नई दिल्ली: हमारे देश में विधिविरुद्ध जमाव को एक अपराध माना गया है. आईपीसी के तहत और सीआरपीसी के तहत विधिविरुद्ध जमाव पांच या पांच से अधिक व्यक्तियों का जमाव है जिसका उद्देश्य समाज में गैर कानूनी कृत करके अशांति फैलाना और संकट पैदा करना होता है. आईपीसी में जहां विधिविरुद्ध जमाव से संबंधित अपराध और सजा का प्रावधान किया गया है वहीं सीआरपीसी में यह बताया गया है एक मजिस्ट्रेट किस तरह से सिविल बल के प्रयोग से ऐसे जामव को खत्म कर सकता है.
इस धारा के अंतर्गत दो उपधाराएं दी गई हैं.
उपधारा -1 के अनुसार यदि किसी कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के पुलिस अधिकारी के अनुपस्थिति में कोई विधिविरुद्ध जमाव हो रहा है, या पांच या अधिक व्यक्तियों का कोई ऐसा जमाव हो रहा है, जिससे लोकशान्ति विक्षुब्ध होने की संभावना है, तो ऐसे में इस धारा के अनुसार पुलिस अधिकारी को यह शक्ति होती है कि वह उस विधि विरुद्ध जमाव को तितर-बितर होने का समादेश दे सकता है।
पुलिस अधिकारी के समादेश के बाद ऐसे जमाव के सदस्यों का यह कर्तव्य होगा कि वे तदनुसार तितर-बितर हो जाएं. यानि कि उस जमाव को वो खत्म कर दें.
उपधारा -2 के तहत अगर ऐसा समादेश दिए जाने के बाद भी ऐसा कोई जमाव तितर बितर नहीं होता है या उन्हे देख कर लग रहा है कि वो समादेश का पालन न करके उस जमाव को बनाए रखेंगे और उस जमाव से अशांति की स्थिति बन सकती है तो उपधारा 1- में बताए गए कोई कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस थाने के अधिकारी उस जमाव को खत्म करने के लिए बल का प्रयोग कर सकता है.
साथ ही अगर उस वक्त उनके पास उतने लोग नहीं कि उस जमाव को खत्म करने के लिए तो ऐसे में वो किसी ऐसे पुरुष का इस्तेमाल कर सकते हैं जो किसी आर्मी का हिस्सा या सदस्य ना हो. अगर जरूरत पड़े तो वो लोग जो उसमें शामिल हैं उन्हें गिरफ्तार कर उन्हें कानूनी रूप से दंडित भी किया जा सकता है.
जमाव को खत्म करने के लिए सशस्त्र बल का प्रयोग करना. इस धारा में तीन उपधाराएं दी गई हैं जो इस प्रकार हैं.
उपधारा -1 यदि कोई ऐसा विधि विरुद्ध जमाव है जिसे तितर बितर नहीं किया जा सकता है केवल समादेश देकर,और उसे लोगों की सुरक्षा के लिए तितर बितर करना आवश्यक है तो हाईएस्ट रैंक के कार्यपालक मजिस्ट्रेट जो वहां मौजूद हैं वो सशस्त्र बल का प्रयोग कर उस जमाव को तितर बितर कर सकते हैं.
उपधारा - 2 इस तरह के एक मजिस्ट्रेट के पास यह अधिकार होता है कि वह अपने आदेश के तहत सशस्त्र बलों की मदद से सभा को भंग करने के लिए वर्तमान सशस्त्र बल समूह के कमांडिंग अधिकारी से कह सकते हैं. अगर आवश्यक हो, तो वहां मौजूद अधिकारी को इसमें शामिल व्यक्तियों को गिरफ्तार करने और उन्हें हटाने के लिए कह सकते है. मजिस्ट्रेट कानून के अनुसार गैरकानूनी सभा के सदस्यों या सदस्यों के हिस्से को दंडित कर सकता है.
उपधारा- 3 सशस्त्र बल का प्रत्येक अधिकारी जो उस विधिविरुद्ध जमाव को तितर बितर करने में लगे हैं. उनकी यह जिम्मेदारी होती है कि वह बल को उतना ही प्रयोग करेंगे और शरीर और संपत्ति को उतना ही नुकसान पहुंचाएंगे जितना उसमें शामिल लोगों को गिरफ्तार करने के लिए या उस जमाव को तितर बितर करने के लिए जरुरी है.
