BJP MP निशिकांत दुबे के खिलाफ Contempt Of Court की कार्यवाही शुरू करने से Supreme Court ने क्यों किया इंकार?
सुप्रीम कोर्ट ने भाजपा के लोकसभा सांसद निशिकांत दुबे को शीर्ष अदालत और भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) पर उनकी बेहद गैर-जिम्मेदाराना और बेतुकी टिप्पणियों के लिए गुरुवार को फटकार लगाई. वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिकता पर चल रही सुनवाई के बीच, झारखंड के गोड्डा से सांसद निशिकांत दुबे ने एक इंटरव्यू के दौरान कहा था कि भारत के मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना भारत में हो रहे सभी गृहयुद्धों के लिए जिम्मेदार हैं और इस देश में धार्मिक युद्ध को भड़काने के लिए केवल और केवल सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार है.
सीजेआई संजीव खन्ना और जस्टिस संजय कुमार की पीठ ने गुरुवार को शीर्ष अदालत की वेबसाइट पर अपलोड किए गए अपने आदेश में कहा कि हमारी राय में, टिप्पणियां बेहद गैर-जिम्मेदाराना थीं और भारत के सर्वोच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर आक्षेप लगाकर ध्यान आकर्षित करने की प्रवृत्ति को दर्शाती हैं. हालांकि शीर्ष अदालत ने दुबे के खिलाफ अदालत की अवमानना की कार्रवाई की मांग करने वाली जनहित याचिका (पीआईएल) पर विचार करने से परहेज किया, लेकिन उसने कहा कि अदालतों को अवमानना की शक्ति का सहारा लेकर अपने फैसले और निर्णयों की रक्षा करने की आवश्यकता नहीं है. हालांकि, सीजेआई खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने कहा कि सांप्रदायिक घृणा फैलाने या अभद्र भाषा में लिप्त होने के किसी भी प्रयास से सख्ती से निपटा जाना चाहिए.
"घृणास्पद भाषण बर्दाश्त नहीं किया जा सकता क्योंकि इससे लक्षित समूह के सदस्यों की गरिमा और आत्म-सम्मान को नुकसान पहुंचता है, समूहों के बीच वैमनस्य पैदा होता है और सहिष्णुता और खुले विचारों को खत्म करता है, जो समानता के विचार के लिए प्रतिबद्ध बहु-सांस्कृतिक समाज के लिए जरूरी है."
शीर्ष अदालत ने कहा कि लक्षित समूह को अलग-थलग करने या अपमानित करने का कोई भी प्रयास एक आपराधिक अपराध है और उसके साथ उसी तरह से निपटा जाना चाहिए. शीर्ष अदालत ने दुबे के बयान की जांच करने के बाद अपने आदेश में कहा कि उनके बयान की विषय-वस्तु सर्वोच्च न्यायालय के अधिकार को कम करने और बदनाम करने वाली है, यदि हस्तक्षेप नहीं करती है या अदालत के समक्ष लंबित न्यायिक कार्यवाही में हस्तक्षेप करने की प्रवृत्ति रखती है, और न्याय प्रशासन में हस्तक्षेप और बाधा डालने की प्रवृत्ति रखती है. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि भारत में कोई 'गृहयुद्ध' नहीं है और न्यायिक निर्णय कानूनी सिद्धांतों के अनुसार किए जाते हैं, न कि राजनीतिक, धार्मिक या सामुदायिक विचारों को ध्यान में रखकर. सीजेआई खन्ना की अगुआई वाली पीठ ने कहा कि निश्चित रूप से, न्यायालयों और न्यायाधीशों के कंधे इतने चौड़े हैं और उनमें एक अंतर्निहित भरोसा है कि लोग समझेंगे और पहचानेंगे कि आलोचना पक्षपातपूर्ण, निंदनीय और दुर्भावनापूर्ण है.
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शीर्ष अदालत ने कहा,
"हमारा दृढ़ मत है कि अदालतें फूलों की तरह नाजुक नहीं हैं जो इस तरह के हास्यास्पद बयानों से मुरझा जाएंगी. हम नहीं मानते कि जनता की नजरों में अदालतों के प्रति विश्वास और विश्वसनीयता इस तरह के बेतुके बयानों से डगमगा सकती है, हालांकि यह बिना किसी संदेह के कहा जा सकता है कि ऐसा करने की इच्छा और जानबूझकर प्रयास किया जा रहा है."
अधिवक्ता विशाल तिवारी द्वारा दायर जनहित याचिका में कहा गया था कि निशिकांत दुबे के इंटरव्यू की पूरी सामग्री न्यायपालिका और सर्वोच्च न्यायालय के प्रति अपमानजनक भाषण से भरी हुई थी. इसमें कहा गया है, कि इस तरह के कृत्य बीएनएस (भारतीय न्याय संहिता) और न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 15 के तहत दंडनीय अपराध हैं.
निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की मांग करने वाली याचिका पर विचार करने से इनकार करते हुए, सीजेआई खन्ना की अगुवाई वाली पीठ ने सोमवार को कहा था कि हम एक संक्षिप्त आदेश पारित करेंगे. हम इस पर विचार नहीं करेंगे, लेकिन हम अपने विचार व्यक्त करते हुए एक संक्षिप्त आदेश देंगे.
वहीं, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने सुप्रीम कोर्ट के खिलाफ निशिकांत दुबे की टिप्पणियों से खुद को अलग करते हुए स्पष्ट किया था कि ये बयान उनके व्यक्तिगत राय हैं और पार्टी के रुख को नहीं दर्शाते हैं.
(खबर IANS इनपुट से है)