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समाजवादी पार्टी को तगड़ा झटका! जानें क्यों पीलीभीत कार्यलय खाली करने के मामले में Supreme Court ने दखल देने से किया इंकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट

पीलीभीत में बने समाजवादी पार्टी के ऑफिस को लेकर जिला प्रशासन ने दावा किया है कि सपा कार्यालय नगर पालिका अधिकारी के आवास में चल रहा है, जबकि सपा का कहना है कि यह 2005 में नियमों के तहत आवंटित किया गया था.

Written By Satyam Kumar | Published : June 18, 2025 12:04 PM IST

पीलीभीत ऑफिस या कार्यलय मामले में समाजवादी पार्टी को सुप्रीम कोर्ट से बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश के पीलीभीत जिले में समाजवादी पार्टी के जिला कार्यालय को खाली कराए जाने के प्रशासन के आदेश के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया है. सर्वोच्च अदालत ने याचिका खारिज करते हुए कहा कि हाई कोर्ट के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई आधार नहीं बनता है.

हाई कोर्ट के फैसले को चुनौती देने में समाजवादी पार्टी ने 988 दिन की देरी की है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर उन्हें अपना पक्ष रखना है तो वे हाई कोर्ट जा सकते हैं. दरअसल, इलाहाबाद हाई कोर्ट ने पीलीभीत में समाजवादी पार्टी ऑफिस को खाली कराने के लिए जारी नोटिस को रद्द करने से इनकार कर दिया था. इस मामले को लेकर इलाके में बीते दिनों हुए प्रदर्शन के बाद प्रशासन ने पीएसी तैनात कर दी है और ड्रोन से इलाके की निगरानी रखी जा रही है.

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बता दें कि पीलीभीत जिला प्रशासन ने 16 जून तक समाजवादी पार्टी के कार्यालय को खाली करने का नोटिस दिया है. प्रशासन का दावा है कि समाजवादी पार्टी का कार्यालय नगर पालिका के अधिकारी के आवास में चल रहा है, जबकि पार्टी का कहना है कि 2005 में नियमों के तहत इसे आवंटित किया गया था, तब से पार्टी इस जगह से काम कर रही है.

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10 जून को समाजवादी पार्टी मीडिया सेल के आधिकारिक 'एक्स' हैंडल से एक वीडियो शेयर किया गया था, जिसमें पुलिस सपा कार्यालय में मौजूद दिख रही है. इस वीडियो को शेयर करते हुए समाजवादी पार्टी मीडिया सेल के अकाउंट से लिखा गया कि पीलीभीत में सपा जिला कार्यालय को जबरन सत्ता की ताकत से खाली करवाने का भाजपाई प्रयास बेहद निंदनीय और शर्मनाक है. सपा से भाजपा के डर का ये प्रमाण है, अब भाजपा की सरकार सत्ता में मदांध होकर राजनीतिक ईर्ष्या और विद्वेषपूर्ण भावना के तहत कार्य कर रही है. जबकि मामला न्यायालय में विचाराधीन है, ऐसे में जब तक न्यायालय का अंतिम फैसला ना आ जाए, इस मामले में पुलिसिया कार्रवाई न सिर्फ अलोकतांत्रिक, असंवैधानिक बल्कि ज्यादती है और ये विपक्ष के अधिकार एवं सम्मान का हनन है. भाजपा जिस तरह से सत्ता का इस्तेमाल कर रही है ये बेहद शर्मनाक है। जनता की अदालत में भाजपा को जवाब देना ही पड़ेगा.

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