Advertisement

'एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड जजमेंट की ट्रांसलेटेड कॉपी बिना पढ़े 'सुप्रीम कोर्ट' के सामने रख देते हैं', सुप्रीम कोर्ट ने SCAORA से कहा

सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने 1999 में गुजराती में पारित एक आदेश का अनुवाद पढ़ते समय 'पुनर्स्थापना' शब्द को गलत तरीके से 'पुनर्स्थापन' के रूप में अनुवादित पाया. इससे नाराजगी जाहिर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि AOR अनुवादित दस्तावेजों को पढ़ते नहीं हैं और उन्हें सुप्रीम कोर्ट में 'डंप' कर देते हैं.

Written By Satyam Kumar | Published : March 19, 2025 9:31 AM IST

ट्रांसलेशन, भले ही आपका आसान बनाता हो, लेकिन यह आंख मूंदकर भरोसा करने लायक काम नहीं है. गलतियां निकल ही आती है, जो आपके साख को कहीं भी धूमिल कर सकती है. अब ऐसा ही मामला एक एडवोकेट-ऑन-रिकॉर्ड (AOR) के साथ हुआ, उन्होंने गुजराती में लिखे एक ट्रिब्यूनल के आदेश की ट्रांसलेटेड कॉपी सुप्रीम कोर्ट में रख दी, लेकिन जब जस्टिस ने उस ट्रांसलेशन को पढ़ा तो बात कुछ समझ नहीं आई. दोबारा पढ़ा, फिर भी स्थिति वैसी ही बनी रही. अब तक जज साहब समझ चुके थे कि वकील साहब ने बिना पढ़े ट्रांसलेटेड कॉपी अदालत के सामने रखा दिया था. जज साहब हैरान हुए, कि AOR ऐसी लापरवाही कैसे कर सकते हैं. आइये आपको बताते हैं आगे कि घटनाक्रम...

सुप्रीम कोर्ट में पेश किए गए दस्तावेजों की प्रमाणिकता सुनिश्चित करने का कार्य एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड (AOR) का होता है. बीते दिन एक शिक्षक की नौकरी से संबंधित मामले की सुनवाई करते सुप्रीम कोर्ट ने समय गलत और गलत अनुवादित दस्तावेजों के खिलाफ कड़ी आलोचना की. इसके लिए अदालत ने सुप्रीम कोर्ट एडवोकेट्स ऑन रिकॉर्ड एसोसिएशन (SCAORA) के अध्यक्ष विपिन नायर की अदालत में हाजिर होने की आदेश देते हुए जबाव तलब किया कि गलत अनुवाद के लिए कौन जिम्मेदार होगा.

Advertisement

जस्टिस जेके महेश्वरी और अरविंद कुमार की खंडपीठ एक शिक्षक की बहाली से संबंधित एक ट्रिब्यूनल के आदेश को पढ़ रहे थे. यह आदेश गुजराती से अंग्रेजी में अनुवादित किया गया था. जब पीठ ने आदेश पढ़ा, तो 1999 में पारित शब्द "बहाल" को गलत तरीके से "पुनर्स्थापना" के रूप में अनुवादित किया गया था. पीठ ने पूरे पैरा को पढ़ने के बाद टिप्पणी की कि अनुवाद का कोई अर्थ नहीं निकलता.  इससे नाराज होते हुए जस्टिस कुमार ने कुछ कड़े मौखिक टिप्पणियां कीं कि AOR अनुवादित दस्तावेजों को पढ़ते नहीं हैं और बस उन्हें सुप्रीम कोर्ट के सामने रख देते हैं. उन्होंने कहा कि समस्या को हल करने के लिए अदालत को सख्ती से पेश आना होगा, ताकि गलत अनुवाद के कारण न्यायालय को अन्याय नहीं सहना पड़े.

Also Read

More News

जस्टिस कुमार ने नाराजगी जाहिर करते कहा कि यह आपका अनुवाद है? एकदम खराब ट्रांसलेशन! आप सुप्रीम कोर्ट में जो चाहें रखकर बच सकते हैं इसके लिए हम आपकी माफी नहीं चाहते, हम बार-बार कह रहे हैं कि ट्रांसलेशन का मामला बंद होना चाहिए. अब तक SCAOR के प्रेसिडेंट नायर अदालत में आ चुके थे, उन्हें डॉक्यूमेंट्स पढ़ने के लिए दिया गया. डॉक्यूमेंट्स पढ़ने के बाद नायर ने बताया कि पहले सुप्रीम कोर्ट में ऑफिशियल ट्रांसलेशन रखा जा रहा था, जिसे अब बंद कर दिया गया है. उन्होंने कहा कि इस वजह से अब कुशल अनुवादक उपलब्ध नहीं हैं.

Advertisement

इस पर जस्टिस नायर ने कहा कि भले जो भी हो, अधिकांश हाई कोर्ट में ट्रांसलेटर की सुविधा नहीं है, और मशीनी ट्रांसलेशन से काम नहीं चलेगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वकालतनामा पर साइन करने के बाद सही ट्रांसलेशन उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी वकीलों की है. इसे आगे ध्यान में रखा जाए.  SCAORA प्रेसिंडेंट ने आश्वासन दिया कि ऐसा आगे से नहीं होगा. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि Advocates on Record (AoR) को ट्रिब्यूनल के मूल आदेश और उसके आधिकारिक अनुवादित प्रति को पेश करना होगा और SCAORA को इस मुद्दे को हल करने के लिए आवश्यक कदम उठाएंगे.