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निर्भया कांड के बाद सख्त हुए कानून का भय क्यों नहीं

निर्भया कांड के बाद देश में ये उम्मीद पैदा हुई कि महिलाओं के प्रति अपराध के मामलो में कमी आएगी. लेकिन न्याय में देरी, सरकारी उदासिनता के साथ समाज में अपराधियों के प्रति बदलते रवैये से इस तरह के अपराध बढे है ना की कम हो रहे है.

Written by Nizam Kantaliya |Published : December 16, 2022 6:08 AM IST

देश में महिलाओं के खिलाफ होने वाले अपराधों के मामले लगातार बढ़ रहे है. एनसीआरबी की रिपोर्ट के अनुसार देश में रोजाना 86 रेप के मामले सामने आते हैं. साल 2021 में देशभर में दुष्कर्म से जुड़े कुल 31,677 मामले दर्ज किए गए थे जो  साल 2017 में 32559 थे.

देश में महिलाओं के प्रति अपराध के सारे तथ्‍य, आंकड़े और घटनाएं गवाह हैं कि सख्त कानून का महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा पर अधिक प्रभाव नहीं पड़ा. निर्भया के बाद देश की राजधानी से लेकर छोटे शहरों, गांवों और कस्बों तक महिलाओं के साथ वीभत्स रेप और हिंसा की अनगिनत घटनाएं हो चुकी हैं.

 दोष सिद्धि की दर

देश में अपराधियों के हौसले बढाने वाले सबसे बड़े कारणों में समय पर सजा नहीं मिलना एक बड़ा कारण है. अपराधी को जब यह समझ आता है कि उसे सजा नहीं मिलेगा, तो वह अपराध करने से डरने बंद हो जाता है.

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दुष्कर्म और फिर हत्या के मामलों में न्याय में देरी होने के कारण ही गुनहगारों में सजा का भय खत्म होता जा रहा है.कानून में मौत की सजा के प्रावधान होने के बाद भी बलात्कार की घटनाओं में कोई कमी नहीं दिख रही है.

विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम पर किए गए अध्ययन के अनुसार 10 साल पुराने इस कानून के तहत दर्ज मामलों में से एक में दोष साबित हुआ तो तीन मामलों में आरोपी को बरी कर दिया गया.

न्याय में देरी बड़ा कारण

देश में सख्त कानूनों के बाद भी अपराधों में कमी नहीं आने का यह मुख्य कारण है. बीते एक दशक में दर्ज हुए दुष्कर्म के मामलों में से केवल 12 से 20 फीसदी मामलों में सुनवाई पूरी हो पायी. दुष्कर्म के दर्ज मामलों की संख्या तो बढ़ रही है लेकिन सजा की दर नहीं बढ़ रही है.

2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार दुष्कर्म से जुड़े 12,000 मामले अदालतों में सिर्फ इसलिए लंबित थे , क्योंकि नमूनों की जांच के लिए पर्याप्त प्रयोगशालाएं नहीं हैं.

कोविड के चलते भी देश में दुष्कर्म से जुड़े लंबित मामलों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई.

जांच अधिकारियो की कमी, जांच के लिए प्रयोगशालाओं की कमी, जांच एजेंसियों के पास उचित उपकरणों का अभाव, अदालतों में जजों की कमी, कई राज्यों में विशेष अदालतों का गठन ना होना सहित कई कारणों से अदालतों में लगातार मुकदमा पेंडिंग है.

अभी देश में पॉक्सो एक्ट के तहत करीब एक लाख मामले लंबित हैं और इनमें से कुछ मामलों के निपटारे में लंबा वक्त लग सकता है.

पुरुषवादी मानसिकता और अपराध का प्रोत्साहन

पिछले कुछ समय में हमारे देश में दुष्कर्म और हत्या जैसे मामलो में रिहा हुए लोगों के सम्मान करने की घटनाएं सामने आयी हैं. इस तरह के कार्यक्रमों को एक विशेष वर्ग या तबका ही शामिल नहीं है बल्कि विरोधी धर्म या जाति के होने पर कई वर्ग शामिल हो रहे है.

यहां तक कि अब तो रेप के आरोपियों के रिहा होने पर फुल मालाए तक पहनाकर स्वागत किया जाता है. इस तरक आपराधिक लोगों के साथ खड़े होने के व्यवहार को आम बनाया जा रहा हो, तो कैसे अपराधी अपने किए गए अपराध के लिए आत्मचिंतन करेंगे.

अपराधियों के सम्मान से समाज में ऐसी मानसिकता रखने वाले अपराधियों के लिए भी हौसला पैदा करता है. उससे भी परे ऐसे मामलों में अदालतो की चुप्पी सबसे ज्यादा खतरनाक बन रही है

वही एक समूह द्वारा देश भर के कम उम्र के लड़कों को आक्रामक और प्रभावशाली व्यवहार करने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है लेकिन सिस्टम उसके प्रति चुप रहता है.

इंटरनेट पर बढता अश्लील सामग्री का साम्राज्य

दुनियाभर में इंटरनेट और उसके जरिए ई बाजार को बढावा देने के लिए व्यापार किसी भी हद तक जा रहे है. किसी सामग्री के प्रचार से लेकर उसके बेचने के लिए महिलाओं को एक वस्तु के रूप में पेश करने का चलन महिलाओं के लिए ही नुकसानदायक होता जा रहा है.

दूसरी तरफ टेलीकॉम कंपनियां द्वारा अधिक कमाई के लिए सस्ती दरों पर उपलब्ध कराए जा रहे डाटा का उपभोग बढ़ाने के लिए मनोरंजन व अश्लील सामग्री का बाजार बढाया जा रहा है.

लोगो की आदत बनाए जाने के लिए अनचाहे वीडियो और अश्लील सामग्री उन्हे परोसी जा रह है जिसके जरिए एक उपभोक्ता बनाने लिए आदतें बनाई जा रही है.

सरकार और प्रशासन की उदासीनता

निर्भया केस के बाद देश में ना केवल कानून और अदालतों के नियमों में बदलाव हुए बल्कि निर्भया कोष का गठन कर पीड़िताओं के लिए एक राह भी बनाई गयी. प्रशासनिक और सरकारी उदासीनता के चलते यह फंड भी अब बस एक फंड बनकर रह गया है.

ओटीटी प्लेटफार्म और फिल्मों में महिलाओं के प्रति अभद्र भाषा के बढ़ते प्रयोग के प्रति भी प्रशासनिक उदासीनता एक बड़ा कारण बन रहा है.

देशभर में अपराधियों के हौसले इसलिए भी बढ़ रहे है क्योंकि कई मामलों में सरकार भी खुद चुप्पी बना लेती है. इससे भी ज्यादा खतरनाक होता जा रहा है कि सोशल मीडिया पर अब अपराधियों को हीरो के तौर पेश किया जा रहा है.लेकिन उनके खिलाफ कार्रवाई बेहद कम होती है.

राजनीतिक प्रतिनिधित्व का रवैया

पिछले कुछ समय में दुष्कर्म जैसे मामलों में राजनीतिक प्रतिनिधित्व के रवैये के चलते भी ऐसे अपराधियों के प्रति समाज में लोगों की आवाज को कमजोर किया जा रहा है. कई बार बयानों के जरिए तो भी अपराधियों के सम्मान के जरिए.

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