बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन पर SC में तीखी बहस, कहा- 'मुद्दा आपसी विश्वास की कमी’ से उपजा, जानें क्या कुछ हुआ
बिहार में वोटर लिस्ट के रिवीजन को लेकर रहे चल रहे विवाद को सुप्रीम कोर्ट ने 'आपसी विश्वास की कमी' के चलते उपजा मुद्दा बताया है. आज (बुधवार) याचिकाकर्ताओं की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि असम में चुनाव आयोग की ऐसी कार्रवाई से प्रभावित व्यक्ति फॉरेन ट्रिब्यूनल जा सकता है बिहार में ऐसी कोई ट्रिब्यूनल तक नहीं है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि प्रभावित व्यक्ति हाई कोर्ट जा सकता है. जस्टिस बागची ने सिंघवी से कहा कि आधार को लेकर हम आपकी दलील समझ रहे हैं, लेकिन आप नागरिकता सुनिश्चित करने के लिए मान्य दस्तावेजों की लिस्ट देखें तो यह वोटर के लिए सुविधाजनक दिखता है. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर आयोग सभी 11 दस्तावेज़ मांग रहा होता तो हम SIR को वोटर के खिलाफ मान सकते थे लेकिन अगर किसी एक दस्तावेज को भी स्वीकार किया जा रहा है तो क्या ऐसा कह सकते हैं?
अभिषेक मनु सिंघवी ने दलील दी कि SIR में जिन 11 दस्तावेजों को शामिल किया गया है, बिहार में अधिकांश मतदाताओं के पास नहीं मिलेगा. वोटर कार्ड सबसे बेहतर पहचान पत्र है उसे शामिल नहीं किया गया है. आधार जो सबके पास मौजूद है उसे शामिल नहीं किया गया है. बिहार में पासपोर्ट मात्र 1- 2 प्रतिशत लोगों के पास मिलेगा. निवास प्रमाणपत्र किसी के पास नहीं मिलेगा, जिनके पास जमीन नहीं उनके पास प्रॉपर्टी दस्तावेज कैसे मिलेगा. कल भी SC ने कहा था कि बिहार भी देश का हिस्सा है. ऐसा नहीं हो सकता कि उनके पास कोई दस्तावेज न हो.
आज भी जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि -बिहार को लेकर ऐसी बातें मत कीजिए. आज भी सबसे अधिक IAS बिहार से आते हैं. सीनियर एडवोकेट सिंघवी ने इसके जवाब में कहा कि बिहार में बेहद प्रतिभाशाली वैज्ञानिक भी हैं, लेकिन यह एक खास वर्ग के लोगों तक ही सीमित है. सूबे में ग्रामीण, बाढ़ग्रस्त और गरीबी से ग्रस्त इलाके हैं. उनके लिए 11 दस्तावेज़ों की लिस्ट बनाने का क्या मतलब है?
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बीते दिन की सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने आज सुनवाई के दौरान SIR की प्रकिया के विरोध में रखी जा रही याचिकाकर्ताओं की कई दलीलो पर सवाल खड़ा किया. याचिकाकर्ताओं का कहना था कि SIR की प्रकिया के चलते करीब 1 करोड़ मतदाताओं के नाम कट जाएगे. बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि अगर 7.9 करोड़ से 7.24 करोड़ मतदाता वोटर लिस्ट के पुनरीक्षण की प्रकिया में शामिल हो रहे है तो फिर एक करोड़ वोट कटने की बात कहां से आ गई. दरअसल चुनाव आयोग की ओर से कोर्ट को बताया गया था कि करीब 7.9 करोड़ वोटर में से 6.5 करोड़ लोगो ऐसे लोगो की कोई दस्तावेज दाखिल करने की जरूरत नहीं है, जिनका नाम 2003 की मतदाता सूची में है.
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने चुनाव आयोग के इस रुख से भी सहमति जताई कि आधार कार्ड को अपने आप मे नागरिकता साबित करने के लिए कोई निर्णायक दस्तावेज नहीं माना जा सकता। मतदाताओं को इसके साथ दूसरे दस्तावेजों को भी दिखाने की ज़रूरत है
सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओ की इस दलील से भी असहमति जताई कि बिहार के ज़्यादातर लोगों के पास वो ज़रूरी दस्तावेज नहीं है, जिनके आधार पर वो अपना नाम वोटर लिस्ट में शामिल कर सके. जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि बिहार भी देश का हिस्सा है, अगर बिहार में लोगों के पास दस्तावेज नहीं होंगे तो फिर तो देश के किसी हिस्से में रहने वाले लोगों के पास नहीं होने चाहिए! अपनी नागरिकता साबित करने के लिए लोगों के पास कोई तो दस्तावेज होगा. सिम कार्ड खरीदने ,OBC/SC/ST का सर्टिफिकेट हासिल करने के लिए कुछ दस्तावेजों की ज़रूरत होती है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं से कहा कि अगर आप यह साबित कर देते हैं कि SIR की प्रक्रिया गैरकानूनी है तो हम इस पूरी प्रक्रिया को अभी भी रद्द कर सकते है.
इससे पहले सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ताओं की ओर से वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी, गोपाल शंकर नारायणन , वृंदा ग्रोवर ने अपनी दलील रखी. वकीलों ने दलील दी कि सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर वोटर लिस्ट में बड़ी संख्या में नाम काटे जाते है तो वो दखल देगा, यहां 65 लाख लोगों को वोटर लिस्ट में नहीं शामिल किया गया. वकील की ओर से दलील दी गई कि कुछ ऐसे लोगों को भी चुनाव आयोग ने मृत मानकर वोटर लिस्ट में शामिल नहीं किया, जो वास्तव में जीवित है. सुनवाई के दौरान उनमे से कुछ लोग कोर्ट में मौजूद थे. हालांकि आयोग की ओर से कहा गया कि अभी तक जारी की गई लिस्ट महज ड्राफ्ट लिस्ट है, इसमें जाहिर तौर पर कुछ खामियां हो सकती हैं और सुधार की गुंजाइश है. अगर किसी शख्श को लगता है कि उसका नाम ग़लत तरीके से काटा गया तो वो आयोग के पास अर्जी दाखिल कर सकता है.
(खबर जी मीडिया के संवाददाता अरविंद सिंह की रिपोर्ट से है)