सादे कपड़े में सर्विस गन लेकर चलना, सेल्फ डिफेंस में किसी पर गोली चलाना Police Duty का हिस्सा नहीं: Supreme Court
क्या पुलिस सादे कपड़े में सर्विस गन लेकर चल सकती है? बिना ड्रेस में किसी सिविलयन पर गोली चलाना, एनकाउंटर करना पुलिस ड्यूटी का हिस्सा है? अगर नहीं, तो ऐसी स्थिति में क्या पुलिस अधिकारी पर मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार की इजाजत चाहिए होगी? आइये जानते हैं सुप्रीम कोर्ट ने इन सब सवालों के जबाव में क्या कहा है....
सुप्रीम कोर्ट ने क्या फैसला सुनाया है. इस बात पर जाने से पहले यह जानते हैं कि ये मामला क्या है? घटना 2015 की है. पंजाब पुलिस अधिकारियों ने सेल्फ डिफेंस में गैंगस्टर पर गोलीबारी की. इस एनकाउंटर में आरोपी शख्स की मौत हो गई. साथ ही इस घटना को लेकर पंजाब पुलिस ने आईपीसी की धारा 307 और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया था. वहीं, गोलीबारी को सेल्फ डिफेंस में किया गया दर्ज किया. वहीं, साल 2016 में मृतक के एक दोस्त ने आरोप लगाया कि यह एक फर्जी मुठभेड़ थी और नौ पुलिस अधिकारियों पर हत्या और अन्य अपराधों का आरोप लगाया, साथ ही एक डीसीपी पर सबूतों से छेड़छाड़ करने (कार की नंबर प्लेटें हटाकर) का भी आरोप लगाया. इस बीच मामले की जांच के लिए गठित विशेष जांच दल (SIT) ने पुलिस द्वारा दी गई जानकारी को गलत ठहराते हुए आठ पुलिस अधिकारियों के खिलाफ आईपीसी की धारा 304 के तहत गैर-इरादतन हत्या का आरोप लगाने की सिफारिश की और मूल प्राथमिकी को रद्द करने का प्रस्ताव दिया.
मामले को सुनवाई सुनवाई के लिए ट्रायल कोर्ट के पास लाया. मजिस्ट्रेट ने नौ अधिकारियों को सम्मन कर आरोप तय किए. वहीं, 2019 में, पंजाब एंड हरियाणा हाई कोर्ट ने नौ अधिकारियों के खिलाफ आरोपों को बरकरार रखा, लेकिन सीआरपीसी की धारा 197 तहत पूर्व स्वीकृति के अभाव में डीसीपी के खिलाफ कार्यवाही रद्द कर दिया. अब इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई.
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सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सादे कपड़ों में सर्विस गन से नागरिक को मारना पुलिस के कर्तव्य का हिस्सा नहीं है. और अगर ऐसा होता है, तो पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सीआरपीसी की धारा 197 तहत मंजूरी की आवश्यकता नहीं होगी. सुप्रीम कोर्ट ने राज्य सरकार की इजाजत के बिना मुकदमा चलाने की इजाजत दी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आरोपी अधिकारियों द्वारा किए गए कृत्य को उनके आधिकारिक कर्तव्यों से जोड़ना उचित नहीं है, यह घटना सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने या वैध गिरफ्तारी करने के कर्तव्यों से किसी तरह का तार्किक संबंध स्थापित नहीं करती है. आरोपी अधिकारियों ने मृतक को निशाना बनाया, जबकि वे वर्दी में नहीं थे और अपने सरकारी हथियारों का इस्तेमाल कर रहे थे. सुप्रीम कोर्ट ने डीसीपी के खिलाफ भी मुकदमा चलाने के निर्देश दिए. शीर्ष अदालत ने कहा कि साक्ष्य छेड़छाड़, जैसे नंबर प्लेट हटाना, धारा 197 सीआरपीसी के अंतर्गत संरक्षित कार्य नहीं है. इन टिप्पणी के बाद सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों द्वारा दायर याचिका को रद्द कर दिया.