जमाव को तितर बितर करने के लिए सशस्त्र बल के कुछ अधिकारियों को कुछ शक्तियां दी गई हैं. जिसके बारे में धारा 131 में बताया गया है.
सशस्त्र बलों का कोई भी कमीशन प्राप्त या राजपत्रित अधिकारी अपने अधीन सशस्त्र बलों की मदद लेकर ऐसी किसी सभा को भंग कर सकता है जिसके कारण सार्वजनिक सुरक्षा खतरे में आ सकती है. इसके अलावा वो इस तरह के गैरकानूनी सभा में शामिल किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार और कैद भी कर सकते हैं.
लेकिन उस समय अगर, जब वह इस धारा के अधीन कार्य कर रहा है, कार्यपालक मजिस्ट्रेट से संपर्क हो जाता है तो वह करेगा. उसके बाद मजिस्ट्रेट के निर्देशों का पालन करेगा और इस पर विचार करेगा कि क्या मजिस्ट्रेट कार्रवाई जारी रखना चाहता है या नहीं.
इसमें पूर्ववर्ती धाराओं के अधीन किए गए कार्यों के लिए अभियोजन से संरक्षण के बारे में बताया गया है. जिसके अनुसार धारा 129, धारा 130 और धारा 131 के तहत कार्रवाई करने वाले किसी भी व्यक्ति के खिलाफ किसी भी आपराधिक न्यायालय में कोई मुकदमा नहीं चलाया जाएगा. लेकिन, इस प्रावधान के कुछ अपवाद हैं. जिसके अनुसार मुकदमा तब ही स्थापित किया जाएगा:
अगर केंद्र सरकार ने किसी अधिकारी या सशस्त्र बलों के सदस्य के खिलाफ इस तरह के मुकदमे को मंजूरी दी है, या फिर यदि राज्य सरकार ने किसी अन्य मामले में ऐसे अभियोजन की स्वीकृति दी हो.
1. कोई कार्यपालक मजिस्ट्रेट या पुलिस अधिकारी जिसने उपरोक्त धाराओं के तहत नेकनीयती से काम किया हो;
2. कोई भी व्यक्ति जो धारा 129 और धारा 130 के तहत बुलाया गया कोई भी व्यक्ति जो अनुपालन में सद्भावना से कार्य कर रहा है;
3. सशस्त्र बलों का कोई भी अधिकारी जिसने धारा 131 के तहत नेक नीयत से कोई कार्रवाई नहीं की है;
4. सशस्त्र बलों का कोई भी सदस्य जिसने ऐसा काम किया है जिसे वह आज्ञाकारिता के तहत करने के लिए बाध्य था, यह नहीं माना जाएगा कि उसने अपराध किया है.
इस धारा का उद्देश्य है पहले की धाराओं में प्रयुक्त कुछ शब्दों के अर्थ को परिभाषित करना है. वो शब्द इस प्रकार है:
1.“सशस्त्र बल” का अर्थ तीनों-नौसेना, सैन्य और वायु सेना से है, जो भूमि बलों के रूप में काम कर रहे हैं. इस वाक्य के अनुसार इसमें संघ के किसी भी अन्य संचालित सशस्त्र बल भी शामिल हैं;
2.“अधिकारी” का उपयोग सशस्त्र बलों के संबंध में किया जाता है. एक कमीशन अधिकारी, एक राजपत्रित अधिकारी, एक वारंट अधिकारी, एक गैर-कमीशन अधिकारी और एक अराजपत्रित अधिकारी;
3.“सदस्य” किसी भी व्यक्ति को दर्शाता है जो अधिकारी के अलावा सशस्त्र बलों का सदस्य है.
वहीं आईपीसी की धारा 145 में यह प्रावधान किया गया है कि किसी ऐसे विधिविरुद्ध जमाव में जिसके कारण समाज की शांति भंग हो सकती है यह जानते हुए भी शामिल होना या उसमें बने रहना कि उस विधिविरुद्ध जमाव को बिखरे जाने का आदेश दिया गया है, तो उसे अपराध माना जाएगा. जिसके लिए दोषी को 10 साल की जेल हो सकती है या जुर्माना लगाया जा सकता है या दोनों से ही दंडित किया जा सकता है.