32 साल बाद बरी हुआ शख्स, दहेज के लिए हत्या के मामले में उत्तराखंड हाई कोर्ट से मिली राहत, जानें पूरा मामला
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने 32 साल पुराने दहेज हत्या के मामले में एक व्यक्ति को बरी कर दिया है जिसे अधीनस्थ अदालत ने दोषी करार दिया था. जस्टिस पंकज पुरोहित की एकल पीठ ने राम कुमार गुप्ता को दहेज निषेध अधिनियम के तहत उनके खिलाफ लगाए गए आरोपों से मुक्त कर दिया. पीठ ने निचली अदालत द्वारा उनकी दोषसिद्धि में गंभीर विसंगतियों और अनियमितताओं का उल्लेख करते हुए यह फैसला सुनाया.
उत्तराखंड हाई कोर्ट ने कहा कि निचली अदालत ने पत्नी की दहेज हत्या के मामले में सुनी-सुनाई बातों और उसकी ओर से लिखे गए कथित पत्रों की फोटोस्टेट प्रतियों के आधार पर आरोपी को दोषी ठहराया और उन्हें वैध सबूत माना. हाई कोर्ट ने कहा कि मूल प्रति के अभाव में फोटोकॉपी की कोई कानूनी वैधता नहीं है.
चमोली जिले के निवासी गुप्ता पर 1993 में पत्नी की मौत के बाद दहेज निषेध अधिनियम के तहत मामला दर्ज किया गया था. चमोली जिला अदालत ने 2007 में दहेज हत्या के मामले में गुप्ता को उनकी पत्नी की मौत को लेकर दोषी करार दिया. अदालत ने उन्हें ढाई साल की सजा सुनाई. याचिकाकर्ता गुप्ता ने निचली अदालत के फैसले को हाई कोर्ट में चुनौती देते हुए दावा किया कि उनके अपनी पत्नी के साथ अच्छे संबंध थे और उन्होंने दहेज की कोई मांग नहीं की थी. उनके भाई ने भी अपनी गवाही में इसकी पुष्टि की.
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याचिकाकर्ता ने पत्नी के परिवार को उसकी आकस्मिक मृत्यु के बारे में सूचित किया था। खाना बनाते समय दुर्घटनावश झुलसने के कारण उसकी मृत्यु हो गई थी. याचिकाकर्ता ने कहा कि पत्नी का अंतिम संस्कार उसके परिवार की सहमति से किया गया था. बाद में महिला के परिवार ने गुप्ता के खिलाफ दहेज उत्पीड़न का आरोप लगाया, हालांकि जांच अधिकारी ने पुष्टि की कि मामला डेढ़ साल की देरी से प्राप्त हुआ था.
याचिकाकर्ता की ओर से दलील दी गई कि मामले में देरी से दर्ज कराई गई प्राथमिकी से उत्पीड़न की शिकायत संदिग्ध लगती है. इसके अलावा महिला ने सब डिविजनल मजिस्ट्रेट (एसडीएम) के समक्ष मृत्यु पूर्व बयान में कहा था कि खाना बनाते समय वह झुलस गई थी और इसके लिए उसका पति जिम्मेदार नहीं है. सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने चमोली अदालत के फैसले को खारिज कर दिया और गुप्ता को दहेज निषेध अधिनियम के तहत सभी आरोपों से बरी कर दिया.
(खबर पीटीआई इनपुट से है)