"3 साल से कम उम्र के बच्चों को प्री-स्कूल जाने के लिए मजबूर करना गैरकानूनी है." गुजरात हाईकोर्ट (Gujarat High Court) ने 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कक्षा 1 में एडमिशन देने से रोकने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को खारिज करते हुए ये टिप्पणीकी. याचिकाओं में स्कूलों को चालू शैक्षणिक वर्ष (2023-24) से 6 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कक्षा 1 में एडमिशन देने से रोकने के राज्य सरकार के फैसले को चुनौती दी गई थी.
चीफ जस्टिस सुनीता अग्रवाल और जस्टिस एनवी अंजारिया की डिवीजन बेंच याचिका पर सुनवाई कर रही थी. बेंच ने कहा कि शिक्षा का अधिकार RTE Act और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21A के तहत मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार केवल 6 वर्ष की आयु प्राप्त करने के बाद ही उपलब्ध है.
अदालत ने स्पष्ट किया,
"अनुच्छेद 21A और आरटीई अधिनियम, 2009 के संवैधानिक प्रावधान द्वारा एक बच्चे को प्रदत्त अधिकार 6 वर्ष की आयु पूरी होने के बाद शुरू होता है. आरटीई अधिनियम, 2009 के विभिन्न प्रावधानों को संयुक्त रूप से पढ़ने से ये स्पष्ट होता है कि इससे अधिक उम्र का बच्चा औपचारिक स्कूल में 6 साल की अवधि से इनकार नहीं किया जा सकता है और राज्य को सभी आवश्यक उपाय करने के लिए बाध्य किया गया है ताकि ऐसा बच्चा जो आरटीई अधिनियम, 2009 के तहत 'बच्चे' की परिभाषा के अंतर्गत आता है, बिना किसी शर्त के अपनी प्रारंभिक शिक्षा पूरी कर सके."
अदालत ने कई माता-पिता (याचिकाकर्ताओं) के इस तर्क को खारिज कर दिया कि उनके बच्चों को कक्षा 1 में जल्दी प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए, क्योंकि उन्होंने अपनी प्रारंभिक शिक्षा पहले ही पूरी कर ली है. इसमें कहा गया है कि अगर बच्चे ने संबंधित शैक्षणिक वर्ष के 1 जून तक 3 वर्ष की आयु पूरी नहीं की है तो आरटीई अधिनियम किसी बच्चे के प्री-स्कूल में एडमिशन पर रोक नहीं लगाती है.
इस पर अदालत ने कहा कि प्री-स्कूल में तीन साल की 'प्रारंभिक बचपन की देखभाल और शिक्षा' एक बच्चे को औपचारिक स्कूल में पहली कक्षा में एडमिशन के लिए तैयार करती है. जो बच्चे हमारे सामने हैं, उन्हें पूरा होने से पहले उनके माता-पिता द्वारा प्री-स्कूल में एडमिशन कराया गया है. आरटीई में प्री-स्कूल में प्रवेश के लिए न्यूनतम आयु 3 वर्ष निर्धारित है. याचिकाकर्ता किसी भी तरह की नरमी या छूट की मांग नहीं कर सकते, क्योंकि वे आरटीई अधिनियम, 2009 और आरटीई नियम, 2012 का उल्लंघन कर रहे थे.
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि 3 साल से कम उम्र के बच्चों को प्री-स्कूल जाने के लिए मजबूर करना एक गैरकानूनी कृत्य है.