Confiscation Of Electoral Bonds: हाल ही में सुप्रीम कोर्ट में 'इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम' के तहत सभी राजनीतिक दलों को मिले चुनावी चंदे को जब्त करने की मांग की गई है. हमारे पाठक तो अवगत होंगे कि इस वर्ष फरवरी में एसोसिएशन ऑफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स (ADR) बनाम यूनियन ऑफ इंडिया मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक करार दिया था. अब एडवोकेट खेम सिंह भाटी ने इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम से प्राप्त हुए चंदे को जब्त करना, दानादाताओं को मिले लाभ की जांच व राजनीतिक पार्टियों द्वारा की गई ITR फाइलिंग की दोबारा से जांच कराने की मांग है.
याचिकाकर्ता खेम सिंह भाटी ने दावा किया कि इलेक्टोरल बॉन्ड के माध्यम से राजनीतिक दलों को प्राप्त धन को दान के तौर पर नहीं, बल्कि कॉर्पोरेट घराने को लाभ पहुंचाने के आधार पर इसे 'वस्तु विनिमय' की तरह देखा जाना चाहिए है. इस लेन-देन से सरकारी खजाना को अनुचित तौर पर प्रभावित होनी हुई है. इसलिए इसकी जांच की जानी चाहिए.
याचिकाकर्ता ने कहा,
राजनीतिक दलों ने चुनावी बांड का उपयोग धन पाने के लिए एक उपकरण और विधि के रूप में किया, जिसमें सार्वजनिक हित के विरुद्ध, उनके आपराधिक मुकदमे से समझौता करके या राज्य से उदारता देकर कॉर्पोरेट घरानों को अनुचित लाभ पहुंचाया गया है.
याचिकाकर्ता ने सुप्रीम कोर्ट से 'अवैध तरीके से लाभ' पहुंचाने की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक समिति बनाई जाए. वहीं, याचिकाकर्ता ने आयकर विभाग से राजनीतिक दलों द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19 से 2023-24 तक की गई ITR की फाइलिंग की फिर से जांच करने की मांग की है.
पांच जजों की बेंच ने फरवरी महीने में इलेक्टोरल बॉन्ड से जुड़े मामलें की सुनवाई की. इस बेंच में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस संजीव खन्ना, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा शामिल हैं. बेंच ने इलेक्टोरल बॉन्ड की पॉलिसी को खारिज किया है. बेंच ने कहा कि देश के लोगों को ये जानने का हक है कि राजनीति पार्टी को कौन चंदे दे रहा है. इस दौरान इलेक्टोरल बॉन्ड से केवल सत्ताधारी पार्टी को ही फायदा मिलने की बात का जिक्र आया.