तमिलनाडु सरकार और गवर्नर के बीच विवाद: विधेयकों पर सहमति न देने पर सुप्रीम कोर्ट ने पूछे आठ सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को तमिलनाडु सरकार और गवर्नर आर एन रवि के बीच विधायी विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों पर सहमति नहीं देने के विवाद को सुलझाने के लिए आठ महत्वपूर्ण प्रश्नों को निर्धारित किया है. यह प्रश्न गवर्नर की शक्ति और विवेकाधिकार के साथ-साथ पॉकेट वीटो की अवधारणा पर केंद्रित हैं. बता दें कि यह मामला तमिलनाडु सरकार द्वारा दायर दो याचिकाओं से संबंधित है, जो गवर्नर द्वारा पिथले तीन साल से विधेयकों पर सहमति न देने के कारण विधानसभा और गवर्नर के बीच लंबे समय से चल रहे संघर्ष से जु़ड़ा है.
गवर्नर ने अपना अलग प्रोजीसर बना लिया है: SC
आज सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने गर्वनर के रवैये से नाराजगी जाहिर करते हुए कहा कि ऐसा प्रतीत होता हैं, उन्होंने अपना ही प्रोसीजर बना लिया है. सुप्रीम कोर्ट ने पूछा कि विधेयक में ऐसा क्या था कि जिस ढूंढ़ने में गवर्नर को समझने में तीन साल का समय लग गया.
सुनवाई के दौरान जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि राज्यपाल द्वारा बिलों पर सहमति न देने की घोषणा उस समय आई जब सुप्रीम कोर्ट ने पंजाब के राज्यपाल के मामले में यह फैसला सुनाया कि राज्यपाल विधानसभा के बिलों को रोक नहीं सकते. महज तीन दिन के अंतर पर,
Also Read
- 'वोटर लिस्ट से बाहर हुए नामों को सार्वजनिक करें', सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को दिया अहम आदेश
- आवारा कुत्तों पर SC सख्त, कहा- 'समस्या की वजह अधिकारियों की निष्क्रियता', पुराने आदेश पर रोक की मांग पर फैसला रखा सुरक्षित
- बिहार वोटर लिस्ट रिवीजन पर SC में तीखी बहस, कहा- 'मुद्दा आपसी विश्वास की कमी’ से उपजा, जानें क्या कुछ हुआ
अदालत के सामने मौजूद अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने बेंच को बताया कि ये बिल राज्य विश्वविद्यालयों के चांसलर के रूप में राज्यपाल को हटा रहे हैं, जोकि राष्ट्रीय महत्व का मामला है. अटॉर्नी जनरल ने राज्य पर दुर्भावना का आरोप लगाया है.
जस्टिस पारदीवाला ने पूछा, "आपको बताना होगा कि इन बिलों में ऐसा क्या गंभीर था कि उन्होंने (तीन साल) ऐसा किया. वे इतिहास की जांच नहीं करने जा रहे हैं, बल्कि केवल यह देख रहे हैं कि राज्यपाल ने विधायिका द्वारा पारित बारह बिलों पर सहमति क्यों नहीं दी."
AG ने बताया कि गर्वनर की ओर केवल एक साधारण विरोधाभास की घोषणा पर्याप्त है और गवर्नर से 'निबंध' लिखने की उम्मीद नहीं की जा सकती,
इसके बाद जस्टिस पारदीवाला ने कहा कि आपको हमें विरोधाभास दिखाना होगा. क्या विरोधाभास के नाम पर विधेयकों को रोका जा सकता है? न्यायमूर्ति ने यह भी बताया कि गवर्नर के पास सभी विधेयकों को राष्ट्रपति को संदर्भित करने का विकल्प था, लेकिन उन्होंने केवल दो ही भेजे. न्यायमूर्ति पारदीवाला ने पूछा कि इस तरह से विधेयकों को कब तक रोका जा सकता है?
इस मामले पर बहस कल जारी रहेगी.
क्या गर्वनर को दूसरी बार विधेयक लौटाने का अधिकार है?
आज दिन के शुरूआत में, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की पीठ ने आठ प्रश्न जारी पूछे हैं, जो तमिलनाडु सरकार के वरिष्ठ अधिवक्ता राकेश द्विवेदी की दलीलें सुन रहे हैं. पीठ ने दिन की कार्यवाही की शुरुआत में इन आठ प्रश्नों को सूचीबद्ध किया.
- जब एक राज्य विधानसभा एक विधेयक पारित करती है और उसे गवर्नर के पास सहमति के लिए भेजती है, और गवर्नर सहमति नहीं देते, लेकिन विधेयक फिर से पारित होता है और पुनः प्रस्तुत किया जाता है तो क्या गवर्नर को एक बार फिर उसे रोकने का अधिकार है?"
- क्या गवर्नर का विवेकाधिकार राष्ट्रपति को विधेयक प्रस्तुत करने में विशिष्ट मामलों तक सीमित है, या यह कुछ निर्धारित विषयों से परे भी फैला हुआ है?
- गवर्नर जब किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखने का निर्णय लेते हैं, तो किन बातों पर वह विचार करते हैं?
- पॉकेट वीटो की अवधारणा क्या है, और क्या यह भारत के संवैधानिक ढांचे में स्थान पाती है?
- अनुच्छेद 200 में 'घोषणा करनी चाहिए' शब्द का क्या प्रभाव है? क्या इसमें एक निश्चित समय सीमा का उल्लेख किया जा सकता है, जिसमें गवर्नर को घोषणा करनी चाहिए?
- अनुच्छेद 200 को दो परिदृश्यों में कैसे समझा जाता है? यदि विधेयक को अनुमोदन के लिए प्रस्तुत किया जाता है और गवर्नर उसे वापस करता है, तो क्या गवर्नर दोनों स्थितियों में अनुमोदन देने के लिए बाध्य हैं?
- यदि राष्ट्रपति गवर्नर को विधेयक वापस करने का निर्देश देते हैं और विधेयक दोबारा से राष्ट्रपति के पास प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति को किस प्रकार कार्य करना चाहिए?
- क्या गवर्नर को पुनः प्रस्तुत विधेयक पर स्वीकृति देनी चाहिए? क्या अनुच्छेद 201 में कोई संवैधानिक योजना है? यदि हाँ, तो चुप्पी को कैसे समझा जाए?
पीठ ने यह भी कहा कि वह संविधान के अनुच्छेद 200 की व्याख्या पर चर्चा करेगी, जो गवर्नर को राज्य विधानसभा द्वारा पारित विधेयकों को स्वीकृति देने या रोकने की शक्ति देती है. इसके अलावा, पीठ ने यह भी पूछा, "जब एक विधेयक गवर्नर के पास प्रस्तुत किया जाता है और पुनर्विचार के लिए लौटाया जाता है, क्या गवर्नर को एक बार फिर से विधेयक पारित होने पर सहमति देने का दायित्व है?"
पीठ इस मामले पर अटॉर्नी जनरल आर. वेंकटारामणि की सुनवाई करेगी.