क्या सजायाफ्ता नेता वापस संसद में वापस लौट सकते हैं? सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र सरकार और चुनाव आयोग से मांगा जबाव
सुप्रीम कोर्ट ने 'राजनीति का अपराधीकरण' को एक महत्वपूर्ण मुद्दा बताते हुए यह सवाल उठाया है कि एक व्यक्ति कैसे संसद में लौट सकता है जब वह आपराधिक मामले में दोषी ठहराया गया हो. कोर्ट ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी जो भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति निष्ठा में दोषी पाया जाता है, उसे सेवा में उपयुक्त नहीं माना जाता है, लेकिन वह मंत्री बन सकता है. सुप्रीम कोर्ट ने राजनीतिक अपराधीकरण को एक प्रमुख मुद्दा बताया और केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से तीन हफ्तों में जवाब देने को कहा है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट का ये निर्देश वरिष्ठ अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर जनहित याचिका में दोषी राजनेताओं पर जीवन भर के लिए प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है.
क्या सजायाफ्ता नेता फिर से राजनीति में आ सकते हैं?
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस मनमोहन की खंडपीठ ने कहा कि एक बार जब किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया जाता है और सजा सुनाई जाती है, तो यह स्पष्ट नहीं है कि वह कैसे संसद या विधानमंडल में वापस आ सकता है. न्यायालय ने कहा कि दोषी ठहराए जाने के बाद भी लोग कैसे राजनीतिक पदों पर आसीन हो सकते हैं. शीर्ष अदालत ने कहा कि एक सरकारी कर्मचारी जो भ्रष्टाचार या राज्य के प्रति असंतोष में दोषी पाया जाता है, उसे सेवा में उपयुक्त नहीं माना जाता, जबकि वही व्यक्ति मंत्री बन सकता है. यह स्थिति कानून के प्रति दोहरे मापदंड को दर्शाती है. न्यायालय ने इस मामले को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना के समक्ष रखने का निर्देश दिया है ताकि इसे एक बड़े पीठ द्वारा विचार किया जा सके.
सांसदों के खिलाफ लंबित मामलों की सुनवाई
मौके पर मौजूद वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने न्यायालय को बताया कि उच्च न्यायालयों के आदेशों के बावजूद, सांसदों के खिलाफ कई आपराधिक मामले लंबित हैं. उन्होंने कहा कि 42 प्रतिशत मौजूदा लोकसभा सदस्यों के खिलाफ आपराधिक मामले हैं, जो कि एक शर्मनाक स्थिति है. यह जनहित याचिका अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर की गई थी, जिसमें सांसदों और विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामलों के त्वरित निपटान की मांग की गई थी. याचिका में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति गंभीर अपराधों में दोषी है, तो उसे राजनीति में स्थान नहीं मिलना चाहिए.
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इस पर जस्टिस मनमोहन ने इस पर टिप्पणी की कि सभी मामलों को एक ही तराजू में नहीं तौला जा सकता है. उन्होंने कहा कि न्यायालयों में काम का बोझ अधिक है और यह जरूरी है कि वास्तविक कारणों का पता लगाया जाए. इस मामले में एक व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है. पीठ अब इस मामले की सुनवाई तीन सप्ताह बाद करेगी.