तेलंगाना में 42% OBC आरक्षण देने के राज्य के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती, सोमवार को हो सकती है अहम सुनवाई
तेलंगाना सरकार के स्थानीय निकायों में पिछड़ा वर्ग (बीसी) को 42 फीसदी आरक्षण देने के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सोमवार के दिन सुप्रीम कोर्ट इस पर सुनवाई करेगा. सर्वोच्च न्यायालय की वेबसाइट पर प्रकाशित वाद-सूची के अनुसार, जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ 6 अक्टूबर को इस मामले की सुनवाई करेगी. संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत अधिवक्ता सोमिरन शर्मा के माध्यम से दायर याचिका में तर्क दिया गया है कि इस कदम ने स्थानीय निकायों में आरक्षण को नियंत्रित करने वाले सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों द्वारा निर्धारित 50 प्रतिशत की सीमा का उल्लंघन किया है.
याचिका में 26 सितंबर के सरकारी आदेश संख्या 09 को चुनौती दी गई है, जिसमें तर्क दिया गया है कि मौजूदा एससी और एसटी कोटा 15 प्रतिशत और 10 प्रतिशत के साथ, कुल आरक्षण अब 67 प्रतिशत से अधिक है. याचिका में बताया गया है कि तेलंगाना पंचायत राज अधिनियम, 2018 की धारा 285ए, के. कृष्ण मूर्ति बनाम भारत संघ मामले में संविधान पीठ के फैसले के अनुरूप 50 प्रतिशत की सीमा को स्पष्ट रूप से संहिताबद्ध करती है. याचिका में कहा गया कि इस वैधानिक प्रतिबंध के बावजूद, प्रतिवादी राज्य ने विवादित सरकारी आदेश को लागू करने की कोशिश की है, जिससे वह संविधान और कानून दोनों के विरुद्ध कार्य कर रहा है.
के. कृष्ण मूर्ति मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा गया है कि "स्थानीय स्वशासन के संदर्भ में अनुसूचित जातियों/अनुसूचित जनजातियों/अन्य पिछड़ा वर्गों के पक्ष में 50 प्रतिशत आरक्षण की ऊपरी सीमा का उल्लंघन नहीं किया जाना चाहिए. अपवाद केवल अनुसूचित क्षेत्रों में अनुसूचित जनजातियों के हितों की रक्षा के लिए ही किए जा सकते हैं."
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याचिका में राज्य सरकार के फैसले के आधार पर भी सवाल उठाया गया कि यह फैसला एक सदस्यीय आयोग की रिपोर्ट पर आधारित है, जिसे "न तो सार्वजनिक किया गया, न ही विधानमंडल में इस पर बहस हुई, और न ही यह किसी कठोर समकालीन अनुभवजन्य जांच की आवश्यकता को पूरा करती है. तेलंगाना सरकार ने संविधान के अनुच्छेद 243डी(6) और 243टी(6) को मिसकंसीव (गलत रूप से इसकी व्याख्या) किया है. हालांकि ये प्रावधान राज्य विधानमंडल को स्थानीय निकायों में पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण देने का अधिकार देते हैं, लेकिन यह अधिकार संवैधानिक सीमाओं के अधीन है, जिसमें न्यायिक रूप से लगाई गई 50 प्रतिशत की अधिकतम सीमा भी शामिल है.