लोगों को बिना कारण बताए गिरफ्तार नहीं कर सकती पुलिस! ऐसी कार्रवाई असंवैधानिक, उत्तराखंड HC ने जेल में बंद शख्स को ऐसे दी राहत
पुलिस बिना कारण बताए लोगों को गिरफ्तार नहीं कर सकती है. नियमत: ये कारण लिखित में होने चाहिए, पुलिस विषम परिस्थति या संगीन अपराध के मामले में मौखिक तौर पर भी कारण बता सकती है. अगर शक के आधार पर पुलिस उसे हिरासत में लेती है, तब भी पुलिस अधिकारी को इस बात की सूचना उसके परिजनों को देनी है और शख्स को 24 घंटे से ज्यादा हाजत यानि थाने में नहीं रख सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कई मौके पर ऐसा फैसला सुनाया है. ऐसा ही एक मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट के सामने आया, जिसमें आरोपी शख्स को पुलिस बिना कारण बताए बार-बार रिमांड पर ले रही थी. आइये जानते हैं कि अदालत ने इस मामले में क्या फैसला सुनाया है...
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने धोखाधड़ी के मामले में जेल में बंद एक आरोपी को तत्काल रिहा करने के आदेश दिए. अदालत ने आरोपी को हिरासत में लिए जाते समय गिरफ्तारी का लिखित आधार नहीं बताने को भारत के संविधान का स्पष्ट उल्लंघन बताया. जस्टिस आलोक महरा की एकलपीठ ने आरोपी मोहम्मद तनवीर द्वारा दायर एक आपराधिक याचिका पर सुनवाई करते हुए उसकी गिरफ्तारी और रिमांड के संबंध में नौ मार्च को पारित किए गए आदेश को इसी आधार पर गैरकानूनी’ करार दिया और उसे तत्काल रिहा करने के आदेश दिए. अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी का लिखित आधार बताए बिना बार-बार रिमांड आदेश पारित करना कानून के विपरीत है और संविधान के अनुच्छेद 21 और 22 (1) का उल्लंघन है. उत्तराखंड हाई कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए कहा कि आरोपी को गिरफ्तारी का आधार बताना महज औपचारिकता नहीं बल्कि उसका मौलिक अधिकार है.
वहीं, आरोपी तनवीर ने दलील दिया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गिरफ्तारी के लिए लिखित आधार को जरूरी कर दिए जाने के बावजूद पुलिस ने उसे उसकी गिरफ्तारी का लिखित कारण नहीं दिया. दूसरी ओर, राज्य सरकार ने दलील दी कि जांच के दौरान पर्याप्त सबूत मिलने के बाद ही गिरफ्तारी की गई. हालांकि, अदालत ने कहा कि गिरफ्तारी की वैधता तभी बरकरार रहती है जब आरोपी को गिरफ्तारी के समय लिखित आधार बताया जाए.
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हरिद्वार जिले के रुड़की में 2025 के एक लंबित आपराधिक मामले में मुकदमे का सामना कर रहे तनवीर को अदालत ने राहत देते हुए उसे निजी मुचलका और दो जमानतों पर तुरंत रिहा करने के आदेश दिए. अदालत ने यह भी स्पष्ट किया कि गिरफ्तारी को असंवैधानिक घोषित कर दिए जाने के बाद आरोप पत्र दाखिल करने या संज्ञान आदेश पारित करने से गिरफ्तारी वैध नहीं हो जाती.