'बिना सरकार की इजाजत के DCP सीबीआई को FIR ट्रांसफर नहीं कर सकते', मनोज वशिष्ट केस में CBI ने अदालत से कहा
2015 में हुए मनोज कुमार वशिष्ठ एनकाउंटर मामले में केन्द्रीय जांच एजेंसी सीबीआई (CBI) ने मंगलवार को राउज़ एवेन्यू कोर्ट में एक रिपोर्ट पेश की. इस रिपोर्ट में जांच एजेंसी ने दावा किया कि पुलिस के उपायुक्त (DCP) को बिना केंद्रीय सरकार के आदेश के किसी भी एफआईआर को सीबीआई को ट्रांसफर करने या आगे बढ़ाने का अधिकार नहीं है. राउज एवेन्यू कोर्ट ने मनोज कुमार वशिष्ठ के परिवार द्वारा बागपत, यूपी में दर्ज की गई एफआईआर की जांच के संबंध में सीबीआई के डीआईजी से रिपोर्ट मांगी थी.
DGP, FIR ट्रांसफर करने के लिए सक्षम अधिकारी नहीं
राउज एवेन्यू कोर्ट ने मनोज कुमार वासिष्ठ के परिवार के सदस्यों द्वारा बागपत, उत्तर प्रदेश में दायर FIR की जांच के संबंध में CBI के DIG से रिपोर्ट मांगी थी. अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (ACJM) ज्योति महेश्वरी ने CBI के DIG द्वारा दायर की गई रिपोर्ट पर संज्ञान लिया. राउज एवेन्यू कोर्ट ने रिपोर्ट का अवलोकन करते हुए कहा है कि बागपत थाने में दर्ज एफआईआर की एक फोटोकॉपी सीबीआई को दिल्ली पुलिस के मध्य जिला के डीसीपी के 24 अक्टूबर 2015 को भेजा गया था. रिपोर्ट में कहा गया है कि पत्र सीबीआई को जीरो एफआईआर करने को लेकर संबंधित दस्तावेजों के साथ भेजा जा रहा है. इस पर सीबीआई ने रिपोर्ट में बताया है कि डीसीपी केंद्र सरकार के आदेश के बिना सीबीआई द्वारा एफआईआर को फिर से पंजीकृत करने के लिए सीबीआई को कोई भी एफआईआर स्थानांतरित करने या अग्रेषित करने के लिए सशक्त/सक्षम प्राधिकारी नहीं है. चूंकि, डीएसपीई अधिनियम (DSPE Act) के प्रावधानों का बिना पालन करते हुए एफआईआर को उचित चैनल के माध्यम से सीबीआई को नहीं भेजा गया था और इसलिए उक्त एफआईआर के फिर से पंजीकरण का सवाल ही नहीं उठता है.
CBI के जबाव से अदालत नाखुश
अदालत ने कहा कि हालांकि, सीबीआई के डीआईजी ने 22 मार्च, 2021 के मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट के आदेश की टिप्पणियों को नजरअंदाज कर दिया है, जिसमें उन्हें निर्देशित किया गया था कि एफआईआर, पीएस बागपत, दिनांक 12 जुलाई, 2015 को सीबीआई को स्थानांतरित कर दिया गया है. इस फैसले के बाद ही अदालत ने मृतक की विधवा प्रियंका शर्मा द्वारा दायर आवेदन का निपटारा किया.
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अदालत ने कहा,
इस न्यायालय की सुविचारित राय में, रिपोर्ट केवल सीबीआई द्वारा अपनाए गए रुख को दोहराती है और 7 फरवरी, 2025 के आदेश में इस न्यायालय द्वारा उठाए गए सवालों का जवाब नहीं देती है. हालांकि, रिकॉर्ड के साथ-साथ रिपोर्ट के अवलोकन से यह स्पष्ट है कि एफआईआर संख्या की प्रति 640/15, पीएस बागपत को वास्तव में सीबीआई को ट्रांसफर किया गया था, लेकिन, सीबीआई द्वारा इस पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
राउज एवेन्यू कोर्ट ने यह भी कहा कि सीबीआई की ओर से कोई संवाद स्थापित नहीं किया.
अदालत ने कहा,
सीबीआई द्वारा दिल्ली पुलिस/यूपी पुलिस से कोई संवाद नहीं किया गया है, ना ही उन्हें बताया कि एफआईआर उचित माध्यम से प्राप्त नहीं हुई है और वैधानिक बाध्यताओं के कारण एफआईआर पर कार्रवाई नहीं की. इसलिए, यह अनुमान लगाया जा सकता है कि आज तक, 12 जुलाई, 2015 को दर्ज एफआईआर संख्या 640/15, पीएस बागपत पर कोई कार्रवाई नहीं की गई है.
अदालत ने सीबीआई से नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि पहली नज़र में, यह जांच एजेंसियों दिल्ली पुलिस और सीबीआई के बीच समन्वय की कमी का मामला लगता है, जिसके कारण आज तक एफआईआर पर कोई कार्रवाई नहीं की जा सकी.
मनोज वशिष्ठ एनकाउंटर केस
6 मई, 2015 को, मनोज कुमार वशिष्ठ (मृतक) ने राजिंदर नगर के सागर रत्ना रेस्तरां में पीएस स्पेशल सेल द्वारा कथित फेक एनकाउंटर (Fake Encounter) में अपनी जान गंवा दिया. इस घटना को लेकर मनोज कुमार वशिष्ठ के परिजनों की शिकायत पर उत्तर प्रदेश के बागपत थाने में एफआईआर दर्ज कराई. 17 मई को राजिंदर नगर पुलिस स्टेशन में एफआईआर दर्ज की गई थी. 2015 में, दिल्ली पुलिस के लोधी रोड स्थित स्पेशल सेल के इंस्पेक्टर धर्मेंद्र कुमार ने परिजनों द्वारा दी लिखित शिकायत पर मामला दर्ज किया गया. इसके बाद, उक्त एफआईआर की जांच सीबीआई ने की और 16 जुलाई, 2015 को मामला दर्ज किया गया. 3 अक्टूबर, 2019 को सीबीआई ने मामले में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल की. इसके अलावा, मृतक मनोज वशिष्ठ के भाई अनिल वशिष्ठ ने 12 जुलाई, 2015 को बागपत थाने में आईपीसी की धारा 147, 148, 149, 302, 506 के तहत एफआईआर दर्ज कराया था.
अदालत ने इस मामले में उचित कार्रवाई नहीं करने को लेकर नाराजगी जाहिर की है.
(खबर ANI एजेंसी इनपुट से है)