नई दिल्ली: हमारे समाज में मानव शरीर के प्रति होते गंम्भीर अपराधों में मुख्यत: गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) और हत्या (Murder) है.आज, राज-द्रोह (Sedition) को छोड़कर, किसी अन्य व्यक्ति का मर्डर सबसे गंभीर अपराधों में से एक है.अपराध को मानव वध (Homicide) के रूप में जाना जाता है यानी, दूसरे इंसान की हत्या करना।
कल्पेबल होमीसाइड और मर्डर दो ऐसे शब्द हैं, जिनका इस्तेमाल आमतौर पर इस अपराध को परिभाषित करने के लिए किया जाता है. इन गंभीर अपराधों के पीड़ितों को न्याय प्रदान करते समय इन दो शब्दों के बीच का अंतर कानूनी व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण है.
किसी भी अन्य अपराध की तरह, मर्डर एक व्यक्ति के साथ-साथ पूरे समाज के लिए एक अपराध है. भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code -IPC) में गैर इरादतन हत्या और हत्या के बारे में बताया गया है ।
यह धारा कल्पेबल होमीसाइड को परिभाषित करती है, ‘कोई भी व्यक्ति किसी को मारने के इरादे से एक कार्य करता है, और वो कार्य उसकी मौत का कारण बनता है, या मारने के इरादे से ऐसी शारीरिक चोट पहुंचाता है. जिससे उसकी मौत होने की संभावना है, या इस ज्ञान के साथ कार्य करता है की इस कार्य से उसकी मौत होने की संभावना है, तो वह कल्पेबल होमीसाइड का अपराध करता है.’
इस धारा के तहत कतिपय अपवादित दशाओं को छोड़कर आपराधिक मानव वध हत्या है, यदि वह कार्य, जिसके द्वारा मृत्यु कारित की गई हो, मृत्यु कारित करने के आशय से किया गया हो, या
1-जिस कार्य से मृत्यु हुई है वह कार्य मारने के इरादे से किया गया है, या
2-यदि यह ऐसी शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से किया जाता है, जिसे अपराधी जानता है कि इससे उस व्यक्ति की मृत्यु होने की संभावना है जिसे नुकसान हुआ है, या
3-यदि यह किसी व्यक्ति को शारीरिक चोट पहुंचाने के इरादे से किया गया है और जो शारीरिक चोट पहुंचाई गई है वो आर्डिनरी कोर्स ऑफ नेचर में मृत्यु का कारण बनने के लिए पर्याप्त है, या
4-यदि कार्य करने वाला व्यक्ति जानता है कि यह इतना ज्यादा खतरनाक है कि यह सभी संभावनाओं (probability) में, मृत्यु का कारण बनता है, या ऐसी शारीरिक चोट का कारण बनता है जिससे मृत्यु होने की संभावना है, और बिना किसी बहाने के मौत और चोट के जोखिम के लिए ऐसा कार्य करता है.
गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) और हत्या (Murder) में अंतर
इनके अंतर सूक्ष्म हैं. कल्पेबल होमीसाइड में, एक निश्चित (डेफिनिट) मेन्स रिया (mens rea) है, पीड़ित को मारने का एक दुर्भावनापूर्ण (malicious) इरादा है, और पीड़ित की मृत्यु हो जाती है, लेकिन होमीसाइड करने वाला व्यक्ति मृत्यु के बारे में निश्चित नहीं हो सकता है.
अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गैर इरादतन हत्या के संबंध में कई जगहों पर संभावना शब्द का इस्तेमाल अनिश्चितता को दिखाता है. इसमें कहा गया है कि IPC की धारा 300 हत्या को परिभाषित करती है, हालांकि इसमें संभावित शब्द के उपयोग से परहेज किया जाता है.
भारतीय दंड संहिता (IPC) में धारा 304 ( गैर इरादतन हत्या) सजा का प्रावघान
धारा- 304 में सजा का प्रावधान है, इसमें सजा 302 की अपेक्षा थोड़ा कम दंड दिया जाता है .जिसमे आजीवन कारावास की भी सजा दी जा सकती है या उस व्यक्ति को किसी एक अवधि के लिए की सजा होगी जिसे 10 साल तक बढ़ाया जा सकता है, और साथ ही वह आर्थिक दंड के लिए भी उत्तरदायी होगा. यह अपराध समझौते योग्य नहीं हैं.
यह एक गैर जमानती अपराध बताया गया है.यदि कार्य ज्ञान के साथ किया जाता है कि यह मृत्यु का कारण बनने की संभावना है, लेकिन मृत्यु आदि का कारण बनने के किसी भी इरादे के बिना भी आजीवन कारावास या 10 वर्ष तक एंव अर्थदंड भी या दोनो सत्र न्यायालय के विचारानुसार दिए जा सकते है.
भारतीय दंड संहिता (IPC) में धारा 302 (हत्या) सजा का प्रावघान
जिसने भी हत्या की है, उसे या तो आजीवन कारावास या मृत्युदंड (हत्या की गंभीरता के आधार पर) के साथ - साथ जुर्माने की सजा दी जाएगी.हत्या से संबंधित मामलों में न्यायालय के लिए विचार का प्राथमिक बिंदु अभियुक्त का इरादा और उद्देश्य है.
यही कारण है कि यह महत्वपूर्ण है कि अभियुक्त का उद्देश्य और इरादा इस धारा के तहत मामलों में साबित हो।यह एक गैर जमानती और संज्ञेय अपराध है,जो जिला एवं सेशन न्यायाधीश द्वारा विचारणीय है.