
शादी करके धर्म परिवर्तन कराना
हाल ही में मद्रास हाई कोर्ट ने अंतरधार्मिक विवाह मामलों को लेकर अहम टिप्पणी की है. अदालत ने विवाह के बाद पति का पत्नी को या पत्नी द्वारा पति को अपने धर्म में परिवर्तन कराने को मानसिक क्रूरता (Mental Cruelty) और जीवन के अधिकार (Right To Life) का उल्लंघन बताया है.

मुस्लिम पति की अपील खारिज
मद्रास हाई कोर्ट ने पति की तलाक की मंजूरी के खिलाफ अपील खारिज करते हुए कहा कि अंतर-धार्मिक विवाह में एक साथी को दूसरे धर्म में परिवर्तित करने के लिए लगातार मजबूर करना क्रूरता के समान है.

विवाह एक पवित्र बंधन
अदालत ने यह भी कहा कि विवाह एक पवित्र बंधन है और इसे किसी भी धर्म के नाम पर तोड़ना उचित नहीं है. जब एक व्यक्ति को अपने धर्म को बदलने के लिए मजबूर किया जाता है, तो यह विवाह की नींव को कमजोर करता है. शादी के सभी व्यक्तिगत कानूनों के तहत विवाह दो आत्माओं का पवित्र मिलन है.

हिंदू पत्नी का धर्म परिवर्तन
आगे बढ़े उससे पहले थोड़ा हिंट देते चलें, इस मामले में, हिंदू पत्नी ने मुस्लिम पति पर उसे इस्लाम में धर्म परिवर्तन के लिए लगातार मजबूर करने और परित्याग करने का आरोप लगाया था.

तलाक की मांग
पत्नी ने इन आधार पर फैमिली कोर्ट में तलाक की अर्जी दी. अदालत ने पत्नी के दावों को उचित ठहराते हुए तलाक की रजामंदी दे दी. पति ने इस फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती दी थी.

जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन
अदालत ने यह भी कहा कि जब किसी व्यक्ति को अपने धर्म को मानने और अभ्यास करने की अनुमति नहीं दी जाती है, तो यह उनके आर्टिकल 21 के तहत मिले जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन है.

तलाक का फैसला बरकरार
मद्रास हाई कोर्ट ने मुस्लिम पति की अपील खारिज करते हुए फैमिली कोर्ट के तलाक के फैसले को बरकरार रखा है.