नई दिल्ली: मोदी सरकार द्वारा 8 नवंबर 2016 को लिया गया नोटबंदी का फैसला सही था. सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य सविधान पीठ ने इस मामले को चुनौति देने वाली सभी 58 याचिकाओं को खारिज करते हुए ये महत्वपूर्ण फैसला दिया है.
विवेक नारायण शर्मा बनाम भारत संघ और अन्य मामले पर फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य पीठ ने कई महत्वपूर्ण बाते कही है.
इस पीठ में जस्टिस एस अब्दुल नज़ीर के साथ जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस एएस बोपन्ना, जस्टिस वी रामासुब्रमण्यन और जस्टिस बीवी नागरत्ना शामिल रहें.
पीठ के दूसरे जस्टिस बी आर गवई ने कहा कि आरबीआई के पास नोटबंदी करने की कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है.
पीठ ने कहा कि केंद्र को उपलब्ध शक्ति का मतलब यह नहीं हो सकता है कि यह केवल बैंक नोटों की विशिष्ट श्रृंखला के संबंध में है.यह बैंक नोटों की सभी श्रृंखलाओं के लिए है
पीठ ने कहा कि आरबीआई अधिनियम की धारा 26 (2) के तहत कोई अत्यधिक प्रतिनिधित्व नहीं है कि उसे रद्द नहीं किया जा सकता.
पीठ ने अपने फैसले में कहा कि नोटबंदी की अधिसूचना वैध है और आनुपातिकता की कसौटी पर खरी उतरती है. नोटों के आदान-प्रदान की अवधि को अनुचित नहीं कहा जा सकता.
पीठ ने कहा कि आर्थिक महत्व के मामलों में हस्तक्षेप करने से पहले बहुत संयम बरतना पड़ता हैं, हम इस तरह के विचारों को न्यायिक तरीके के साथ नहीं बदल सकते।"
पीठ ने कहा कि नोटबंदी ने लिए केंद्र और आरबीआई के बीच 6 महीने की अवधि के लिए परामर्श किया गया था. हम मानते हैं कि इस तरह के उपाय को लाने के लिए एक उचित समझ की जरूरत थी, और हम मानते हैं कि आनुपातिकता के सिद्धांत से विमुद्रीकरण प्रभावित नहीं हुआ था."
जस्टिस एस अब्दुल नजीर की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य पीठ ने 2016 में हुई नोटबंदी को चुनौती देने वाली 58 याचिकाओं पर 7 दिसंबर को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
संवैधानिक पीठ ने सरकार द्वारा 1,000 और 500 रुपये के नोटों को चलन से बाहर करने के केंद्र सरकार के 2016 के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज कर दिया.