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अदालतों का काम Moral Policing करना नही है... सुप्रीम कोर्ट ने तहसीन पूनावाला पर लगे दस लाख का जुर्माना हटाया, HC का फैसला पलटा

Sehzad Poonawaala, Supreme Court

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने जैन मुनि तरुण सागर का मजाक उड़ाने के लिए तहसीन पूनावाला और विशाल ददलानी पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था.

Written By Satyam Kumar | Published : April 8, 2025 5:13 PM IST

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने जैन मुनि तरुण सागर का मजाक उड़ाने के लिए तहसीन पूनावाला और विशाल ददलानी पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को रद्द कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस मामले में हाई कोर्ट मोरल पुलिसिंग (Moral Policing) कर रहा था, जो अदालतों का काम नहीं है. उच्चतम न्यायालय ने कहा कि हाई कोर्ट एक धर्म के पुरोहित की आलोचना करने के कारण प्रभावित हुआ था. हालांकि, हाई कोर्ट ने अपीलकर्ताओं तहसीन पूनावाला और विशाल ददलानी को बरी करने के बाद जुर्माना लगाया था.

SC ने हाई कोर्ट का फैसला पलटा

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट इस तथ्य से प्रभावित था कि अपीलकर्ताओं ने एक विशेष धर्म के पुजारी की आलोचना की है.  2019 में हाई कोर्ट ने तहसीन पूनावाला और संगीतकार तथा गायक विशाल ददलानी को 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था, जिसे भरने के बाद उनके खिलाफ दर्ज FIR रद्द की जाती. हाई कोर्ट ने कहा कि जुर्माना इस उद्देश्य से लगाया गया था कि आगे से कोई भी धार्मिक संप्रदाय के प्रमुखों का मजाक न उड़ाए.

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा,

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"इस तरह का आदेश क्या है? यहां लागत लगाने का कोई प्रश्न नहीं था. न्यायालय ने अपीलकर्ताओं को बरी किया लेकिन लागत लगा दी. न्यायालयों को मोरल पुलिसिंग नहीं करनी चाहिए."

सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायालयों का कार्य नैतिकता की स्थापना करना नहीं है, बल्कि कानून के अनुसार न्याय करना है. न्यायालय ने यह भी कहा कि इस तरह के आदेशों से समाज में डर और असहमति का माहौल पैदा होता है.

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तहसीन पूनावाला को राहत

पूनावाला ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की थी. उन्होंने तर्क दिया कि उनके खिलाफ लगाए गए आरोप अनुचित हैं और उनके विचारों की स्वतंत्रता का उल्लंघन करते हैं. अब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में अपीलकरताओं को राहत दी है.