नई दिल्ली: कोलकोता हाईकोर्ट ने पती—पत्नी के बीच तलाक के मामलो में क्रूरता को स्पष्ट करते हुए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है.
कोलकोता हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा है कि एक पति को अपनी पत्नी से मानसिक क्रूरता के लिए तलाक दिया जा सकता है यदि वह उसे अपने माता-पिता से अलग होने के लिए मजबूर करती है और उसे 'कायर और बेरोजगार' भी कहती है.
जस्टिस सौमेन सेन और जस्टिस उदय कुमार की पीठ एक पत्नी की ओर से दायर अपील को खारिज करते हुए ये फैसला दिया है.
पीठ ने फैसले में कहा कि भारतीय परिवार में बेटे का शादी के बाद भी अपने माता-पिता के साथ रहना आम बात है. और अगर उसकी पत्नी उसे उसके माता-पिता से अलग करने का कोई प्रयास करती है, तो उसका न्याय संगत कारण होना चाहिए.
पीठ ने कहा "भारतीय संस्कृति अपने माता-पिता के भरण-पोषण के लिए पुत्र के पवित्र दायित्व की अवधारणा को पोषित करती है. यदि कोई पत्नी पुत्र को समाज की सामान्य प्रथा और सामान्य रीति से विचलित करने का प्रयास करती है, तो उसके पास उसके लिए कुछ उचित कारण होने चाहिए.
कोलकोता की Pashim Midnapur की एक जिला अदालत ने 25 मई 2009 को हिन्दू विवाह अधिनियम की धारा 13 के तहत पति की ओर से दायर वाद में तलाक की डीक्री का फैसला सुनाया.
ट्रायल कोर्ट ने पति को क्रूरता के आधार पर तलाक देने का आदेश दिया था. फैमिली कोर्ट ने 2 जुलाई, 2001 को जोड़े के विवाह को भंग कर दिया था.
फैसले के खिलाफ पत्नी ने हाईकोर्ट में अपील दायर करते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले को चुनौती.
मामले की सुनवाई के दौरान पति की ओर से कहा गया कि उसकी पत्नी केवल अपनी आवश्यक्ताओं की पूर्ति और अहंकार की वजह से घर से अलग रहना चाहती थी.
पति की ओर से कहा गया कि उसके खिलाफ झूठी शिकायत दर्ज कराई थी, जिससे उसकी सरकारी नौकरी चली गई.
बचाव पक्ष ने यह भी दलील दी कि परिवार से अलग नही होने के चलते उसकी पत्नी द्वारा लगातार उसे कायर और बेरोजगार होने का ताना दिया जाता रहा.
यह भी कहा गया कि उसकी पत्नी ने उसे उसके माता-पिता से अलग करने के लिए छोटी-छोटी बातों पर झगड़ा करती रही.
पति की ओर से पत्नी की डायरी में लिखे गए कुछ उदाहरण पेश किए गए जिसमें लिखा गया था कि 'मैं उस कायर से नफरत करती हूं जिससे मैं शादी करने जा रही हूं' और 'उसके जैसे बेरोजगार व्यक्ति से शादी करने के लिए उसकी कोई सहमति नहीं थी और इस शादी को रोकने की कोशिश की गई क्योंकि वह कहीं और शादी करना चाहती थी, यहां तक कि इस शादी को तय करने के बाद लेकिन उसके माता-पिता ने जबरन उसकी शादी याचिकाकर्ता से कर दी.
हाईकोर्ट ने मामले की सुनवाई के दौरान इन तथ्योंं पर गौर किया कि इस मामले में पत्नी के लिए पति को अपने माता पिता से अलग होने के लिए कहने का कोई 'उचित कारण' नहीं था, सिवाए घरेलू मुद्दों पर अहंकार के टकराव और वित्तीय आवश्यकताओं की पूर्ति से संबंधित समस्याओं के.
पीठ ने कहा कि पति अपने शांतिपूर्ण वैवाहिक जीवन की खातिर अपने माता-पिता के घर से किराए के घर में चला गया था.
पीठ ने फैसले में कहा कि अपीलकर्ता पत्नी की ससुराल से दूर अपने पति के साथ अलग रहने की इच्छा न्यायसंगत कारणों पर आधारित नहीं है, क्योंकि यह क्रूरता की श्रेणी में आता है.
आम तौर पर कोई भी पति पत्नी के इस तरह के कृत्य को बर्दाश्त नहीं करेगा और कोई भी बेटा अपने माता पिता और परिवार से अलग नहीं होना चाहेगा.
पीठ ने कहा कि पत्नी द्वारा पति को परिवार से अलग होने के लिए विवश करने का लगातार प्रयास पति के लिए यातनापूर्ण होगा
पीठ ने दोनो पक्षो की बहस सुनने के बाद फैसले में कहा कि लंबे समय तक अलगाव, मानसिक और शारीरिक यातना, एक साथ रहने के लिए पक्ष की अनिच्छा ने उनके वैवाहिक बंधन को सुधारने की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है और ऐसी स्थिति में कानूनी बंधन द्वारा समर्थित होने के बावजूद विवाह एक कल्पना बन गया था..
हाईकोर्ट ने यह कहते पत्नी की ओर से दायर अपील को खारिज कर दिया कि ऐसी स्थिती में तलाक की डिक्री देने से इंकार करना दोनो पक्षकारों के लिए विनाशकारी होगा.