अगर जांच कमेटी असंवैधानिक थी, तो गठित होते ही उसे चुनौती क्यों नहीं दी? जांच में क्यों शामिल हुए थे? सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस यशवंत वर्मा से पूछे तीखे सवाल
आज (सोमवार को) सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जस्टिस यशवंत वर्मा से उनकी उस याचिका को लेकर सवाल किए जिसमें उन्होंने नकदी बरामदगी मामले में आंतरिक जांच समिति की रिपोर्ट को अमान्य करार दिए जाने का अनुरोध किया है. आंतरिक जांच समिति ने नकदी बरामदगी विवाद में वर्मा को कदाचार का दोषी पाया था.
जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस एजी मसीह की पीठ ने जस्टिस वर्मा से उनकी याचिका में पक्षकारों को लेकर सवाल किए और कहा कि उन्हें अपनी याचिका के साथ आंतरिक जांच रिपोर्ट दाखिल करनी चाहिए थी. वहीं, सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती दिखाते हुए पूछा कि आप ये बताएं कि जब इस मामले में कमेटी गठित की गई थी तब आपने उस फैसले को चुनौती क्यों नहीं दी थी? इस पर जस्टिस वर्मा की पैरवी कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि कमेटी ये पता करेगी कि कैश वहां कैसे पहुंचा, जबकि ऐसा कुछ दिखाई नहीं पड़ता है.
आगे सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने कहा कि अनुच्छेद 124 (सुप्रीम कोर्ट की स्थापना और गठन) के तहत एक प्रक्रिया है और किसी न्यायाधीश के बारे में सार्वजनिक तौर पर बहस नहीं की जा सकती है. कपिल सिब्बल ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि अभी जस्टिस वर्मा के केस को सदन में लंबित नहीं माना जा सकता.
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सिब्बल ने कहा, 
संवैधानिक व्यवस्था के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की वेबसाइट पर वीडियो जारी करना, सार्वजनिक टीका टिप्पणी और मीडिया द्वारा न्यायाधीशों पर आरोप लगाना प्रतिबंधित है.” 
पीठ ने इस पर कहा कि आप जांच समिति के सामने क्यों पेश हुए? क्या आप समिति के पास यह सोचकर गए, कि शायद आपके पक्ष में फैसला आ जाए. पीठ ने जस्टिस वर्मा के वकील कपिल सिब्बल से पूछा कि आपने इन– हाउस कमिटी की रिपोर्ट याचिका के साथ क्यों नहीं लगाई है. बता दें सुप्रीम कोर्ट ने उक्त टिप्पणियों के साथ मामले की सुनवाई को अगले बुधवार के लिए टाल दिया है.
(खबर जी मीडिया एजेंसी इनपुट से है)