NEET-PG 2025 में ट्रांसजेंडर के लिए आरक्षण की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने लिया संज्ञान, केन्द्र सरकार को जारी किया नोटिस
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र से ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए NEET-PG 2025 परीक्षा में क्षैतिज आरक्षण (Horizantal Reservation) की मांग वाली याचिका पर जवाब मांगा है. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को केंद्र और अन्य संबंधित पक्षों को NEET-PG 2025 परीक्षा में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) की मांग पर एक याचिका का जवाब देने के लिए कहा है. यह परीक्षा 15 जून को होने वाली है. याचिका को तीन ट्रांसजेंडर व्यक्तियों द्वारा दायर किया गया है, जो डॉक्टर हैं और उन्होंने 16 अप्रैल को जारी नोटिस और 17 अप्रैल को प्रकाशित सूचना बुलेटिन को चुनौती दी है.
NEET PG में आरक्षण देने की मांग
आज सीनियर एडवोकेट इंदिरा जयसिंह ने याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश होकर इस मामले की सुनवाई की मांग की. याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि यह नोटिफिकेशन, 2014 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए निर्देशों के विपरीत जारी किया गया है, जिसमें ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए क्षैतिज आरक्षण Horizonatal Reservation) की कोई योजना या नीति का उल्लेख नहीं किया गया है. याचिका में NEET-PG 2025 के प्रवेश नोटिस और सूचना बुलेटिन को रद्द कर ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए एक प्रतिशत सीटें आरक्षित करने वाले नए प्रवेश नोटिस जारी करने का निर्देश देने की मांग की गई है. याचिकाकर्ताओं का तर्क है कि 2014 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़ा वर्ग गया था, इस आधार पर उन्हें शिक्षण संस्थानों में प्रवेश और सरकारी नौकरियों में आरक्षण मिलना चाहिए.
आज इस मांग पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र, राज्यों, संघ शासित प्रदेशों और अन्य संबंधित पक्षों, जिसमें राष्ट्रीय चिकित्सा आयोग भी शामिल है, को याचिका पर प्रतिक्रिया देने के लिए नोटिस जारी करते हुए मामले की सुनवाई दो सप्ताह बाद तय किया है.
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क्या है हॉरिजॉन्टल आरक्षण?
क्षैतिज आरक्षण (Horizontal Reservation) सभी श्रेणियों (सामान्य श्रेणी, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ा वर्ग) में आरक्षण प्रदान करता है. याचिका में मांग किया गया कि क्षैतिज आरक्षण के अभाव में, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को समान अवसर से वंचित रखा जाएगा और उच्च शिक्षा में उनका प्रतिनिधित्व सुनिश्चित नहीं हो पाएगा, जिसके लिए उन्हें कई सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता हैं.