President Rule in Manipur: मणिपुर, भारत के सुदूर नॉर्थ-ईस्ट इलाके में बसा राज्य. राज्य की महता उसके भौगोलिक दृश्यों से काफी बड़ी है, लेकिन राज्य में पिछले कई सालों से लगातार आंतरिक कलह से जूझ रहा था. वजह राज्य के कुकी और मैतेई आबादी के बीच लगातार हिंसा. यह हिंसा भयावह होने के साथ-साथ एक लंबे समय से राज्य में जारी है. जहां मैतेई, की जनसंख्या इम्फाल में ज्यादा है, तो वहीं कुकी जनजाति राज्य में दस प्रतिशत की आबादी रखती है और ये जनजाति बंग्लादेश तक फैली है. धर्म की बात करें तो मौतेई हिंदू और कुकी ईसाई है. बात विवाद की करें, मैतेई को एसटी का दर्जा देने से जुड़ा है, जिसका कुकी विरोध कर रहे हैं.
वहीं, सीएम बिरेन सिंह ने लगभग 21 महीनों के जातीय हिंसा के बाद इस्तीफा दिया है. कहा जा रहा है कि इस हिंसा में अब तक 250 लोगों की जान गई है. गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक अधिसूचना के अनुसार, विधानसभा का कार्यकाल 2027 तक है, लेकिन वर्तमान परिस्थितियों के कारण इसे निलंबित किया गया है. बता दें कि मणिपुर में सत्ताधारी पार्टी ने सदन में अपना अविश्वास नहीं गवाया है, बहुमत दल पार्टी ने सदन में अपने बहुमत को बरकरार रखा है, चूंकि विधायक दल के नेता ने अपना इस्तीफा दिया है, इसलिए दोबारा से नए मुख्यमंत्री को चुने जाने और राज्य में हिंसा की स्थिति में सुधार होने पर राष्ट्रपति दोबारा से सदन की शुरूआत करने की इजाजत दे सकती है.
संविधान के आर्टिकल 356 का प्रयोग करते हुए राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने मणिपुर में प्रेसिडेंट रूल लागू किया है. गृह मंत्रालय द्वारा जारी अधिसूचना में कहा गया है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू का मानना है कि "ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है जिसमें उस राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार नहीं चलाया जा सकता।" राष्ट्रपति ने अनुच्छेद 356 का प्रयोग करते हुए मणिपुर राज्य के शासन की सभी शक्तियों को अपने पास ले लिया है.
अब हाउस सस्पेडेंड अंडर एनिमेशन को समझते हैं? इस विषय पर मणिपुर भाजपा की अध्यक्ष ए. शारदा ने कहा है कि राज्य विधानसभा को "निलंबित अवस्था" में रखा गया है. विधानसभा को अभी भंग नहीं किया गया है. सिंह के इस्तीफे के बाद और संविधानिक प्रक्रिया के अनुसार, निलंबित अवस्था लागू की गई है. जब राज्य की स्थिति में सुधार होगा, तो विधानसभा को पुनर्स्थापित किया जा सकता है.
संविधान की आर्टिकल 356, राष्ट्रपि को विपरीत परिस्थितियों में किसी राज्य का शासन अपने हाथों में लेने की शक्ति देती है. संविधान में यह प्रावधान किया गया है कि यदि राष्ट्रपति को यह विश्वास हो कि किसी राज्य में सरकार संविधान के अनुसार कार्य नहीं कर पा रही है, तो वह कुछ विशेष अधिकारों का प्रयोग कर सकता है. यह प्रावधान इस स्थिति में लागू होता है जब राज्य की सरकार संवैधानिक तरीके से कार्य करने में असमर्थ हो. राष्ट्रपति की यह शक्ति सुनिश्चित करती है कि वहां लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की जा सके.
जब राष्ट्रपति को यह जानकारी मिलती है कि राज्य की सरकार कार्य नहीं कर रही है, तो वह प्रोक्लेमेशन के माध्यम से सभी या कुछ कार्यों को अपने पास ले सकता है. यह प्रावधान राष्ट्रपति को राज्य सरकार की शक्तियों को संभालने की अनुमति देता है, जिससे वह राज्य की स्थिति को नियंत्रित कर सके. इसके अंतर्गत राष्ट्रपति यह भी घोषित कर सकता है कि राज्य की विधान सभा की शक्तियाँ संसद के अधीन होंगी.
यदि प्रोक्लेमेशन को लागू किया जाता है, तो यह छह महीने के लिए प्रभावी रहेगा. यदि संसद दोनों सदनों में प्रोक्लेमेशन के निरंतरता के लिए प्रस्ताव पारित करती है, तो यह और छह महीने के लिए प्रभावी रहेगा. हालांकि, यह प्रोक्लेमेशन अधिकतम तीन वर्षों के लिए ही प्रभावी रह सकता है.