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हिंदू विवाह अधिनियम के तहत 'वॉइड' और 'वॉइडेबल' शादी के बीच क्या है अंतर?

हिंदू धर्म में विवाह का बहुत महत्व है और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शून्य विवाह (वॉइड मैरेज) और शून्यकरणीय विवाह (वॉइडेबल मैरेज) के बारे में बात की गई है। दोनों में अंतर क्या है, आइए जानते हैं

The Hindu Marriage Act Difference between Void and Voidable Marriage

Written by My Lord Team |Published : June 21, 2023 6:24 PM IST

अनन्या श्रीवास्तव

विवाह का बंधन एक पवित्र बंधन है और देश के सभी नागरिकों को अपनी पसंद से शादी करने की आजादी है। हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 (Hindu Marriage Act, 1955) की धारा 5 के तहत यह माना गया है कि हिंदू विवाह एक धार्मिक समारोह होने के साथ-साथ एक संस्कार भी है। हिंदू विवाह अधिनियम में 'शून्य विवाह' (Void Marriage) और 'शून्यकरणीय विवाह' (Voidable Marriage) के बारे में बात की गई है। 'वॉइड' और 'वॉइडेबल' शादी क्या हैं और इनके बीच का मूल अंतर क्या है, आइए जानते हैं.

क्या होता है 'शून्य विवाह'?

'शून्य विवाह' यानी 'वॉइड मैरेज' के बारे में हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 11 (Section 11 of The Hindu Marriage Act) में बताया गया है। इस अधिनियम की धारा 11 के अनुसार वो शादी अमान्य या शून्य मानी जाएगी जो नीचे दी गई परिस्थितियों में हुई होगी.

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  • अगर कोई आदमी या औरत बिना तलाक लिए, अपने पार्टनर के होते हुए दूसरी शादी करता है, तो वो दूसरी शादी शून्य साबित होगी; कानूनी तौर पर इसे मान्यता नहीं दी जाएगी।
  • यदि कोई दंपति अपने रीति-रिवाजों के विपरीत, किसी निषिद्ध रिश्ते में हैं, तो भी उनकी शादी को मान्यता नहीं मिल सकेगी।
  • यदि आप किसी ऐसे इंसान से शादी करते हैं जो आपका सपिंड (Sapinda) हो, तो ऐसी शादी हिंदू विवाह अधिनियम के तहत अमान्य माना जाएगी यानी आप अपने ही परिवार के किसी सदस्य से शादी नहीं कर सकते हैं।

'शून्यकरणीय विवाह' 

'शून्यकरणीय विवाह' यानी 'वॉइडेबल मैरेज' वो विवाह है जिसे खत्म करने के लिए कानून की मदद लेनी पड़ती है और यह तभी अमान्य मानी जाएगी जब एक अदालत इसे हिंदू विवाह अधिनियम की धारा 12 (Section 12 of Hindu Marriage Act) शून्य करार देगी।

इस धारा के तहत वो क्या शर्ते हैं जिनके आधार पर अदालत एक विवाह को अमान्य कर सकता है, जानिए...

  • किसी मामले में यदि प्रतिवादी ने याचिकाकर्ता के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाए हैं और न बनाना चाह रहा है, तो याचिकाकर्ता अदालत से तलाक की मांग कर सकते हैं।
  • शादी के समय पर यदि कोई इंसान मानसिक रूप से स्वस्थ नहीं है और शादी के लिए खुद रजामंदी नहीं दे सकता है, तो उस मामले में भी तलाक दिया जा सकता है।
  • यदि किसी की शादी की उम्र नहीं हुई है और उसकी जबरदस्ती शादी करवाई गई है, वो भी इस शादी को अमान्य करने के लिए अदालत की मदद ले सकता है।
  • कोई महिला यदि शादी कर रही है लेकिन गर्भवती है और होने वाले बच्चे का पिता कोई और है, ऐसे में भी शादी तोड़ी जा सकती है।

इस अधिनियम की धारा 12 में यह भी बताया गया है कि वो कौनसी स्थितियां हैं, जिनमें शादी खत्म करने की मांग अदालत से नहीं की जा सकती है; इन स्थितियों के बारे में भी जानते हैं...

  • यदि आपके साथ जबरदस्ती हुई है या धोखे से आपकी शादी हुई है तो पता लगने के एक साल के अंदर आपको शादी खत्म करने की याचिका दायर करनी होगी, एक साल के बाद आप ऐसा नहीं कर सकते हैं।
  • धोखे से या जबरदस्ती शादी होने के बाद, इस बात को जानते हुए भी यदि एक पति-पत्नी साथ रह रहे हैं, तो वो उस फ्रॉड के आधार पर शादी खत्म करने की मानद नहीं कर सकते हैं।

शादी खत्म करने हेतु याचिका को अदालत से सिर्फ तभी मंजूरी मिल सकती है जब उन्हें यह पता हो कि याचिकाकर्ता ने जो शिकायतें उठाई हैं, वो उनके बारे में पहले से नहीं जानते थे और फ्रॉड के बारे में पता होने के बाद याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी के साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाएं हों।

'वॉइड' और 'वॉइडेबल' विवाह में अंतर?

वॉइड और वॉइडेबल शादी के बीच मूल अंतर यही है कि जहां 'वॉइडेबल विवाह' वो है जिसे खत्म करने के लिए कानूनी प्रक्रिया को पूरा करना होता है वहीं 'वॉइड विवाह' में शादी को अमान्य करार देने के लिए तलाक की आवश्यकता नहीं होती है।

वॉइड विवाह में पत्नी मेंटेनेंस की मांग नहीं कर सकती है लेकिन वॉइडेबल विवाह में यह डिमांड रखी जा सकती है; वॉइड विवाह में पति-पत्नी का दर्जा नहीं होता बल्कि वॉइडेबल विवाह में ऐसा नहीं है; पुरुष और महिला के पास पति और पत्नी का दर्जा हमेशा रहता है।