गर्भवती महिलाओं के अधिकार के लिए बने मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 के अनुसार यदि कोई महिला गर्भावस्था के दौरान मातृत्व अवकाश पर है तो उन्हें नौकरी से नहीं निकाला नहीं जा सकता है.अगर कोई संगठन किसी महिला को छुट्टी के दौरान काम से निकाल देता है तो जिम्मेदार व्यक्ति को छह महीने की जेल की सजा का प्रावधान किया गया है. अगर किसी महिला को गर्भावस्था की वजह से अगर नौकरी से निकाल दिया जाता है तो यह हमारे देश में कामकाजी महिलाओं के अधिकारों का भी उल्लंघन माना जाएगा.
2.नहीं बना सकते किसी तरह का दबाव
कई निजी कंपनियों में ऐसा भी देखा गया है कि गर्भवती होने पर महिला को बिना वेतन के लंबी छुट्टी दे दी जाती है. उन पर दबाव बनाया जाता है जॉब से ब्रेक लेने के लिए. कानून के अनुसार ना किसी कामकाजी गर्भवती महिला को छुट्टी देने से मना किया जा सकता है और न ही छुट्टी लेने के लिए दबाव बनाया जा सकता है और ना ही उन्हे बच्चे की डिलीवरी के तुरंत बाद काम दोबारा ज्वाइन करने का दबाव बनाया जा सकता है.
मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट 1961 में कामकाजी महिलाओं को गर्भावस्था के दौरान मातृत्व अवकाश देने का प्रावधान किया गया है. 2017 में इसमें एक संशोधन किया गया था. संशोधित एक्ट के अनुसार हमारे देश में यदि कोई महिला नौकरी करती है तो उसे प्रेगनेंसी के दौरान 26 हफ्ते का वेतन सहित छुट्टी लेने का पूरा अधिकार है. इस अवकाश को वह डिलीवरी से आठ हफ्ते पहले भी ले सकती है और बाकी का लाभ बच्चे के जन्म के बाद ले सकती है.
3. शिशुगृह की सुविधा
मेटरनिटी एक्ट में संशोधन के बाद हमारे देश में 50 से अधिक कर्मचारी वाली कंपनियों में क्रेच (शिशुगृह) बनाना अनिवार्य कर दिया गया था. जिसकी लागत कर्मचारी से ली जाएगी. साल 2017 के संशोधन के बाद कंपनियों को तीन महीने के भीतर इसे लागू करने का आदेश दिया गया था.
4.नर्सिंग ब्रेक की सुविधा
कानून के अनुसार जो महिलाएं प्रेगनेंसी के बाद दोबारा ड्यूटी जॉइन करती हैं, उन्हें वर्कप्लेस पर नर्सिंग ब्रेक की सुविधा मुहैया कराना हर उस कंपनी की जिम्मेदारी होती है, जिनके अंतर्गत 50 से ज्यादा कर्मचारी कार्यरत हैं. मैटरनिटी बेनिफिट एक्ट में यह प्रावधान किया गया है कि महिलाएं काम के बीच अपने बच्चे की देखभाल के लिए नियमित दो ब्रेक ले सकती हैं. नौकरी करने वाली महिलाओं को दोबारा काम पर लौटने के बाद जब तक बच्चा पंद्रह महीने का नहीं होता है उसे नर्सिंग ब्रेक लेने की अनुमति होती है. महिलाओं को ब्रेस्ट फीडिंग के लिए सुरक्षित जगह उपलब्ध करने का भी प्रावधान हैं.
5. हायरिंग करने से नहीं किया जा सकता इंकार
कामकाजी गर्भवती महिलाओं के साथ हायरिंग में भी भेदभाव के मामले सामने आते रहते हैं. पिछले साल इंडियन बैंक ने अपने यहां भर्ती में तीन महीने से अधिक की गर्भवती महिलाओं को नई नियुक्ति के लिए अयोग्य करार दिया था. बैंक ने बच्चे की डिलीवरी के छह हफ्ते बाद मेडिकल सर्टिफिकेट की मांग की थी. नियम के अनुसार अगर कोई महिला गर्भवती है और वह नई नौकरी की तलाश में हैं या उसका चयन हो गया है तो उसे जॉइनिंग करने से रोका नहीं जा सकता. गर्भावस्था को कारण बताकर एक महिला को नौकरी देने से इंकार करना एक नागरिक होने के नाते उसके अधिकारों का उल्लंघन है.