पॉक्सो मामले में कोई समझौता मान्य नहीं... पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने FIR रद्द करने से किया इंकार
पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने फैसला सुनाया है कि नाबालिग से बलात्कार के लिए यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम के तहत दर्ज प्राथमिकी को समझौते के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता, भले ही पीड़िता ने बाद में आरोपी से शादी कर ली हो और उसके बच्चे भी हों. अदालत ने कहा कि ऐसे समझौते कानून के तहत मान्य नहीं किए जा सकते, ये अवैध हैं.
वर्ष 2013 में प्राथमिकी दर्ज होने के समय, पीड़िता 13 साल की थी और उसके पिता ने तब आरोप लगाया था कि आरोपी उसे बहला-फुसलाकर ले गया था. आरोपी ने गुरुग्राम में कथित तौर पर लड़की के साथ बलात्कार किया और 2023 में गिरफ्तार होने से पहले नौ साल तक फरार रहने के चलते उसे भगोड़ा अपराधी घोषित कर दिया गया. गुरुग्राम में भारती दंड संहिता और पॉक्सो अधिनियम के प्रावधानों के तहत अगस्त 2013 में प्राथमिकी दर्ज की गई थी. आरोपी ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और प्राथमिकी रद्द करने का अनुरोध किया क्योंकि उसने पीड़िता से शादी कर ली और उनके चार बच्चे हैं. हालांकि, अदालत ने उसकी याचिका खारिज कर दी.
पंजाब हरियाणा हाई कोर्ट ने साफ किया है कि नाबालिग से रेप और पॉक्सो एक्ट (POCSO Act) के तहत दर्ज FIR को समझौते या शादी के आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता. पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट ने 29 जुलाई के अपने आदेश में कहा कि विवाह की आयु और यौन क्रियाकलाप के लिए सहमति की न्यूनतम आयु को एक निश्चित वैधानिक न्यूनतम आयु पर निर्धारित करने के पीछे तर्क इस मान्यता पर आधारित है कि नाबालिगों में यौन क्रियाओं के लिए सहमति देने के वास्ते अपेक्षित मानसिक परिपक्वता और मनोवैज्ञानिक क्षमता का अभाव होता है. पंजाब-हरियाणा हाई कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पॉक्सो (POCSO) एक्ट के तहत दर्ज मामले में बाद में शादी और बच्चों के होने के बावजूद भी अपराध खत्म नहीं हो जाता. अदालत ने कहा कि ऐसे अपराध गंभीर हैं और कानून इन्हें माफ करने की अनुमति नहीं देता.
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