमूर्ति नरसिम्हा ने कहा कि संस्थाओं की अखंडता को केवल उन व्यक्तियों की नियुक्ति, निर्णय लेने और हटाने की प्रक्रिया में सुरक्षा उपाय लागू करके ही बरकरार रखा जा सकता है, जो इन संस्थाओं की अगुवाई करते हैं. जस्टिस नरसिम्हा बेंगलुरू में ‘नेशनल लॉ स्कूल ऑफ इंडिया यूनिवर्सिटी’ (NLSIU)) द्वारा आयोजित जस्टिस ईएस वेंकटरमैया स्मृति व्याख्यान को संबोधित कर रहे थे. अपने भाषण के दौरान जस्टिस ने यह भी कहा कि स्मृति व्याख्यान का विषय, ‘संवैधानिक संस्थाओं की पुनर्कल्पना: अखंडता, दक्षता और जवाबदेही’ प्रासंगिक है, क्योंकि न्यायमूर्ति वेंकटरमैया न्यायिक पेशेवरों की उस पीढ़ी से संबंधित थे, जिन्होंने संस्थाओं के विकास और उन्हें बनाए रखने में सक्रिय भूमिका निभाई थी.
जस्टिस वेंकटरमैया भारत के 19वें मुख्य न्यायाधीश रहे थे,. इससे पहले वह कर्नाटक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश और मैसूर के महाधिवक्ता रहे. सुप्रीम कोर्ट ऑब्जर्वर के अनुसार, वह 720 जजमेंट सुनाने वाली पीठों का हिस्सा बने. इनमें से उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपने कार्यकाल के दौरान 256 फैसले लिखे. जस्टिस नरसिम्हा ने निर्वाचन आयोग, भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक, संघ और राज्य लोक सेवा आयोगों और अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों एवं अन्य पिछड़ा वर्गों के लिए राष्ट्रीय आयोगों जैसी ‘चौथी शाखा संस्थाओं’ की भूमिका के बारे में विस्तार से चर्चा की. निर्वाचन आयोग का उदाहरण देते हुए जस्टिस ने कहा कि आज हम यह मानकर चलते हैं कि संसद और राज्य विधानसभाओं के चुनाव कराने के लिए कार्यपालिका के बाहर एक अलग निकाय है. हालांकि, यह समझना भी महत्वपूर्ण है कि इसके संस्थागत होने से पहले, कार्यकारी शाखा के माध्यम से भी चुनाव कराना संभव था. उन्होंने भारत के संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता की सराहना की, जिन्होंने कार्यपालिका के बाहर एक निकाय के माध्यम से चुनावों की निगरानी, निर्देशन और नियंत्रण को संस्थागत बनाने का विकल्प चुना.
(खबर PTI भाषा से है)