नई दिल्ली: Supreme Court ने देश की निचली अदालतों में मजिस्ट्रेटो द्वारा अनावश्यक रूप से लोगो को हिरासत में भेजने के दिए जा रहें आदेशो को लेकर बेहद महत्वपूर्ण टिप्पणी की है. Supreme Court ने कहा है कि ऐसे मजिस्ट्रेट जो लोगों को अनावश्यक रूप से हिरासत में भेजते हैं, उनका न्यायिक कार्य वापस लिया जाना चाहिए और उन्हें प्रशिक्षण के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजा जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मजिस्ट्रेटों को skills upgrade करने के लिए न्यायिक अकादमियों में भेजा जाना चाहिए.
Justice Sanjay Kishan Kaul, Justice Ahsanuddin Amanullah और Justice Aravind Kumar की पीठ ने सतेंदर कुमार बनाम सीबीआई मामले की सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की है.
पीठ ने कहा कि इस तरह के आदेश उत्तर प्रदेश की अदालतों द्वारा सबसे अधिक बार पारित किए गए है और इस मामले में इलाहाबाद हाईकोर्ट के कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश को सूचित किया जाना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट सतेंद्र कुमार अंतिल के मामले में पूर्व में दिए अपने जुलाई 2022 के फैसले की पालना से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा था. सुप्रीम कोर्ट ने उस फैसले में सतेन्द्र कुमार के मामले में देश की निचली अदालत को अन्य बातों के अलावा, गिरफ्तारी और मुकदमे में आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) के प्रावधानों को लागू करने की आवश्यकता पर जोर दिया था.
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में देश की सभी हाईकोर्ट को रिप्लाई पेश करने के आदेश दिए थे. बुधवार को इस मामले में कोर्ट द्वारा नियुक्त न्यायमित्र सिद्धार्थ लूथरा हाईकोर्ट द्वारा पेश की गई रिपोर्ट की जानकारी दी.
मेघालय और उत्तराखंड हाईकोर्ट द्वारा मामले में implementation रिपोर्ट पेश की गई लेकिन रिपोर्ट की प्रति उपलब्ध नहीं कराई गयी. वही दिल्ली और तेलंगाना हाईकोर्ट की ओर से भी रिपोर्ट पेश नहीं की गई.
जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने इन सभी चार हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल को व्यक्तिगत रूप से पेश होने के आदेश दिए है.
सुप्रीम कोर्ट ने नए फैसले में जमानत को लेकर कई नए प्रावधान करते हुए कहा था कि अदालतों को जमानत याचिकाओं पर दो सप्ताह में फैसला करना चाहिए.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 41 और 41ए के तहत दिए गए आदेश का सख्ती से पालन किया जाना चाहिए, और इसका पालन न करने पर आरोपी को जमानत मिल जाएगी.
सुप्रीम कोर्ट ने देश के सभी राज्यों और केन्द्र शाषित प्रदेशों को इस मामले में चार माह में जवाब पेश करने का आदेश दिया था.