नई दिल्ली, सुप्रीम कोर्ट की स्थापना के बाद से ही अघोषित तरीके से ही सही लेकिन देश की सर्वोच्च अदालत में मुस्लिम न्यायाधीश के लिए कम से कम एक सीट आरक्षित रखी गयी. देश की सर्वोच्च अदालत में कभी कभी इनकी संख्या 2 से लेकर 4 तक भी हुई हैं.
देश की सर्वोच्च अदालत में स्वीकृत 34 पदों पर वर्तमान में कार्यरत 28 जजों में जस्टिस अब्दुल नज़ीर मुस्लिम जज होने का प्रतिनिधित्व करतें हैं. वही हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अमजद एहतेशाम सैयद एकमात्र हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश हैं.वर्तमान में देश की उच्च न्यायपालिका में कार्यरत मुस्लिम जजों की कुल संख्या 36 हैं.
1950 के दशक में प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू बॉम्बे हाई कोर्ट के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद करीम छगला को सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश बनाना चाहते थे. लेकिन वरिष्ठता में करीम छगला से वरिष्ठ कई जज मौजूद थे. उसके बाद देश के मुख्य न्यायाधीश पर एक मुस्लिम जज को पहुंचने में करीब 18 साल का वक्त लगा. जब जस्टिस एम हिदायतुल्ला 25 फरवरी 1968 को देश के पहले मुस्लिम सीजेआई के रूप में शपथ ली.
आकड़ों के अनुसार कहे तो सुप्रीम कोर्ट की शुरूआत में प्रथम 6 नियुक्त हुए जजों में से एक जज मुस्लिम थे जो की कुल जजों का 16.76 प्रतिशत प्रतिनिधित्व था. वही वर्तमान में यह मौजूदा सुप्रीम कोर्ट में कार्यरत 28 जजों में एक हैं जो कि 3.5 प्रतिशत हैं.
सुप्रीम कोर्ट की स्थापना से लेकर अब तक देश में 50 मुख्य न्यायाधीश नियुक्त हो चुके हैं.जस्टिस डी वाई चन्द्रचूड़ ने 9 नवंबर को देश के 50 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में शपथ ली हैं. भारत के 50 मुख्य न्यायाधीशों में से अब तक 4 मुस्लिम जज मुख्य न्यायाधीश बन पाए है.
चार मुस्लिम जजों में जस्टिस एम हिदायतुल्ला, जस्टिस एम हमीदुल्लाह बेग, जस्टिस एएम अहमदी और जस्टिस अल्तमस कबीर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश रह चुके हैं.सुप्रीम कोर्ट की पहली महिला जज के रूप में जस्टिस एम फातिमा बीवी ने 6 अक्टूबर 1989 से 29 अप्रैल 1992 तक सुप्रीम कोर्ट में अपनी सेवाएं दी थी.
सुप्रीम कोर्ट से अब तक रिटायर हो चुके 231 और मौजूदा 28 जजों में कुल 18 जज मुस्लिम रहे हैं- इन 18 में से 14 जज के रूप में अपना कार्यकाल पूर्ण कर सेवानिवृत्त हुए.
सुप्रीम कोर्ट में कभी धर्म के अनुसार किसी जज की नियुक्ति नहीं हुई हैं. लेकिन ये भी एक हकीकत है कि सुप्रीम कोर्ट में जब भी कोई ऐसा मामला आया है जिसमें मुस्लिम जज की जरूरत पड़ी हैं. उस बेंच में एक मुस्लिम जज जरूर मौजूद रहें. वर्तमान में जस्टिस एस अब्दुल नजीर की धर्म से जुड़े मामलों में सुप्रीम कोर्ट के सबसे ज्यादा मांग में रहने वाले जज माने जाते हैं. अयोध्या भूमि विवाद और ट्रिपल तलाक के ऐतिहासिक फैसले में वे शामिल रहे हैं. अगस्त 2017 में निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने वाली 9 सदस्य पीठ का भी वे हिस्सा रहे हैं.
जस्टिस एस अब्दुल नजीर सुप्रीम कोर्ट में एकमात्र मुस्लिम जज है जो 4 जनवरी 2023 को सेवानिवृत्त होने वाले हैं. 1983 में कर्नाटक में वकालत का सफर शुरू करने वाले जस्टिस नजीर 12 मई 2003 में कर्नाटक हाईकोर्ट में जज नियुक्त हुए थे.17 फरवरी 2017 को उन्हे सुप्रीम कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था. उसके बाद से अब तक देश की इस सर्वोच्च अदालत में किसी मुस्लिम जज की नियुक्ति नहीं हुई हैं उनकी सेवानिवृति से पूर्व सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने जस्टिस अहसानुद्दीन अमानुल्लाह को उनके उत्तराधिकारी के रूप में चुना है.
देश की सर्वोच्च अदालत में मुस्लिम जज होना या नहीं होना अधिकारों से वंचित होने का सवाल नहीं कतई नहीं हैं, यह केवल सर्वोच्च अदालत में सभी धर्म, जाति और क्षेत्र को उचित प्रतिनिधित्व देने की परंपरा से जुड़ा हैं.
लेकिन इसे लेकर ना तो कोई अब नियम ही बनाया गया है और ना ही ऐसा कोई कानूनी प्राावधान है. बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था है जो न्यायपालिका में सभी वर्ग और क्षेत्र की जनता के बीच विश्वास बहाली और इस संस्थान के प्रति सम्मान को बनाए रखने के लिए ऐसा नैतिक रूप से किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम जज की नियुक्ति को लेकर कभी सवाल खड़े नही किये गये. लेकिन इनकी नियुक्ति को लेकर जरूर एक लंबा वक्त का इंतजार किया जाता रहा.सुप्रीम कोर्ट और केंद्र सरकार के बीच कई बार जजों की नियुक्ति को लेकर गतिरोध रहना नई नियुक्ति में वक्त लगने का बड़ा कारण रहा हैं.सुप्रीम कोर्ट में स्वीकृत कुल जजो की संख्या 34 है फिलहाल इस शीर्ष अदालत में 28 जज कार्यरत है 5 जजों की नियुक्ति के साथ ही ये संख्या 33 हो जाएगी.