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कब दिया जाता है Shoot at sight का ऑर्डर? जानें इस आदेश पर सुप्रीम कोर्ट का निर्देश और बीएनएसएस के प्रावधान

शूट एट साइट (Shoot at Sight) का अर्थ होता है देखते ही गोली मारना. यह आदेश सरकार या डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट किसी बिगड़ते हालात को नियंत्रित करने के लिए या किसी विशिष्ट व्यक्ति के खिलाफ दे सकती है.

Written by Satyam Kumar |Updated : November 25, 2024 2:48 PM IST

आज संभल जामा मस्जिद के सर्वे के दौरान प्रदर्शन में तीन युवकों की मौत हो गई है. मृतकों के परिजनों ने दावा किया कि प्रदर्शन के दौरान पुलिस ने गोली चलाई, जिसमें उनकी मौत हुई है. पुलिस कमिश्नर ने इन दावों का खंडन करते हुए कहा कि पुलिस फायरिंग में कोई मौत नहीं हुई है. प्रदर्शनकारियों की तरफ से चलाई गई गोली में ही उनकी मौत हुई है. बता दें कि बीते दिन ही जिला अदालत संभल जामा मस्जिद का ASI सर्वे कराने के आदेश दिए. पुलिस ने जुम्मे के नमाज से पहले इलाके में भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) की 163 लागू की गई थी, जो उस क्षेत्र के आस-पास भीड़ के एकत्र होने को निषेध करती है. कर्फ्यू लागू होने के वक्त या जब हालात बेकाबू हो जाए तो पुलिस लॉ एंड ऑर्डर को नियंत्रत करने के लिए पुलिस फायरिंग या शूट एट साइट (Shoot At Sight) की शक्ति का प्रयोग कर सकती है. दंगा, फसाद व स्थिति को नियंत्रित करने के लिए पुलिस फायरिंग कर सकती है, हालांकि इस शूट एट साइट ऑर्डर में किसी को जान से मारना नहीं होता है. आइये जानते हैं शूट एट साइट का अर्थ, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता के आधार पर पुलिस कब इसका प्रयोग कर सकती है और सुप्रीम कोर्ट ने शूट एट साइट को लेकर क्या निर्देश दिए हैं?

क्या होता है शूट एट साइट ऑर्डर?

हम सब, कभी- ना- कभी इस खबर से रूबरू हुए होंगे कि कुख्यात अपराधी को मारने के लिए सरकार ने शूट एट साइट का आदेश जारी किया है. अब शूट एट साइट में साइट की अंग्रेजी को लेकर कइयों को ये कंफ्यूजन हो सकता है कि इसका अर्थ किसी साइट पर गोली चलाना है या किसी को देखते ही गोली मार देना है. चूंकि ये बेहद संवेदनशील मामला किसी व्यक्ति के जीवन के अधिकार से भी जुड़ा है, तो हम इसका अर्थ बता देते हैं. शूट एट साइट (Shoot at Sight) का अर्थ होता है देखते ही गोली मारना. यह आदेश सरकार किसी बिगड़ते हालात को नियंत्रित करने के लिए दे सकती है. हाल ही में बहराइट हिंसा में भेड़िया को मारने के लिए यूपी सरकार ने शूट एट साइट ऑर्डर जारी किया था. दंगा, फसाद और धारा 163 लागू होने के दौरान हिंसक भीड़ को नियंत्रित करने के लिए पुलिस इसका प्रयोग कर सकती है. डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट भी जिले की भयावह इस स्थिति को देखकर शूट एट साइट का आदेश जारी कर सकते हैं.

बीएनएसएस की धारा 163:  उपद्रव या गंभीर खतरे की स्थिति

बीएनएसएस की धारा 163 आपातकालीन स्थितियों के दौरान आदेश जारी करने की अनुमति देती है, जिसमें विशिष्ट व्यक्तियों या क्षेत्रों के लिए कर्फ्यू शामिल है.

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बीएनएसएस की धारा 163 के अनुसार, उपद्रव को नियंत्रित करने के लिए डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट (DM) शूट एट साइट का आदेश जारी कर सकते हैं. जयंतीलाल मोहनलाल पटेल बनाम एरिक रेनिसन और अन्य  मामले में गुजरात हाईकोर्ट ने कहा है कि गुजरात में जांच एजेंसियों के पास केवल कर्फ्यू आदेश का उल्लंघन करने पर किसी व्यक्ति को गोली मारने का अधिकार नहीं है. यह निर्णय कर्फ्यू लागू करने और ऐसी स्थितियों के दौरान नागरिकों के अधिकारों की रक्षा करने में राज्य की शक्ति की सीमाओं पर जोर देता है.

बीएनएस की धारा 43: गिरफ्तारी कैसे की जाएगी?

भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता 2023 की धारा 43 (BNSS, 2023 Section 43) में,  पुलिस कैसे किसी आरोपी को गिरफ्तार करेगी, इसका जिक्र किया गया है. बीएनएसएस की धारा 43 (2) में कहा गया है कि अगर व्यक्ति अपनी गिरफ्तारी का बलपूर्वक विरोध करता है, या गिरफ्तारी से बचने का प्रयास करता है, तो ऐसा पुलिस अधिकारी या अन्य व्यक्ति गिरफ्तारी करने के लिए सभी आवश्यक साधनों का उपयोग कर सकता है. आगे बीएनएसएस की धारा 43(3) में पुलिस को गिरफ्तारी के वक्त अपराध की गंभीरता को देखकर कार्रवाई करने के निर्देश दिए हैं. वहीं बीएनएसएस की धारा 46 (4) कहती है, "इस धारा में ऐसा कुछ भी नहीं है जो किसी ऐसे व्यक्ति की मृत्यु का कारण बनने का अधिकार देता हो जो मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध का आरोपी न हो."

बीएनएसएस की धारा 46(4), पुलिस को किसी व्यक्ति के जान जाने का कारण बनने पर रोक लगाती है.

शूट एट साइट आदेश पर SC का निर्देश

जस्टिस वाईवी चंद्रचूड़ की अगुआई में पश्चिम बंगाल राज्य बनाम शेव मंगल सिंह एवं अन्य मामले में सर्वोच्च न्यायालय के 1981 के फैसले में कार्यकारी दबाव और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के बीच संतुलन को संबोधित किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा दो भाइयों को गोली मारने वाले पुलिस अधिकारी को बरी करने के फैसले को बरकरार रखा, जिसमें आईपीसी की धारा 76 के तहत उपायुक्त के गोली चलाने के आदेश को औचित्य के रूप में उद्धृत किया गया था. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने नक्सल आंदोलन के कारण उत्पन्न अराजकता के बीच डिप्टी कमिश्नर के आदेश के तहत औचित्य का हवाला देते हुए दो भाइयों को गोली मारने वाले पुलिस अधिकारी को बरी कर दिया था.