गौहाटी हाईकोर्ट ने असम में कुछ इलाकों को छोड़कर पंचायत चुनाव कराने की अनुमति दे दी है. नौ याचिकाओं में जिन क्षेत्रों की परिसीमन प्रक्रिया को अदालत में चुनौती दी गई है, उन्हें छोड़कर सभी जगहों पर चुनाव कराए जा सकेंगे.वहीं हाईकोर्ट से अनुमति मिलने के बाद असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने कहा कि अब पंचायत चुनाव 10वीं और 12वीं कक्षाओं की बोर्ड परीक्षाएं संपन्न होने के बाद ही मार्च के अंत या अप्रैल के मध्य में ही कराए जा सकेंगे.
जस्टिस सौमित्र सैकिया की पीठ ने शुक्रवार को यह फैसला सुनाया. आदेश की प्रति रविवार को उपलब्ध हुई. अदालत का यह आदेश राज्य सरकार और राज्य निर्वाचन आयोग (SEC) द्वारा अंतरिम अर्जी दायर करने के बाद पारित किया गया, जिसमें राज्य के बाकी हिस्सों में पंचायत चुनावों के लिए अधिसूचना प्रकाशित करने की अनुमति का अनुरोध किया गया था. मुख्य रूप से पंचायतों के परिसीमन को चुनौती देने वाली नौ याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए अदालत ने 17 दिसंबर को राज्य निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया था कि वह उसकी अनुमति के बिना चुनाव कराने के संबंध में कोई अधिसूचना जारी न करे.
याचिकाकर्ताओं में से एक की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता ए के तालुकदार ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया कि नौ याचिकाओं में उल्लिखित क्षेत्र कई जिलों के अंतर्गत आते हैं, जिनमें श्रीभूमि, हैलाकांडी, कछार और मोरीगांव शामिल हैं. उन्होंने बताया कि परिसीमन प्रक्रिया में एक जिले को एक इकाई के रूप में लिया जाता है। इसलिए इस आदेश के साथ, प्रभावी रूप से, इन जिलों में पंचायत चुनाव अधिसूचित नहीं किए जा सकते हैं.
असम के मुख्यमंत्री हिमंत विश्व शर्मा ने भी हाई कोर्ट (गुवाहाटी) के पंचायत चुनाव कराने फैसले को लेकर बताया कि हमने बहुत समय गंवा दिया है. अगर हम आज से चुनाव शुरू करते हैं तो फरवरी के मध्य में चुनाव हो सकते हैं, लेकिन अगले महीने हमारी 10वीं और 12वीं की परीक्षाएं हैं और उस समय चुनाव कराने से गांवों में छात्रों को काफी परेशानी होगी. इसके अलावा मतगणना के लिए हॉल मिलना भी मुश्किल हो जाएगा. सीएम ने कहा कि राज्य सरकार अप्रैल में पंचायत चुनाव कराने की संभावना पर विचार करेगी. उन्होंने बताया कि पंचायत चुनाव अप्रैल में बिहू के आसपास होने की संभावना है. हाई कोर्ट ने पहले आदेश दिया था कि 8 जनवरी तक पंचायत चुनाव के लिए कोई अधिसूचना जारी नहीं की जानी चाहिए. हालांकि, राज्य सरकार ने इस फैसले पर पुनर्विचार की मांग की है.
(खबर पीटीआई भाषा इनपुट से है)