'बिना दोष साबित हुए लंबे समय तक Preventative Detention में नहीं रख सकते', NDPS Act मामले सुप्रीम कोर्ट ने नागालैंड सरकार का फैसला पलटा
सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को निवारक हिरासत (Preventative Detention) को एक कठोर उपाय बताते हुए मादक पदार्थों से जुड़े मामले में गिरफ्तार दो व्यक्तियों के खिलाफ जारी हिरासत में आदेश को सुरक्षा उपायों की कमी के कारण रद्द कर दिया. जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने अधिकारियों द्वारा जारी किए गए हिरासत के "कूट आदेशों" को गलत ठहराया है. मामले में याचिकाकर्ता अशरफ हुसैन चौधरी और उसकी पत्नी अदालियू चावांग के खिलाफ नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रॉपिक सब्सटांसेस एक्ट, 1988 (NDPS Act) की धारा 3 (1) के तहत सरकार ने 29 अगस्त 2024 को हिरासत में रखने का आदेश जारी किया था, जिसे गुवाहाटी हाई कोर्ट ने भी बरकरार रखा. सुप्रीम कोर्ट में आरोपी याचिकाकर्ता ने हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती दी थी.
निश्चित अवधि के लिए निवारक हिरासत की अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने पीठ ने निवारक हिरासत को बताते हुए कहा कि ऐसा उपाय है जिसके तहत किसी व्यक्ति को, जिस पर किसी दंडात्मक कानून के तहत मुकदमा नहीं चलाया गया हो और जिसका दोष सिद्ध नहीं हुआ हो, एक निश्चित अवधि के लिए ही बंद करके रखा जा सकता है ताकि उसकी संभावित आपराधिक गतिविधियों पर रोक लगाई जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 22(3)(बी) का हवाला देते हुए कहा कि इसके तहत भले ही निवारक हिरासत की मंजूरी दी गई है, लेकिन अनुच्छेद 22 में इसके लागू करने के लिए कड़े मानदंड भी निर्धारित किए गए हैं.
नागालैंड सरकार का फैसला रद्द
पीठ ने कहा कि अनुच्छेद 22 में संसद द्वारा निवारक हिरासत से संबंधित शर्तों और प्रक्रियाओं को निर्धारित करने के लिए कानून बनाने का उल्लेख है. उन्होंने कहा कि गुवाहाटी हाई कोर्ट ने विवादित हिरासत आदेशों की वैधता का परीक्षण करते समय स्थापित कानूनी मानदंडों का पालन करने में गलती की है. इसलिए, गुवाहाटी हाई कोर्ट द्वारा 29 अगस्त 2024 को पारित सामान्य निर्णय, जिसमें दोनों रिट याचिकाओं को खारिज किया गया था, को अलग रखा जाता है और अपीलों को अनुमति दी जाती है. पीठ ने नगालैंड सरकार के गृह विभाग के विशेष सचिव द्वारा पारित और बढ़ाए गए 30 मई 2024 के नजरबंदी आदेशों को भी रद्द कर दिया.
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(खबर पीटीआई इनपुट से है)