नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने Allahabad High Court परिसर से मस्जिद Mosque हटाने के 2017 के हाईकोर्ट के फैसले में दखल देने से इंकार कर दिया है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसले में दखल करने का कोई उचित कारण नजर नहीं आता है. जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस सी टी रविकुमार की बेंच ने याचिकाकर्ताओं को मस्जिद को हटाने के लिए तीन महीने का समय देते हुए कहा है कि 3 महीने की अवधि के भीतर निर्माण नहीं हटाया जाता है, तो हाईकोर्ट सहित अधिकारियों को यह अधिकार होगा कि वे उन्हें हटा दें या गिरा दें.
पीठ ने याचिकाकर्ता वक्फ मस्जिद हाईकोर्ट और उत्तर प्रदेश सुन्नी वक्फ बोर्ड को मस्जिद के लिए दूसरी जगह ज़मीन की मांग के लिए राज्य सरकार के पास अपना पक्ष रखने की इजाज़त दी है.
गौरतलब है कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने वर्ष 2017 में अपने आदेश में कहा कि मस्जिद एक सरकारी पट्टे की भूमि में स्थित है और अनुदान को 2002 में बहुत पहले ही रद्द कर दिया गया था. बेंच ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 2012 में भूमि की बहाली की पुष्टि की थी और इसलिए, याचिकाकर्ता परिसर पर किसी कानूनी अधिकार का दावा नहीं कर सकते हैं.
वक्फ मस्जिद की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने मामले में पक्ष रखा. उन्होने कहा कि इलाहाबाद हाईकोर्ट की वर्तमान इमारत का निर्माण वर्ष 1861 में किया गया था, तब से मुस्लिम वकील, मुस्लिम क्लर्क, मुस्लिम मुवक्किल शुक्रवार को उत्तरी कोने इस जगह पर जुम्मे की नमाज अदा कर रहे थे.
बाद में जिस बरामदे में नमाज पढ़ी जा रही थी, उसके पास जजों के चैंबर बना दिए गए. मुस्लिम वकीलों के प्रतिनिधिमंडल के अनुरोध पर हाईकोर्ट रजिस्ट्रार ने नमाज़ अदा करने के लिए दक्षिणी छोर पर एक और स्थान प्रदान किया.
यह जमीन एक सरकारी अनुदान की जमीन जिसे परिसर में एक निजी मस्जिद में नमाज़ अदा करने के लिए दी गई थी. 1988 में सरकार की ओर से अगले 30 वर्षों के लिए पट्टा नवीनीकृत किया गया था, जो 2017 में समाप्त होना था. लेकिन इससे पहले ही 15 दिसंबर 2000 को रद्द कर दिया गया.