क्या विवेकाधिकार शक्तियों के तहत Supreme Court, राष्ट्रपति-गवर्नर पर डेडलाइन लगा सकता है? President द्रौपदी मुर्मू ने 14 सवाल और भी पूछे
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट को सलाह के लिए एक रेफरेंस भेजा है, जिसमें उन्होंने शीर्ष अदालत के राष्ट्रपति-गवर्नर पर बिल पर एक निश्चित समय-सीमा में फैसला लेने के लिए बाध्यकारी किया. इसे लेकर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संविधान के अनुच्छेद 143(1) के तहत सर्वोच्च न्यायालय को एक रेफरेंस भेजा है. यह रेफरेंस सर्वोच्च न्यायालय के हालिया फैसले से संबंधित है जिसमें राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने की समय सीमा निर्धारित की गई थी. राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के उस निर्देश पर सवाल उठाया है जिसमें समय सीमा का पालन न करने पर मानी गई सहमति (deemed consent) का प्रावधान है. साथ ही इसमें कहा गया है कि राष्ट्रपति और राज्यपाल की मानी गई सहमति की अवधारणा संवैधानिक योजना के विपरीत है और राष्ट्रपति और राज्यपाल की शक्तियों को सीमित करती है. राष्ट्रपति मुर्मू ने सर्वोच्च न्यायालय से अपने विचार के लिए 14 प्रश्न भेजे हैं, इस बात पर ज़ोर देते हुए कि अनुच्छेद 200 और 201 में राज्यपालों और राष्ट्रपति द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने की कोई समय सीमा या विशिष्ट प्रक्रियात्मक आवश्यकताएं नहीं बताई गई हैं.
बता दें कि राष्ट्रपति के इन सवालों का जबाव देने के लिए सुप्रीम कोर्ट को पांच जजों की संवैधानिक पीठ बनानी होगी.
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रेफरेंस में पूछे गए 14 सवाल
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत किसी विधेयक के प्रस्तुत होने पर राज्यपाल के समक्ष उपलब्ध संवैधानिक विकल्प क्या हैं?
- क्या अनुच्छेद 200 के अंतर्गत किसी विधेयक के प्रस्तुत होने पर राज्यपाल अपने समक्ष उपलब्ध सभी विकल्पों का प्रयोग करते समय मंत्रिपरिषद द्वारा दी गई सलाह से बाध्य है?
- क्या भारतीय संविधान के अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायिक समीक्षा योग्य है?
- क्या भारतीय संविधान का अनुच्छेद 361, अनुच्छेद 200 के अंतर्गत राज्यपाल के कार्यों की न्यायिक समीक्षा पर पूर्ण प्रतिबंध लगाता है?
- क्या राज्यपाल द्वारा अनुच्छेद 200 के तहत शक्तियों के प्रयोग के लिए, संवैधानिक रूप से निर्धारित समय सीमा और तरीके के अभाव में, न्यायिक आदेशों के माध्यम से समय सीमा लगाई जा सकती है और प्रयोग के तरीके को निर्धारित किया जा सकता है?
- क्या अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा संवैधानिक विवेक का प्रयोग न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
- क्या संविधान में निर्धारित समयसीमा और राष्ट्रपति की शक्तियों के प्रयोग के तरीके के अभाव में, भारत के संविधान के अनुच्छेद 201 के तहत राष्ट्रपति द्वारा विवेक के प्रयोग के लिए न्यायिक आदेशों के माध्यम से समयसीमा लगाई जा सकती है और प्रयोग का तरीका निर्धारित किया जा सकता है?
- संविधान में राष्ट्रपति से जुड़े प्रावधान, क्या राष्ट्रपति को भारत के संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत एक रेफरेंस के माध्यम से सर्वोच्च न्यायालय से सलाह लेने और सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने की आवश्यकता है जब राज्यपाल किसी विधेयक को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए आरक्षित करता है या अन्यथा?
- क्या राज्यपाल और राष्ट्रपति द्वारा क्रमशः अनुच्छेद 200 और 201 के तहत लिए गए निर्णय कानून के लागू होने के पूर्व ही न्यायिक समीक्षा के अधीन हैं?
- क्या अनुच्छेद 142 के तहत राष्ट्रपति/राज्यपाल की संवैधानिक शक्तियों के प्रयोग और आदेशों को किसी भी तरह से प्रतिस्थापित किया जा सकता है?
- क्या राज्य विधानमंडल द्वारा बनाया गया कानून, राज्यपाल की अनुच्छेद 200 के तहत दी गई सहमति के बिना, कैसे स्वत: लागू होकर कानून माना जा सकता है?
- क्या अनुच्छेद 142 के तहत उच्चतम न्यायालय की शक्तियाँ केवल प्रक्रियात्मक कानून तक सीमित हैं या यह मौजूदा संवैधानिक या कानूनी प्रावधानों के विपरीत निर्देश/आदेश जारी करने तक विस्तारित होती हैं?
- क्या संविधान, केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के बीच विवादों को भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 के तहत सुप्रीम कोर्ट में मुकदमे के अलावा, किसी अन्य अधिकार क्षेत्र में सुलझाने से रोकता है?
- क्या अनुच्छेद 145(3) के मद्देनजर, इस माननीय न्यायालय के किसी भी पीठ के लिए यह अनिवार्य नहीं है कि वह पहले यह तय करे कि उसके समक्ष लंबित कार्यवाही में शामिल प्रश्न इस प्रकार का है जिसमें संविधान की व्याख्या के संबंध में महत्वपूर्ण विधिक प्रश्न शामिल हैं और तो इसे कम से कम पांच जजों की पीठ के पास भेजा जाए?
राष्ट्रपति ने एक रेफरेंस के माध्यम से पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट से सुझाव देने की मांग की है. वहीं, इन सवालों के जवाब देने के लिए सर्वोच्च न्यायालय को 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ बनानी होगी।