अनन्या श्रीवास्तव
विवाह का बंधन एक पवित्र बंधन है और देश के सभी नागरिकों को अपनी पसंद से शादी करने की आजादी है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) की धारा 5 के तहत यह माना गया है कि हिंदू विवाह एक धार्मिक समारोह होने के साथ-साथ एक संस्कार भी है। हिंदू विवाह अधिनियम में 'शून्य विवाह' (Void Marriage) और 'शून्यकरणीय विवाह' (Voidable Marriage) के बारे में बात की गई है। 'वॉइड' और 'वॉइडेबल' शादी क्या हैं और इनके बीच का मूल अंतर क्या है, आइए जानते हैं.
'शून्य विवाह' यानी 'वॉइड मैरेज' के बारे में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 (Section 11 of The Hindu Marriage Act) में बताया गया है। इस अधिनियम की धारा 11 के अनुसार वो शादी अमान्य या शून्य मानी जाएगी जो नीचे दी गई परिस्थितियों में हुई होगी.
'शून्यकरणीय विवाह' यानी 'वॉइडेबल मैरेज' वो विवाह है जिसे खत्म करने के लिए कानून की मदद लेनी पड़ती है और यह तभी अमान्य मानी जाएगी जब एक अदालत इसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 (Section 12 of Hindu Marriage Act) शून्य करार देगी।
इस धारा के तहत वो क्या शर्ते हैं जिनके आधार पर अदालत एक विवाह को अमान्य कर सकता है, जानिए...
इस अधिनियम की धारा 12 में यह भी बताया गया है कि वो कौनसी स्थितियां हैं, जिनमें शादी खत्म करने की मांग अदालत से नहीं की जा सकती है; इन स्थितियों के बारे में भी जानते हैं...
शादी खत्म करने हेतु याचिका को अदालत से सिर्फ तभी मंजूरी मिल सकती है जब उन्हें यह पता हो कि याचिकाकर्ता ने जो शिकायतें उठाई हैं, वो उनके बारे में पहले से नहीं जानते थे और फ्रॉड के बारे में पता होने के बाद याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाएं हों।
वॉइड और वॉइडेबल शादी के बीच मूल अंतर यही है कि जहां 'वॉइडेबल विवाह' वो है जिसे खत्म करने के लिए कानूनी प्रक्रिया को पूरा करना होता है वहीं 'वॉइड विवाह' में शादी को अमान्य करार देने के लिए तलाक की आवश्यकता नहीं होती है।
वॉइड विवाह में पत्नी मेंटेनेंस की मांग नहीं कर सकती है लेकिन वॉइडेबल विवाह में यह डिमांड रखी जा सकती है; वॉइड विवाह में पति-पत्नी का दर्जा नहीं होता बल्कि वॉइडेबल विवाह में ऐसा नहीं है; पुरुष और महिला के पास पति और पत्नी का दर्जा हमेशा रहता है।