Advertisement

किन आधारों पर मुस्लिम महिला दे सकती है अपने पति को न्यायिक रूप से तलाक

मुस्लिम समाज में एक विवाह का कानूनी समापन तलाक के रूप में है. जब व्यक्तिगत विवाद के कारण पति / पत्नी एक साथ रहने के बजाए अलग होने का फैसला करते हैं, तो इस्लाम में तलाक का प्रावधान किया गया है. इस्लाम में तलाक निजी कानूनों द्वारा शासित है, जिसे पति या पत्नी के द्वारा शुरू किया जा सकता है.

Written by My Lord Team |Published : February 1, 2023 6:49 AM IST

नई दिल्ली: हमारे देश में हर धर्म के लिए अपने व्यक्तिगत कानून हैं जो उनके दीवानी (Civil) और पारिवारिक मामलों से संबंधित हैं. इसलिए मुसलमानों के विवाह और तलाक के संबंध में अपने व्यक्तिगत कानून हैं, जैसे हिंदुओं और ईसाइयों के अपने व्यक्तिगत कानून हैं.

मुस्लिम कानून के तहत तलाक या तो न्यायिक प्रक्रिया या गैर-न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है, लेकिन हम अभी न्यायिक प्रक्रिया के बारे में समझेंगे और विशेष रूप से मुस्लिम विवाह विघटन अधिनियम, 1939 के सन्दर्भ में समझेंगे, जो मुस्लिम महिला को अपने पति को न्यायिक रूप से तलाक देने का अधिकार देता है.

मुस्लिम समाज में एक विवाह का कानूनी समापन तलाक के रूप में है. जब व्यक्तिगत विवाद के कारण पति / पत्नी एक साथ रहने के बजाए अलग होने का फैसला करते हैं, तो इस्लाम में तलाक का प्रावधान किया गया है. इस्लाम में तलाक निजी कानूनों द्वारा शासित है, जिसे पति या पत्नी के द्वारा शुरू किया जा सकता है.

Also Read

More News

इस्लाम में न्यायिक तलाक पति और पत्नी को अलग करने का एक तरीका है, जो अदालत द्वारा उन्हें नियंत्रित निजी कानूनों के आधार पर लागू किया जाता है. मुस्लिम विवाह अधिनियम, 1939 उन आधारों से संबंधित कानून बताता है जिन पर न्यायिक तलाक अदालत द्वारा सुनाया जा सकता है.

इस अधिनियम के अनुसार कोई भी विवाहित मुस्लिम महिला नीचे उल्लिखित आधार पर अपने पति को तलाक देने के लिए याचिका दायर कर सकती है और यदि अदालत उचित समझे तो तलाक की decree पारित की जाती है:

अगर पत्नी को पति का ठिकाना चार साल की अवधि के लिए ज्ञात नहीं है.

पति ने दो साल की अवधि के लिए पत्नी को भरण-पोषण देने में विफल रहा है.

पति को सात साल या उससे अधिक की अवधि के लिए कारावास की सजा सुनाई गई है.

पति तीन साल की अवधि के लिए उचित कारण के बिना अपने वैवाहिक दायित्वों को पूरा करने में विफल रहा है.

विवाह के समय पति नपुंसक था और अब भी नपुंसक है.

पति दो साल की अवधि के लिए पागल हो गया है या एक विषाणुजनित यौन रोग से पीड़ित है.

15 वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले उसके पिता या अन्य अभिभावक द्वारा विवाह में दिए जाने के बाद, महिला के अठारह वर्ष की आयु प्राप्त करने से पहले विवाह को अस्वीकार कर दिया.

तलाक के लिए एक बड़ा कारण क्रूरता है, इस अधिनियम में भी कहा गया है की जब एक पति अपनी पत्नी के तरफ क्रूरता से पेश आता है तब पत्नी उसे तलाक़ दे सकती और कोर्ट में इसके लिए याचिका भी दायर कर सकती है.

अधिनियम के अनुसार क्रूरता

जब पति आदतन अपनी पत्नी पर हमला करता है या मानसिक क्रूरता से उसके जीवन को दयनीय बना देता है, भले ही ऐसा मानसिक क्रूरता शारीरिक दुर्व्यवहार की श्रेणी में न आता हो, लेकिन इस अधिनियम के अंतर्गत वह क्रूरता ही माना जाएगा.

जब पति दुष्ट प्रतिष्ठा की महिलाओं के साथ संबंध या ख़राब जीवन व्यतीत करता है.

जब पति अपनी पत्नी को अनैतिक जीवन जीने के लिए मजबूर करने का प्रयास करता है.

पति अपनी पत्नी की संपत्ति को हड़प लेता है या उसे उस संपत्ति पर अपने कानूनी अधिकारों का प्रयोग करने से रोकता है.

जब एक पति अपनी पत्नी को उसके धार्मिक पेशे या अभ्यास के पालन में बाधा डालता है या उसे रोकता है.

यदि उसकी एक से अधिक पत्नियाँ हैं, लेकिन इसके बावजूद वह कुरान के आदेशों के अनुसार उनके साथ समान व्यवहार नहीं करता है.

ये वे आधार हैं जिन पर एक मुस्लिम महिला अपने पति को तलाक देने के लिए अदालत में याचिका दायर कर सकती है. हालांकि एक बात का ध्यान रखने की ज़रुरत है कि ये नियम केवल विवाहित मुस्लिम महिला पर लागू होते हैं, न कि इस्लाम के अलावा किसी अन्य धर्म की महिला पर.