दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि किसी बल का सदस्य भले ही प्रभावी रूप से मैदान (फील्ड) में तैनात न हो, लेकिन वह “सक्रिय ड्यूटी” से नहीं हटता है और इसलिए “पीस स्टेशन” (शांति क्षेत्र) में ड्यूटी करने के दौरान हादसे के कारण आई चोट को “सक्रिय ड्यूटी” के दौरान लगी चोट ही माना जाएगा.
न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की अगुवाई वाली पीठ में न्यायमूर्ति शालिंदर कौर भी शामिल थीं. पीठ ने याचिकाकर्ता की यह दलील स्वीकार कर ली कि वह अपनी चिकित्सा श्रेणी में छूट पाने का हकदार है तथा उसे अयोग्य ठहराने वाले आदेश को रद्द कर दिया. अदालत का यह निर्णय सशस्त्र सीमा बल(एसएसबी) के एक सहायक कमांडेंट (जनरल ड्यूटी) की याचिका पर आया, जिन्हें अपेक्षित चिकित्सा स्थिति में न होने के कारण 2023 में पदोन्नति देने से मना कर दिया गया था, क्योंकि उन्हें अक्टूबर 2019 में अखिल भारतीय पुलिस कमांडो प्रतियोगिता (एआईपीसीसी) के लिए प्रशिक्षण के दौरान चोट लग गई थी.
याचिकाकर्ता ने दलील दी कि वह 2008 में जारी एक स्थायी आदेश के तहत आवश्यक चिकित्सा मानक को पूरा करने से छूट पाने का हकदार था, लेकिन प्राधिकारियों ने कहा कि यह छूट “सक्रिय ड्यूटी” में दी जाती है जो फील्ड गोलीबारी/दुर्घटनावश गोलीबारी/बारूदी सुरंगों या अन्य विस्फोटक उपकरणों के विस्फोट से जुड़ी दुर्घटनाओं से संबंधित हों.
प्रशिक्षण के दौरान ‘उच्च बाड़ तार’ से गिरने के बाद अधिकारी के दाहिने हाथ, कोहनी और बाएं हाथ की कलाई के जोड़ में “फ्रैक्चर” हो गया और उन्हें उपचार के लिए एम्स ऋषिकेश में स्थानांतरित किया गया.
याचिकाकर्ता को राहत देते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि स्थायी आदेश में उल्लिखित “सक्रिय ड्यूटी” को सीमित अर्थ नहीं दिया जा सकता.
उच्च न्यायालय की पीठ ने 17 सितंबर को पारित आदेश में कहा, “ यह स्पष्ट है कि बल का कोई सदस्य केवल इसलिए बगैर ‘सक्रिय ड्यूटी’ वाला नहीं कहा जाएगा कि वह मैदान में प्रभावी रूप से मौजूद नहीं है, जहां वह बारूदी सुरंगों या अन्य विस्फोटक उपकरणों से निपटता है. वह हर उस पद पर ‘ड्यूटी’ पर बना रहता है, जहां उसे नियुक्त किया जाता है, चाहे वह मैदानी ड्यूटी हो या ‘पीस पोस्टिंग’.”
पीठ ने कहा, “ इसलिए, जब बल का कोई कार्मिक किसी ऐसे कार्य में लगा होता है जो उसे सौंपी गई ड्यूटी का हिस्सा है और भले ही वह ‘पीस स्टेशन’ पर दुर्घटना का शिकार होता है, तो उक्त दुर्घटना के बारे में यह नहीं कहा जा सकता कि वह ‘सक्रिय ड्यूटी’ पर रहते हुए नहीं हुई.”
अदालत ने प्राधिकारियों को निर्देश दिया कि वे याचिकाकर्ता को उचित छूट प्रदान करते हुए उप कमांडेंट के पद पर पदोन्नति के मामले पर छह सप्ताह के भीतर विचार करें. इसने कहा है कि यदि वह उप कमांडेंट के पद पर पदोन्नति के लिए अन्य सभी पात्रता मानदंडों को पूरा करते हैं, तो उन्हें उस पद पर उस तारीख से पदोन्नत किया जाए, जिस दिन उनके बैच के अन्य सदस्यों को पदोन्नत किया गया था.
अदालत ने कहा कि उन्हें उप कमांडेंट का वेतन तब से मिलेगा जब वह इस पद का कार्यभार संभालेंगे.