क्या क्लाइंट से जुड़े मुकदमे में वकीलों से पूछताछ कर सकती है पुलिस? जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा, अटॉर्नी-क्लाइंट प्रिविलेज का भी जिक्र आया
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने वकीलों को पुलिस या जांच एजेंसियों से जुड़े मामले पर अहम सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट इस बात पर विचार कर रही है कि क्या पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा उनके मुवक्किल से जुड़े मामले में वकीलों को समन किया उचित है. सुनवाई के वक्त सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुवक्किलों को सलाह देने के लिए वकीलों को पुलिस या जांच एजेंसियों द्वारा सीधे तलब करने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और ऐसा करना न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए प्रत्यक्ष खतरा है.
जस्टिस केवी विश्वनाथन और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि कानूनी पेशा न्याय प्रशासन की प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है.
पीठ ने कहा,
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जांच एजेंसियों/पुलिस को किसी मामले में पक्षकारों को सलाह देने वाले बचाव पक्ष के वकील या अधिवक्ताओं को सीधे तलब करने की अनुमति देना कानूनी पेशे की स्वायत्तता को गंभीर रूप से कमजोर करेगा और न्याय प्रशासन की स्वतंत्रता के लिए भी प्रत्यक्ष खतरा पैदा करेगा.’’
पीठ ने मामले में कुछ अन्य सवाल भी किये.
पीठ ने पूछा,
कुछ विचारणीय प्रश्नों में से एक यह भी है कि जब कोई व्यक्ति किसी मामले से केवल पक्षकार को सलाह देने वाले वकील के रूप में जुड़ा होता है, तो क्या जांच एजेंसी/अभियोजन एजेंसी/पुलिस सीधे वकील को पूछताछ के लिए बुला सकती है?’’
पीठ ने आगे सवाल किया,
यह मानते हुए कि जांच एजेंसी या अभियोजन एजेंसी या पुलिस के पास ऐसा मामला है जिसमें व्यक्ति की भूमिका केवल एक वकील के रूप में नहीं है, बल्कि उससे कहीं अधिक है, तब भी क्या उन्हें सीधे समन जारी करने की अनुमति दी जानी चाहिए या उन असाधारण परिस्थितियों के लिए न्यायिक निगरानी निर्धारित की जानी चाहिए?’’
पीठ ने कहा,
चूंकि यह मामला सीधे न्याय प्रशासन को प्रभावित करता है, इसलिए किसी पेशेवर को...जब वह मामले में वकील है...प्रथम दृष्टया हिरासत में लेना उचित नहीं लगता, इस पर अदालत को आगे विचार करना होगा.
शीर्ष अदालत गुजरात के एक वकील की याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें 12 जून को दिये हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई थी. हाई कोर्ट ने मार्च 2025 को वकील को उसके मुवक्किल के खिलाफ एक मामले में पुलिस द्वारा तलब करने संबंधी नोटिस को रद्द करने से इनकार कर दिया था. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने राज्य को अगले आदेश तक संबंधित वकील को तलब न करने का निर्देश दिया और उसे जारी पुलिस के नोटिस के अमल पर रोक लगा दी. पीठ ने गुजरात सरकार को नोटिस जारी कर जवाब मांगा है.