शिक्षकों को सम्मानजनक वेतन नहीं देना ज्ञान का अपमान... सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात के संविदा प्राध्यापकों के हक में सुनाया ये फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों को सम्मानजनक पारिश्रमिक नहीं देने से देश में ज्ञान का महत्व घटता है और बौद्धिक पूंजी के निर्माण का दायित्व जिन लोगों को सौंपा गया है, उनकी प्रेरणा कम होती है. जस्टिस पीएस नरसिम्हा और जस्टिस जॉयमाल्या बागची की पीठ ने शिक्षाविदों, व्याख्याताओं और प्राध्यापकों को किसी भी राष्ट्र की 'बौद्धिक रीढ़' बताया, जो भविष्य की पीढ़ियों के मन और चरित्र को आकार देने में अपना जीवन समर्पित कर देते हैं. समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धांतों को लागू करते हुए, पीठ ने निर्देश दिया कि गुजरात में अनुबंध पर नियुक्त कुछ सहायक प्राध्यापक स्वीकार्य न्यूनतम वेतनमान के हकदार होंगे. यह फैसला गुजरात हाईकोर्ट के दो फैसलों के खिलाफ दायर अपील पर सुनाया गया, जिसमें समान काम करने वाले सहायक प्राध्यापक के वेतन में समानता का दावा भी शामिल था.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सार्वजनिक समारोहों में केवल संस्कृत मंत्र 'गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर' का पाठ करना ही पर्याप्त नहीं है. पीठ ने कहा िअगर हम इस घोषणा में विश्वास करते हैं, तो यह राष्ट्र द्वारा अपने शिक्षकों के साथ किए जाने वाले व्यवहार में भी दिखना चाहिए. कोर्ट ने कहा कि जब शिक्षकों के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार नहीं किया जाता या उन्हें सम्मानजनक पारिश्रमिक नहीं दिया जाता, तो इससे देश में ज्ञान का महत्व घट जाता है और उन लोगों की प्रेरणा कम हो जाती है, जिन्हें इसकी बौद्धिक पूंजी के निर्माण का दायित्व सौंपा गया है.
सुप्रीम कोर्ट ने शिक्षकों के साथ किए जा रहे व्यवहार पर गंभीर चिंता व्यक्त की. पीठ ने बताया कि 2,720 स्वीकृत पदों में से केवल 923 पद ही नियमित कर्मचारियों से भरे गए हैं, और बाकी को भरने के लिए सरकार ने तदर्थ और संविदा नियुक्तियों का सहारा लिया है. कोर्ट ने इस बात पर भी चिंता जताई कि संविदा पर काम कर रहे सहायक प्रोफेसरों को केवल ₹30,000 मासिक वेतन मिल रहा है. पीठ ने कहा कि अब समय आ गया है कि राज्य सरकार इस मुद्दे पर ध्यान दे और उनके द्वारा किए जाने वाले कार्यों के आधार पर वेतन संरचना को तर्कसंगत बनाए.
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